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क्या संघ और कांग्रेस कभी साथ हो सकते है...?सिद्धान्तों,मूल्यों के साथ सत्ता के लिए जब समझौते हो रहे हो ऐसे माहौल में क्या संघ और कांग्रेस भी साथ हो सकते है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आप चाहे विरोधी हो या समर्थक आप अब उसे अनदेखा नहीं कर सकते...1925 से प्रारम्भ हुई शाखा से राष्ट्र भाव जागरण की अनोखी पाठशाला आज करोड़ों लोगों को अपने से जोड़ने में कामयाब हो गयी है...
भाजपा से इसे जोड़ने वाले भूल जाते है संघ जब शुरू हुआ तब देश में एक ही राजनैतिक दल का वजूद था....अंग्रेजी शासन में पिछले रास्ते....जब क्रांतिकारी गोलियों से छलनी होने को तैयार थे तब कांग्रेस वार्ता,वार्ता और वार्ता के खेल में उलझी एक पहेली सी बन जाती थी....
क्या भगतसिंह, अशफाक उल्ला खान,राजगुरु,सुखदेव,पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जैसे क्रन्तिकारियों की समुचित पैरवी कॉंग्रेस ने कभी की....?
मुस्लिम लीग के बढ़ते प्रभाव,कांग्रेस के समझौतावादी चरित्र के कारण एक संगठन की जरूरत जब समाज महसूस कर रहा था तब डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार ने एक विकल्प दिया....राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ।
सत्ता नहीं,समाज बदलने की मानसिकता के साथ खड़े हुए संगठन को 23 साल की उम्र में जब उसका सामर्थ्य बढ़ने लगा तो प्रतिबन्धित कर दिया ....लगा टूट जाएगा....पर डॉ हेडगेवार के बाद उनके उत्तराधिकारी गुरुजी ने अपने नैसर्गिक आध्यात्मिक गुणों से ना केवल इसे खड़ा रखा बल्कि मजबूत भी किया....
फिर तो मानो संघ के स्वयंसेवकों ने ठान ही लिया...
आंखों में वैभव के सपने, पैरों में तूफानी गति हो
राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता, आये जिस-जिस की हिम्मत हो...
आपातकाल में फिर प्रतिबंध.... शाखाओं पर हमले,हिकारत, सत्ता की प्रतिकूलता,नकारात्मक प्रचार की नित नई तकनीकों के इस्तेमाल के बावजूद "परमवैभव शाली राष्ट्र के लिए व्यक्ति निर्माण के माध्यम से सशक्त समाज निर्माण " का ध्येय लेकर लोग निकल पड़े....
परिवार,कैरियर सब कुछ .....भारत माता के नाम....पढ़ाई के स्वर्ण पदक... राष्ट्रदेव के चरणों में अर्पित होते गये.... शाखा से शाखाएँ फूट पड़ी....आज हिंदुस्तान के हर गांव तक संघ है भले ही भाजपा नहीं होगी,अब तो हिंदुस्तान में आपको सैंकड़ों ऐसे गांव मिल जाएंगे जहां कांग्रेस को भले ही नहीं जाने पर संघ वहां भी "नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे.... के भाव से शाखा लगाता हुआ कोई स्वयंसेवक दिख जायेगा...
कांग्रेस के छोटे से कार्यकर्ता से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक संघ के नाम को लेकर गालियां देने का चलन सा चल पड़ा....ठीक वैसे ही जैसे आजकल मोदी को वे गाली देते है....आखिर क्यों...?
संघ और कांग्रेस में टकराव का आधार क्या है इस पर जब विचार होता है तो सामने आते है चंद कारण....
संघ कहता है -भारत पुण्यभूमि है,जन्मभूमि है और यहां की हजारों बरस पुरानी परंपरा- संस्कृति है।
कॉन्ग्रेस की थ्योरी है-भारत एक जमीन का टुकड़ा है,और हम राष्ट्र अब बनाने जा रहे है। यहां कोई संस्कृति नहीं थी सब बाहर स आया इसलिए मिलाजुला...
संघ कहता है,भारत में रहने वाला हर व्यक्ति चाहे किसी भी पूजा पध्दति को माने हिन्दू है...हिन्दू कोई पूजा पद्दति नहीं जीवन शैली है जैसा सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा...
कांग्रेस कहती है-हिन्दू एक मजहब है जैसे इस्लाम और अन्य है और संघ का हिंदुत्व संकीर्ण है।
संघ मानता है कि हमारे पुरखे एक है चाहे किसी भी पूजा प्रणाली को अपनाया होगा इसलिए राम,कृष्ण,शिवाजी, राणा प्रताप,सुरजमल्ल हमारे पुरखे है और बाबर,औरंगजेब, खिलजी,अकबर आक्रांता....
