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नवरात्र विचार -3 कैसे हो सलाहकार?

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 नवरात्र विचार में आज बात करते हैं कि हमारे सलाहकार कैसे हो और हम सलाहकार कैसे हो ?  जब सुंदरकांड का हम पाठ करते हैं तब उसमें विभीषणजी रावण को समझाते हैं उस समय रावण की सभा में जो प्रतिक्रिया होती है उसको लेकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है- सचिव बैद गुर तीनि जौं  प्रिय बोलहिं भय आस राज धर्म तन तीनि कर  होइ बेगिहीं नास॥ मंत्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥ चाटुकारों, डरपोक और स्वार्थी लोगों से घिरा रावण अपनी बुद्धिमत्ता, वीरता और ऐश्वर्य के होते हुए भी नाश को प्राप्त होता है, कीर्ति, यश,तेज, ज्ञान सब कुछ नष्ट हो गया क्योंकि अहंकार हो गया उसे अपने पास सब कुछ होने का और इस अहंकार का पोषण  उसके सचिव सलाहकार ही कर रहे थे। वहीं रामजी की सेना में सलाहकार की भूमिका में जामवंत जी थे, उनकी सलाह कैसी होती थी उसे देखने के लिए हमें किष्किन्धा-काण्ड के उस भाग में जाना है जहां वानर दल माता जानकी की खोज करते हु...

नवरात्र विचार 2 लक्ष्य का सन्धान करें

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नवरात्र चल रहे है तो शक्ति की उपासना घर घर हो रही है, बात शक्ति की हो तो बाबा हनुमंत लाल जी का स्मरण तो सबको आता ही है, वे ना केवल शक्ति के बल्कि युक्ति के भी देवता है।  हर बार जीत की दूदूम्भी नहीं बजाई जाती, लक्ष्य पर नजर रखकर काम करने की प्रेरणा देते है हनुमंत लाल जी। शक्ति की उपासना के पर्व में हनुमंत लाल जी की आराधना में सुन्दरकाण्ड के पाठ भी हो ही रहे है तो आइये, जीवन का एक मंत्र वहीं से सीखते है।      बाबा हनुमंत लाल जी ने लंका की अशोक वाटिका में पहुंचकर माता जानकी के दर्शन करने के उपरांत अशोक वाटिका का विध्वंस किया साथ ही निशाचरों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा, रावण के पुत्र अक्षय कुमार का भी वध किया फिर ब्रह्मास्त्र का मान रखने के लिए मेघनाथ के हाथों बंध कर लंका के राज दरबार में रावण के सम्मुख पहुंचे और फिर लंका जलाकर भगवान राम के पास वापस आए यह हम सब जानते हैं।    पर जाते समय माता सीता का पता लगाने से पहले वे सूक्ष्म रूप धारण करते है, वे जब बाद में सब कुछ तोड़ते, जलाते है तो पहले छुपे क्यों? क्या उन्हें किसी बात का डर था?    नहीं, उनके लिए महत्व...

नवरात्र विचार 1

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 जब सब उसके हाथ है तो मैं क्यों करूँ?  ऐसे ही कई सवाल आपके सामने कई लोगों ने रखें होंगे,  वे अपने इस सवाल के साथ श्रीराम चरित मानस की यह चौपाई सामने रख कर सवाल दागते है। होइहि सोइ जो राम रचि राखा।  को करि तर्क बढ़ावै साखा॥ क्या इसमें कर्म की मनाही की गई है?  क्या इसमें व्यक्ति को कर्महीन होने को कहा गया है? क्या इसमें सब कुछ ईश्वर ही करेंगे ऐसा कहा गया है? ऐसा नहीं है, तो क्या है इस चौपाई में?  आइये, इसे एक उदाहरण से समझते है। एक किसान खेत में फसल लगाता है तो उसे फसल लगाने से पहले खेत को तैयार करना है, अच्छे बीज लेने है उन्हें अच्छी तरह लगाना भी है। पर इसके आगे बारिश होने या सूखा पड़ने , हवा चलने या हवाएं बंद हो जाने, धूप तेज या जरुरत के अनुसार आने, ओले पड़ने अथवा नहीं गिरने  जैसे काम उसके हाथ नहीं है वह तय नहीं कर सकता, यह सब कुछ विधि के हाथ है, विधाता या नियंता की मर्ज़ी पर है। इसलिए ही इस चौपाई में कहा गया है जो व्यक्ति के प्रयासों से परे है वह ईश्वर के हाथ है, इस पर बहस नहीं हो सकती ना ही व्यक्ति दोषी होता है। इसलिए तो भगवान श्री कृष्ण ने गीता जी में ...

नन्द के आनंद भयो...

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प्रतीक्षा कीजिये, वो आएंगे ही.... मध्य भारत का गौरवशाली साम्राज्य हस्तिनापुर, एक समय का वैभव और शक्ति का प्रतीक, अब धीरे-धीरे षड्यंत्रों की भंवर में फंसता जा रहा था। सिंहासन पर विराजमान राजा अपनी बुद्धि को दूर गांधार की कुटिल चालों के हवाले कर अपने आपको निश्चिंत मान चुका था।  तो युग का वह महानतम योद्धा, जिसका नाम ही शत्रुओं के दिलों में खौफ पैदा करता था, अब असहाय-सा बंधन में जकड़ा हुआ था। उसके लिए स्वयं का स्व बड़ा था यही उसके लिए धर्म था और यही राष्ट्र धर्म। एक अनैतिक प्रेम से जन्मा तूफान हस्तिनापुर को अधर्म के पंजों में जकड़ने को तैयार खड़ा था। उधर, मथुरा में सत्तान्ध कंस अधर्म का परचम लहरा रहा था। उसने अपने पिता, बहन, बहनोई और पूरे कुटुंब को कैद की बेड़ियों में जकड़ लिया था । उसके जैसे ही शैतानी मानसिकता वाले ताकतें उसका साथ दे रही थीं, और धर्म को मानने वाले लोग लाचार थे, विवश थे और थे मौन । पूर्व में मगध की धरती पर जरासंध का राज था—एक ऐसा शासक, जिसका खुद का अस्तित्व भी दो गर्भों से जन्मे टुकड़ों को राक्षसी मंत्रों से जोड़कर बना था। उसकी ताकत, उसका बल, उसका रौब—कोई उसके आसपास भ...

