#19
सच कहने का साहस जुटाने वाले केके मोहम्मद को पद्मश्री,मंदिरों के अवशेष से फिर इतिहास जीवंत करने वाले केके मोहम्मद अयोध्या में राम मंदिर के पुरातत्व प्रमाण के दावे के बाद हुए थे राजनीति के शिकार।।।
शांत...सौम्य...धीमे बोलने वाले सांवले रंग और दरम्याने कद का एक ऐसा मुसलमान जिसने प्राचीन मंदिरों को सहेजने में अपनी पूरी उम्र लगा दी.
फ़ोटो- फेसबुक से
बटेश्वेर के प्राचीन मंदिरों का जिक्र जब भी होगा. पुरात्तव सर्वेंक्षण विभाग में उत्तर भारत के मुखिया के तौर पर 2012 में रिटायर हो चुके केके मोहम्मद का नाम तब शिद्दत से लिया जाएगा।
नब्बे के दशक में जब केके मोहम्मद ने पुरातत्व विभाग के तमाम नाज नखरे सहकर बटेश्वर के 200 मंदिरों के अवशेष के पास पहुंचे तब कोई नहीं कहता था कि गुप्त काल से लेकर गुर्जर प्रतिहार काल के 6 शताब्दी पुराने ये मंदिर फिर खड़े हो पाएंगे.
लेकिन केके मोहम्मद ने पहले मुरैना के खनन माफियाओं से फिर निर्भय गुज्जर जैसे दुर्दांत डाकूओं से सामना करके बटेश्वर के 200 प्राचीन मंदिरों में से 60 मंदिर को उनके मूलरूप में खड़ा करके इतिहास को वर्तमान की दहलीज पर पहुंचा दिया।
पद्मश्री जैसे सम्मान की घोषणा के बाद केके मोहम्मद बताते हैं कि नब्बे के दशक में जब पहली बार वो बटेश्वर मंदिर पहुंचे तो मंदिर के बचे अवशेष पर लंबी मूंछ और हाथ में बंदूक लिए एक शख्श मिला. उसे जब पता चला कि वो इन मंदिरों का जीर्णोद्वार करने आए है तो खुश हुआ. बाद में लोगों ने बताया कि ये दुर्दांत डाकू निर्भय गुज्जर था.।
डाकुओं और खनन माफियाओं के चलते मंदिर के जीर्णोद्वार का काम कोई करने को तैयार न था लेकिन केके मोहम्मद को अकेले काम करता देख लोगों का हौसला बढ़ा फिर इसका काम शुरु हुआ.
यही नहीं के के मुहम्मद ने छत्तीसगढ़ के जगदलपुर के पास दंतेवाड़ा जिले में बारसुअर और समलुर मंदिरों को भी संरक्षित किया. यह क्षेत्र नक्सल गतिविधियों के गढ़ के रूप में जाना जाता है।
2003 में, के के मोहम्मद नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लोगों को यह समझाने कामयाब हुए और आज वे मंदिर जो कभी खंडहर बन गए थे आज इतिहास की अनमोल धरोहर के रूप में खड़े है।
केके मोहम्मद केरल के कॉलीकट के रहने वाले हैं वो पूर्व महानिदेशक पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के बी बी लाल की टीम का अहम हिस्सा रहे हैं.।
केके मोहम्मद 1976 में बनी उस टीम का भी हिस्सा भी रहे हैं जिसने राम जन्म भूमि संबंधी पुरातात्विक खुदाई भी की थी।
हालांकि जब उन्होंने उस वक्त ये बयान दिया था कि अयोध्या में राम मंदिर का आस्तित्व है. तो उन्हें विभागीय कार्रवाई का सामना भी करना पड़ा था. लेकिन केके मोहम्मद ने कहा कि झूठ बोलने के बजाए वो अपना फर्ज निभाते हुए मरना पसंद करेंगे।
हाल ही में राष्ट्रपति द्वारा घोषित पदम पुरस्कार के लिए 112 लोगों में शुमार केके मुहम्मद दरअसल वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने दावा किया था कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मिले हैं.
