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महाशिवरात्रि -रिश्तों की महक का पर्व

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रिश्तों को महकने दीजिए,सीखिए मां पार्वती और बाबा भोलेनाथ से जीवन के रंग। वो तपस्या में लीन थी, एक ही लक्ष्य था,उसे पाना जिसके लिए जन्म पर जन्म ले रही थी। सप्त ऋषियों ने कहा - सुनो राजकुमारी! क्यों व्यर्थ परेशान होती हो। तुम भी उसके लिए तप कर रही हो,जिसका कुछ है ही नहीं स्वयं का। ना घर है,ना ही कोई साधन सुविधा।ना कोई काम करते है ना ही कोई इस पर विचार। भंग के नशे में मस्त रहते है,ना आज की चिंता न कल की फिक्र। अपने पहने के लिए नहीं है जिसके पास कपड़े वो क्या श्रृंगार करेगा तेरे? कहां वो भस्म रमाये, जटा बढ़ाए अपनी ही मस्ती में मस्त रहने वाले और कहां तुम जैसी सुंदर  सुकुमारी। आप जैसी सुंदर सलोनी और विदुषी राज कन्या का विवाह  तो किसी बड़े राजकुल में ही होना चाहिए इसलिए हे राजकुमारी!  यह तप छोड़कर राजमहल में लौट जाओ। सामान्य साधु वेश में आए सप्तर्षियों को पहचानते हुए उन राजकुमारी ने कहा- हे सप्तर्षियों! उन्हें जाकर कह दीजिए कि वे स्वयं मना करेंगे तब भी मैं नहीं जाऊंगी मुझे अगर उनके लिए कर्ण जन्म लेने पड़े तब भी कोई भय नहीं है पर पति रूप में चाहिए तो केवल और केवल शिव ही चाहिए। सप...