भारत विभाजन विभीषिका की स्मृति

 एक ओर आज़ादी का जश्न मनाने की आतुरता दूसरी और कुर्सी की तरफ बढ़ते नेताओं की पदलिप्सा के बीच अपने ही देश में विभाजन की विभीषिका झेल रहे करोड़ों लोगों का रुदन किसी को सुनाई ही नहीं दिया। सिसकियां दबी रह गई, रुदन पर नेताओं का जश्न भारी हो गया। लाखों महिलाएं बलात्कार की शिकार हो गई क्योंकि मजहबी गुंडों के लिए काफिर की औरत से व्यभिचार सकून देता है।  बाप के सामने बेटी, बेटे के सामने माँ, पति के सामने पत्नी सब लाचार बेबस, बस ठगे से रह गए उन्होंने भरोसा किया था महात्मा गांधी की उस बात पर कि भारत का विभाजन होता तो मेरी लाश पर से। रातों रात लाखों करोड़ों की दौलत घर व्यापार सब छोड़कर भागना पड़ रहा था और इधर भारत में सेक्युलर हो जाने की घूँटी पिलाकर अहिंसा परमो धर्म का शहद चटाया जा रहा था और जो शख्स अहिंसा की गोली बनाकर मजलूम हिन्दुओं को खिला रहा था वो खुद कोलकाता में गोपाल पांडा से संरक्षण मांग रहा था, हथियार सहित और हथियार भी बिना लाइसेंस के अपने पास रखकर बस उसकी जान बचा ले इस आग्रह के साथ।   अंग्रेजी हुकूमत ने हिंदुस्तान का विभाजन किया उसे हिंदुस्तान का इसके मूल निवासी अपने आप को हिंदू...

ऑपरेशन सिंदूर जारी है...

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ना मोदी रुका, ना भारत झुका भारत-पाकिस्तान के वर्तमान हालात पहलगाम में पाकिस्तान पोषित मजहबी आतंकियों के द्वारा बेगुनाह भारतीयों की हत्या के बाद बनें। इस कायरतापूर्ण कार्यवाही के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब की अपनी यात्रा को बीच में छोड़कर आए और कहा गुनहगारों को ऐसी सजा मिलेगी जो उन्होंने सपने में भी नहीं सोची होगी।  इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सेना को स्थान,समय और लक्ष्य तय करने के लिए  स्वतंत्र कर दिया यानि खुली छूट दे दी,विपक्ष ने सर्वदलीय बैठक में कहा सरकार जो भी कदम उठाएगी हम उसके साथ।  एक तरफ विपक्ष के नेता कह रहे थे कि हम सरकार के साथ हैं, सरकार जो भी कदम उठाएगी उस पर हमारी सहमति है वहीं दूसरी ओर उसके नेता बार-बार सरकार से सवाल पूछ रहे थे कार्यवाही कब करोगे? 2014 से पहले क्या देश में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों ने कोई बम धमाका नहीं किया ? कोई हमला नहीं किया ? क्या बेगुनाहों की जान नहीं ली ? अगर ऐसा हुआ था तो उस समय की सरकारों ने क्या किया था ? 26/11 की आतंकी घटना में पाकिस्तान के नागरिक के जिंदा पकड़े जाने के बावजूद तत्कालीन कांग्रेस सरकार पाकिस्तान को...

चंद्र शेखर जी - बहुआयामी व्यक्तित्व

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 साधारण सी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर विचार की प्रखरता के धनी जब राजनीति की रपटीली राहों पर चलते हैं तो अपनी विशिष्ट छाप छोड़ते ही  हैं।  राजनीतिक क्षेत्र के प्रलोभन से जब उनका नाता नहीं होता और वैचारिक प्रतिबद्धता उनके लिए सब कुछ हो जाती है तो वे बन जाते हैं अजातशत्रु या फिर अपने कार्यकर्ताओं के अभिभावक।  इसी प्रकार का वैशिष्ट्य रखने वाले राजस्थान भाजपा के पूर्व प्रदेश संगठन महामंत्री एवं वर्तमान में तेलंगाना में संगठन महामंत्री की जिम्मेदारी से संभाल रहे श्री चंद्रशेखर जी रखते है। जिनका आज जन्मदिन है। 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बतौर सांसद उम्मीदवार काशी पहुंचे तो क्षेत्रीय संगठन मंत्री के रूप में उन्हें चंद्रशेखर जी मिले, 2017 के उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक चुनाव परिणाम में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़ा उलट फेर हुआ और भारतीय जनता पार्टी ने ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की तो उस समय चंद्रशेखर जी वहां संगठन मंत्री थे। राजस्थान में 2018 के चुनाव की दुंदुभी बज चुकी थी, चौसर बिछ चुकी थी, सत्ता और संगठन में बैठे शीर्ष के लोगों को बिना संगठन मंत्री काम करने की आदत पड़ चुकी थ...