अपनी आत्मकथा "जानएन्ना भारतीयन जो कि मलयालम भाषा में लिखी गयी उसमें डॉ. केके मुहम्मद ने दावा किया था कि अयोध्या में 1976-77 में हुई खुदाई के दौरान मंदिर के अवशेष होने प्रमाण मिले थे. ये खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक प्रोफेसर बीबी लाल के नेतृत्व में की गई थी. उस टीम में मुहम्मद भी एक सदस्य थे.
मुहम्मद ने अपनी किताब में लिखा था, ‘जो कुछ मैंने जाना और कहा है, वो ऐतिहासिक सच है. हमें विवादित स्थल से 14 स्तंभ मिले थे. सभी स्तंभों में गुंबद खुदे हुए थे. ये 11वीं और 12वीं शताब्दी के मंदिरों में मिलने वाले गुंबद जैसे थे. गुंबद में ऐसे 9 प्रतीक मिले हैं, जो मंदिर में मिलते हैं.’
मुहम्मद ने ये भी कहा था, ‘खुदाई से साफ हो गया है कि मस्जिद एक मंदिर के मलबे पर खड़ी की गई थी. उन दिनों मैंने इस बारे में कई अंग्रेजी अखबारों में भी लिखा था, लेकिन मुझे ‘लेटर टू एडिटर वाले कॉलम’ (अखबार में बहुत छोटी जगह) जगह दी गई थी.’
उनका ये भी मानना है कि मुसलमानों को अयोध्या को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए, क्योंकि उनके पास मक्का और मदीना है.
मुहम्मद 2012 में रिटायर होने के बाद हैदराबाद स्थित आगा खान ट्रस्ट में बतौर प्रोजेक्ट निदेशक काम कर रहे हैं.
वामपंथ से जुड़े चिंतकों की आलोचना करते हुए मुहम्मद ने अपनी किताब में लिखा था कि इन लोगों ने इस मामले को इतना उलझा दिया, वरना से मामला कब का सुलझ गया होता.
इसके अलावा उन्होंने भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तत्कालीन सदस्य प्रोफेसर इरफान हबीब, रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा, एस. गोपाल जैसे इतिहासकारों की आलोचना करते हुए कहा कि इन सभी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी गुमराह करने की कोशिश की.
उन्होंने अपनी किताब में नफरत फैलाने की बात पर कहा था कि हिंदू धर्म में सांप्रदायिकता मौलिक नहीं बल्कि एक प्रतिक्रिया है. गोधरा ऐसी प्रतिक्रिया का एक उदाहरण था.उन्होंने यह भी लिखा है कि ताजमहल को मंदिर मानने वालों के हाथों में मामला जाने देने की बजाय अयोध्या सौंप दी जानी चाहिए।
मुहम्मद को पद्मश्री से सम्मानित करना उनके उस काम का सम्मान है जो उन्होंने वर्तमान को अतीत से जोड़ने का किया है।
जब भी उन ऐतिहासिक मंदिरों की चर्चा होगी मुहम्मद को सम्मान के साथ याद किया जाएगा....
काश!अयोध्या में तथ्यों पर गौर होता....वोट के लिए हिंदुओं पर गोलियां चलाने वाले मुलायम ना होते........काश!पटेल सोमनाथ की तर्ज़ पर अयोध्या में भी मंदिर बना गए होते......काश!कांग्रेस शाहबानों मामले की तरह इस पूर्णतः धार्मिक मसले पर जन भावनाओं की कद्र करती............काश!भाजपा इससे दूर होती....काश!मुस्लिम समाज मुहम्मद जैसे विद्वानों पर भरोसा करता......काश!इरफान हबीब,रोमिला थापर जैसे लोग की ना सुनता समाज....काश!सिब्बल जैसे कांग्रेसी नेता वकील के वेष में मामले को चुनाव तक लटकाने की कोशिश नहीं करते.... काश! मूल संविधान वाले चित्र सब देखते तो ऐसा चरित्र ना होता....
काश!......
