2014 से शुरू हुई बदलाव की बयार क्या चलती रहेगी या गंगा का आचमन रोक देगा हिन्दू वोटों की एकजुट होती ताकत को....मोदी के व्यक्तित्व के सामने बोने होते नेता क्या एकजूट होकर भी रोक पाएंगे..? क्या 2019 के परिणाम फिर किसी मौलवी की चौखट पर सजदा करने वाले दृश्यों को जन्म देगा,या देश 2014 की शुरुआत को और अधिक बढ़ा देगा...? भारतीय लोकतंत्र का महापर्व शुरू हो चुका है, राजनीतिक पार्टियों ने अपने प्रतिनिधिओं के चयन का काम लगभग पूरा कर लिया है और बनाए गए प्रत्याशियों ने नामांकन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। राजनीतिक दलों के नेताओं का किसी अन्य दल के नेता को तोड़ने का तो नाराज नेता को जोड़ने का काम बखूबी चल ही रहा है। मौसम गर्म है पर इतना भी गर्म नहीं कि 2009 की गर्मी से ज्यादा हो गया ।2009 के लोकसभा चुनाव में जिन नेताओं को मंदिर जाने, तिलक लगाने,या राम राम कहने में जी मिचलाई शुरू हो जाती थी वे 2014 आते-आते वह मंदिर आने वालों पर टिप्पणी करने से नहीं चूके और जो मंदिरों में विश्वास रखते हैं उनको आंतकवादी विचार कहने के लिए और बतौर सबूत आतंकियों को छोड़कर बेगुनाहों को जेल में डालने का पाप कर...
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