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#सेना दिवस-नमन शौर्य और शहादत को
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15 जनवरी,1949 को फील्ड मार्शल के.एम.करिअप्पा स्वतंत्र भारत के पहले सेना-प्रमुख बने थे। इससे पूर्व यह पद अंग्रेज कमाण्डर जनरल राॅय फ्रांसिस बूचर के पास था। इस प्रकार यह दिन हमारी सेना की आजादी का दिन है जो प्रति वर्ष सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यह दिन देश के उन बहादुर जवानों को श्रद्धा से स्मरण करने का है जिन्होंने सर्वस्व अर्पित कर दिया देश की रक्षा और हम सब को अमन और शांति देने के लिए।
अपने परिवार के लिए आंसू,दर्द,पीड़ा औऱ नहीं भूलने वाला गम दे गए पर हमारे देश का तिरंगा शत्रु के सामने किसी भी रूप में ना झुके।
ऐसे भी अवसर आये होंगे उनके जीवन में जब वे मौत और जिंदगी में से जिंदगी चुन सकते थे पर उन्होंने अपने फर्ज से समझौता नहीं किया,आइये सबसे पहले हम हमारे रणबांकुरों को श्रद्धा और विश्वास से याद करें,उन्हें याद करें जो लौटकर ना आये,एक बार सोचकर देखिए शादी के तीसरे दिन सेना के कॉल पर बॉर्डर पर जाना और सातवें दिन वीर गति को प्राप्त हो जाना...वो मेहंदी लगे हाथ....घर के आंगन में रखी प्रियतम की पार्थिव देह....
कभी दुधमुहे बच्चे के हाथ..... तो कभी जिम्मेदारियों का बोझ उठाते उठाते थके हुए वृद्ध बाप के हाथों अग्नि संस्कार....
करगिल युद्ध से पहले तक तो सैनिकों को यह भी नसीब नहीं होता था कि उनके परिजन अंतिम दर्शन कर सके....अटलजी ने शहीद हुए सैनिकों की पार्थिव देह पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके घर तक लाने का इंतजाम करवाया।
उन परिवारों की चिंता भी सर्वाधिक उसी समय शुरू हुई। आमने सामने के युद्ध से ज्यादा हमारे सैनिक पाक पोषित आतंक के छद्म युद्ध में शहीद हुए है अब तो पत्थरबाजी की नई विधा भी हमारे जवानों की जान लेने लगी है....
सेना पर उठते सवाल,हथियारों की आपूर्ति में राजनैतिक दखलंदाजी, आतंकियों के मानवाधिकार की पैरवी और जवानों पर कार्यवाही की मांग जैसे अनेक कारण है जो आज जवानों की पीड़ा है जिस पर देश को गंभीरता से विचार करना चाहिए।
हल्की सी ठंड में घरों में दुबकने वाले लोगों को एक बार ऋणात्मक-20 डिग्री से कम तापमान का विचार करना चाहिए और दिल से 71वें सेना दिवस पर मैं सदा मेरी सेना के साथ का प्रण लेना चाहिए।
जयहिन्द ----- जय जवान।
।।शिव।।
#सेना दिवस-नमन शौर्य और शहादत को
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15 जनवरी,1949 को फील्ड मार्शल के.एम.करिअप्पा स्वतंत्र भारत के पहले सेना-प्रमुख बने थे। इससे पूर्व यह पद अंग्रेज कमाण्डर जनरल राॅय फ्रांसिस बूचर के पास था। इस प्रकार यह दिन हमारी सेना की आजादी का दिन है जो प्रति वर्ष सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है।
यह दिन देश के उन बहादुर जवानों को श्रद्धा से स्मरण करने का है जिन्होंने सर्वस्व अर्पित कर दिया देश की रक्षा और हम सब को अमन और शांति देने के लिए।
अपने परिवार के लिए आंसू,दर्द,पीड़ा औऱ नहीं भूलने वाला गम दे गए पर हमारे देश का तिरंगा शत्रु के सामने किसी भी रूप में ना झुके।
ऐसे भी अवसर आये होंगे उनके जीवन में जब वे मौत और जिंदगी में से जिंदगी चुन सकते थे पर उन्होंने अपने फर्ज से समझौता नहीं किया,आइये सबसे पहले हम हमारे रणबांकुरों को श्रद्धा और विश्वास से याद करें,उन्हें याद करें जो लौटकर ना आये,एक बार सोचकर देखिए शादी के तीसरे दिन सेना के कॉल पर बॉर्डर पर जाना और सातवें दिन वीर गति को प्राप्त हो जाना...वो मेहंदी लगे हाथ....घर के आंगन में रखी प्रियतम की पार्थिव देह....
कभी दुधमुहे बच्चे के हाथ..... तो कभी जिम्मेदारियों का बोझ उठाते उठाते थके हुए वृद्ध बाप के हाथों अग्नि संस्कार....
करगिल युद्ध से पहले तक तो सैनिकों को यह भी नसीब नहीं होता था कि उनके परिजन अंतिम दर्शन कर सके....अटलजी ने शहीद हुए सैनिकों की पार्थिव देह पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके घर तक लाने का इंतजाम करवाया।
उन परिवारों की चिंता भी सर्वाधिक उसी समय शुरू हुई। आमने सामने के युद्ध से ज्यादा हमारे सैनिक पाक पोषित आतंक के छद्म युद्ध में शहीद हुए है अब तो पत्थरबाजी की नई विधा भी हमारे जवानों की जान लेने लगी है....
सेना पर उठते सवाल,हथियारों की आपूर्ति में राजनैतिक दखलंदाजी, आतंकियों के मानवाधिकार की पैरवी और जवानों पर कार्यवाही की मांग जैसे अनेक कारण है जो आज जवानों की पीड़ा है जिस पर देश को गंभीरता से विचार करना चाहिए।
हल्की सी ठंड में घरों में दुबकने वाले लोगों को एक बार ऋणात्मक-20 डिग्री से कम तापमान का विचार करना चाहिए और दिल से 71वें सेना दिवस पर मैं सदा मेरी सेना के साथ का प्रण लेना चाहिए।
जयहिन्द ----- जय जवान।
।।शिव।।
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