।।शिव।।
सच कहने का साहस जुटाने वाले केके मोहम्मद को पद्मश्री,मंदिरों के अवशेष से फिर इतिहास जीवंत करने वाले केके मोहम्मद अयोध्या में राम मंदिर के पुरातत्व प्रमाण के दावे के बाद हुए थे राजनीति के शिकार।।।
शांत...सौम्य...धीमे बोलने वाले सांवले रंग और दरम्याने कद का एक ऐसा मुसलमान जिसने प्राचीन मंदिरों को सहेजने में अपनी पूरी उम्र लगा दी.
फ़ोटो- फेसबुक से
बटेश्वेर के प्राचीन मंदिरों का जिक्र जब भी होगा. पुरात्तव सर्वेंक्षण विभाग में उत्तर भारत के मुखिया के तौर पर 2012 में रिटायर हो चुके केके मोहम्मद का नाम तब शिद्दत से लिया जाएगा।
नब्बे के दशक में जब केके मोहम्मद ने पुरातत्व विभाग के तमाम नाज नखरे सहकर बटेश्वर के 200 मंदिरों के अवशेष के पास पहुंचे तब कोई नहीं कहता था कि गुप्त काल से लेकर गुर्जर प्रतिहार काल के 6 शताब्दी पुराने ये मंदिर फिर खड़े हो पाएंगे.
लेकिन केके मोहम्मद ने पहले मुरैना के खनन माफियाओं से फिर निर्भय गुज्जर जैसे दुर्दांत डाकूओं से सामना करके बटेश्वर के 200 प्राचीन मंदिरों में से 60 मंदिर को उनके मूलरूप में खड़ा करके इतिहास को वर्तमान की दहलीज पर पहुंचा दिया।
पद्मश्री जैसे सम्मान की घोषणा के बाद केके मोहम्मद बताते हैं कि नब्बे के दशक में जब पहली बार वो बटेश्वर मंदिर पहुंचे तो मंदिर के बचे अवशेष पर लंबी मूंछ और हाथ में बंदूक लिए एक शख्श मिला. उसे जब पता चला कि वो इन मंदिरों का जीर्णोद्वार करने आए है तो खुश हुआ. बाद में लोगों ने बताया कि ये दुर्दांत डाकू निर्भय गुज्जर था.।
डाकुओं और खनन माफियाओं के चलते मंदिर के जीर्णोद्वार का काम कोई करने को तैयार न था लेकिन केके मोहम्मद को अकेले काम करता देख लोगों का हौसला बढ़ा फिर इसका काम शुरु हुआ.
यही नहीं के के मुहम्मद ने छत्तीसगढ़ के जगदलपुर के पास दंतेवाड़ा जिले में बारसुअर और समलुर मंदिरों को भी संरक्षित किया. यह क्षेत्र नक्सल गतिविधियों के गढ़ के रूप में जाना जाता है।
2003 में, के के मोहम्मद नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लोगों को यह समझाने कामयाब हुए और आज वे मंदिर जो कभी खंडहर बन गए थे आज इतिहास की अनमोल धरोहर के रूप में खड़े है।
केके मोहम्मद केरल के कॉलीकट के रहने वाले हैं वो पूर्व महानिदेशक पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के बी बी लाल की टीम का अहम हिस्सा रहे हैं.।
केके मोहम्मद 1976 में बनी उस टीम का भी हिस्सा भी रहे हैं जिसने राम जन्म भूमि संबंधी पुरातात्विक खुदाई भी की थी।
हालांकि जब उन्होंने उस वक्त ये बयान दिया था कि अयोध्या में राम मंदिर का आस्तित्व है. तो उन्हें विभागीय कार्रवाई का सामना भी करना पड़ा था. लेकिन केके मोहम्मद ने कहा कि झूठ बोलने के बजाए वो अपना फर्ज निभाते हुए मरना पसंद करेंगे।
हाल ही में राष्ट्रपति द्वारा घोषित पदम पुरस्कार के लिए 112 लोगों में शुमार केके मुहम्मद दरअसल वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने दावा किया था कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मिले हैं.
