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Showing posts from September, 2025

नवरात्र विचार -3 कैसे हो सलाहकार?

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 नवरात्र विचार में आज बात करते हैं कि हमारे सलाहकार कैसे हो और हम सलाहकार कैसे हो ?  जब सुंदरकांड का हम पाठ करते हैं तब उसमें विभीषणजी रावण को समझाते हैं उस समय रावण की सभा में जो प्रतिक्रिया होती है उसको लेकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है- सचिव बैद गुर तीनि जौं  प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर  होइ बेगिहीं नास॥ मंत्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥ चाटुकारों, डरपोक और स्वार्थी लोगों से घिरा रावण अपनी बुद्धिमत्ता, वीरता और ऐश्वर्य के होते हुए भी नाश को प्राप्त होता है, कीर्ति, यश,तेज, ज्ञान सब कुछ नष्ट हो गया क्योंकि अहंकार हो गया उसे अपने पास सब कुछ होने का और इस अहंकार का पोषण  उसके सचिव सलाहकार ही कर रहे थे। वहीं रामजी की सेना में सलाहकार की भूमिका में जामवंत जी थे, उनकी सलाह कैसी होती थी उसे देखने के लिए हमें किष्किन्धा-काण्ड के उस भाग में जाना है जहां वानर दल माता जानकी की खोज करते हु...

नवरात्र विचार 2 लक्ष्य का सन्धान करें

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नवरात्र चल रहे है तो शक्ति की उपासना घर घर हो रही है, बात शक्ति की हो तो बाबा हनुमंत लाल जी का स्मरण तो सबको आता ही है, वे ना केवल शक्ति के बल्कि युक्ति के भी देवता है।  हर बार जीत की दूदूम्भी नहीं बजाई जाती, लक्ष्य पर नजर रखकर काम करने की प्रेरणा देते है हनुमंत लाल जी। शक्ति की उपासना के पर्व में हनुमंत लाल जी की आराधना में सुन्दरकाण्ड के पाठ भी हो ही रहे है तो आइये, जीवन का एक मंत्र वहीं से सीखते है।      बाबा हनुमंत लाल जी ने लंका की अशोक वाटिका में पहुंचकर माता जानकी के दर्शन करने के उपरांत अशोक वाटिका का विध्वंस किया साथ ही निशाचरों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा, रावण के पुत्र अक्षय कुमार का भी वध किया फिर ब्रह्मास्त्र का मान रखने के लिए मेघनाथ के हाथों बंध कर लंका के राज दरबार में रावण के सम्मुख पहुंचे और फिर लंका जलाकर भगवान राम के पास वापस आए यह हम सब जानते हैं।    पर जाते समय माता सीता का पता लगाने से पहले वे सूक्ष्म रूप धारण करते है, वे जब बाद में सब कुछ तोड़ते, जलाते है तो पहले छुपे क्यों? क्या उन्हें किसी बात का डर था?    नहीं, उनके लिए महत्व...

नवरात्र विचार 1

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 जब सब उसके हाथ है तो मैं क्यों करूँ?  ऐसे ही कई सवाल आपके सामने कई लोगों ने रखें होंगे,  वे अपने इस सवाल के साथ श्रीराम चरित मानस की यह चौपाई सामने रख कर सवाल दागते है। होइहि सोइ जो राम रचि राखा।  को करि तर्क बढ़ावै साखा॥ क्या इसमें कर्म की मनाही की गई है?  क्या इसमें व्यक्ति को कर्महीन होने को कहा गया है? क्या इसमें सब कुछ ईश्वर ही करेंगे ऐसा कहा गया है? ऐसा नहीं है, तो क्या है इस चौपाई में?  आइये, इसे एक उदाहरण से समझते है। एक किसान खेत में फसल लगाता है तो उसे फसल लगाने से पहले खेत को तैयार करना है, अच्छे बीज लेने है उन्हें अच्छी तरह लगाना भी है। पर इसके आगे बारिश होने या सूखा पड़ने , हवा चलने या हवाएं बंद हो जाने, धूप तेज या जरुरत के अनुसार आने, ओले पड़ने अथवा नहीं गिरने  जैसे काम उसके हाथ नहीं है वह तय नहीं कर सकता, यह सब कुछ विधि के हाथ है, विधाता या नियंता की मर्ज़ी पर है। इसलिए ही इस चौपाई में कहा गया है जो व्यक्ति के प्रयासों से परे है वह ईश्वर के हाथ है, इस पर बहस नहीं हो सकती ना ही व्यक्ति दोषी होता है। इसलिए तो भगवान श्री कृष्ण ने गीता जी में ...