अपनी आत्मकथा "जानएन्ना भारतीयन जो कि मलयालम भाषा में लिखी गयी उसमें डॉ. केके मुहम्मद ने दावा किया था कि अयोध्या में 1976-77 में हुई खुदाई के दौरान मंदिर के अवशेष होने प्रमाण मिले थे. ये खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तत्कालीन महानिदेशक प्रोफेसर बीबी लाल के नेतृत्व में की गई थी. उस टीम में मुहम्मद भी एक सदस्य थे.
मुहम्मद ने अपनी किताब में लिखा था, ‘जो कुछ मैंने जाना और कहा है, वो ऐतिहासिक सच है. हमें विवादित स्थल से 14 स्तंभ मिले थे. सभी स्तंभों में गुंबद खुदे हुए थे. ये 11वीं और 12वीं शताब्दी के मंदिरों में मिलने वाले गुंबद जैसे थे. गुंबद में ऐसे 9 प्रतीक मिले हैं, जो मंदिर में मिलते हैं.’
मुहम्मद ने ये भी कहा था, ‘खुदाई से साफ हो गया है कि मस्जिद एक मंदिर के मलबे पर खड़ी की गई थी. उन दिनों मैंने इस बारे में कई अंग्रेजी अखबारों में भी लिखा था, लेकिन मुझे ‘लेटर टू एडिटर वाले कॉलम’ (अखबार में बहुत छोटी जगह) जगह दी गई थी.’
उनका ये भी मानना है कि मुसलमानों को अयोध्या को हिंदुओं को सौंप देना चाहिए, क्योंकि उनके पास मक्का और मदीना है.
मुहम्मद 2012 में रिटायर होने के बाद हैदराबाद स्थित आगा खान ट्रस्ट में बतौर प्रोजेक्ट निदेशक काम कर रहे हैं.
वामपंथ से जुड़े चिंतकों की आलोचना करते हुए मुहम्मद ने अपनी किताब में लिखा था कि इन लोगों ने इस मामले को इतना उलझा दिया, वरना से मामला कब का सुलझ गया होता.
इसके अलावा उन्होंने भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तत्कालीन सदस्य प्रोफेसर इरफान हबीब, रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा, एस. गोपाल जैसे इतिहासकारों की आलोचना करते हुए कहा कि इन सभी ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी गुमराह करने की कोशिश की.
उन्होंने अपनी किताब में नफरत फैलाने की बात पर कहा था कि हिंदू धर्म में सांप्रदायिकता मौलिक नहीं बल्कि एक प्रतिक्रिया है. गोधरा ऐसी प्रतिक्रिया का एक उदाहरण था.उन्होंने यह भी लिखा है कि ताजमहल को मंदिर मानने वालों के हाथों में मामला जाने देने की बजाय अयोध्या सौंप दी जानी चाहिए।
मुहम्मद को पद्मश्री से सम्मानित करना उनके उस काम का सम्मान है जो उन्होंने वर्तमान को अतीत से जोड़ने का किया है।
जब भी उन ऐतिहासिक मंदिरों की चर्चा होगी मुहम्मद को सम्मान के साथ याद किया जाएगा....
काश!अयोध्या में तथ्यों पर गौर होता....वोट के लिए हिंदुओं पर गोलियां चलाने वाले मुलायम ना होते........काश!पटेल सोमनाथ की तर्ज़ पर अयोध्या में भी मंदिर बना गए होते......काश!कांग्रेस शाहबानों मामले की तरह इस पूर्णतः धार्मिक मसले पर जन भावनाओं की कद्र करती............काश!भाजपा इससे दूर होती....काश!मुस्लिम समाज मुहम्मद जैसे विद्वानों पर भरोसा करता......काश!इरफान हबीब,रोमिला थापर जैसे लोग की ना सुनता समाज....काश!सिब्बल जैसे कांग्रेसी नेता वकील के वेष में मामले को चुनाव तक लटकाने की कोशिश नहीं करते.... काश! मूल संविधान वाले चित्र सब देखते तो ऐसा चरित्र ना होता....
काश!......
।।शिव।।
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