वहीं कांग्रेस कहती है राम एक काल्पनिक चरित्र है ( कोर्ट में हलपनामा ) बाबर,अकबर,औरंगजेब, खिलजी का बड़ा योगदान। प्रताप,शिवाजी और सुरजमल्ल के बारे में अब तक पाठ्यक्रम में नकारात्मक ही पढ़ाया गया।
कांग्रेस का मानना है भारत माता की जय,वंदेमातरम से मुस्लिम समाज की भावनाएं आहत होती है तो इन नारों को बंद कर देना चाहिए, भारत तेरे टुकड़े होंगे वाले नारे पर वो आरोपियों का बचाव करने के लिए मैदान में उतर पड़ती है...
दूसरी ओर संघ का मानना है जिस धरती का जल,अन्न और हवा ग्रहण की उसकी वंदना से किसी को तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए और भारत तेरे टुकड़े होंगे कहने वालों पर हो ठोस कार्यवाही...
कांग्रेस संघ को गांधी हत्या का जिम्मेदार ठहराते हुए आतंकवादी संगठन से बराबर बताती है ....
तो संघ कांग्रेस को सत्ता के लिए देश विभाजन का जिम्मेदार ठहराते हुए कांग्रेस की महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की थ्योरी से इतर श्रेष्ठ महापुरुष मानकर अपने प्रातः स्मरण में याद करता है और अपने आपको राष्ट्रवादी विचार से ओतप्रोत सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन करार देता है।
इस वैचारिक लड़ाई में कांग्रेस को वाम दलों व समाजवादियों का हमेशा साथ मिलने और 60 साल सत्ता में रहते तीन बार प्रतिबंध थोपने के बावजूद संघ का ना केवल बने रहना बल्कि हर दिन नई शक्ति के साथ उभरना कांग्रेस को मुँह चिढ़ाता है.....
सत्ता के लिए जब सपा-बसपा एक हो सकते है ऐसे में एक नवयुवक ने पूछा मुझे कि क्या कभी संघ और कॉन्ग्रेस साथ हो सकते है ? तो मुझे लगा मेरे पास उत्तर स्पष्ट है....वैचारिक द्वंद इतने है और संघ को सत्ता में आना नहीं इसलिए कोई समझौता हो नहीं सकता हाँ यह नेहरूजी वाली कांग्रेस ना होकर सरदार पटेल वाली कांग्रेस होती तो शायद आज भाजपा नहीं होती....
पर यह तो उस कहावत को ही चरितार्थ करती ...ना नो मण तेल होगा ना राधा नाचेगी....
।।शिव।।
क्या संघ और कांग्रेस कभी साथ हो सकते है...?सिद्धान्तों,मूल्यों के साथ सत्ता के लिए जब समझौते हो रहे हो ऐसे माहौल में क्या संघ और कांग्रेस भी साथ हो सकते है?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आप चाहे विरोधी हो या समर्थक आप अब उसे अनदेखा नहीं कर सकते...1925 से प्रारम्भ हुई शाखा से राष्ट्र भाव जागरण की अनोखी पाठशाला आज करोड़ों लोगों को अपने से जोड़ने में कामयाब हो गयी है...
भाजपा से इसे जोड़ने वाले भूल जाते है संघ जब शुरू हुआ तब देश में एक ही राजनैतिक दल का वजूद था....अंग्रेजी शासन में पिछले रास्ते....जब क्रांतिकारी गोलियों से छलनी होने को तैयार थे तब कांग्रेस वार्ता,वार्ता और वार्ता के खेल में उलझी एक पहेली सी बन जाती थी....
क्या भगतसिंह, अशफाक उल्ला खान,राजगुरु,सुखदेव,पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जैसे क्रन्तिकारियों की समुचित पैरवी कॉंग्रेस ने कभी की....?
मुस्लिम लीग के बढ़ते प्रभाव,कांग्रेस के समझौतावादी चरित्र के कारण एक संगठन की जरूरत जब समाज महसूस कर रहा था तब डॉ केशवराव बलिराम हेडगेवार ने एक विकल्प दिया....राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ।
सत्ता नहीं,समाज बदलने की मानसिकता के साथ खड़े हुए संगठन को 23 साल की उम्र में जब उसका सामर्थ्य बढ़ने लगा तो प्रतिबन्धित कर दिया ....लगा टूट जाएगा....पर डॉ हेडगेवार के बाद उनके उत्तराधिकारी गुरुजी ने अपने नैसर्गिक आध्यात्मिक गुणों से ना केवल इसे खड़ा रखा बल्कि मजबूत भी किया....
फिर तो मानो संघ के स्वयंसेवकों ने ठान ही लिया...
आंखों में वैभव के सपने, पैरों में तूफानी गति हो
राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकता, आये जिस-जिस की हिम्मत हो...
आपातकाल में फिर प्रतिबंध.... शाखाओं पर हमले,हिकारत, सत्ता की प्रतिकूलता,नकारात्मक प्रचार की नित नई तकनीकों के इस्तेमाल के बावजूद "परमवैभव शाली राष्ट्र के लिए व्यक्ति निर्माण के माध्यम से सशक्त समाज निर्माण " का ध्येय लेकर लोग निकल पड़े....
परिवार,कैरियर सब कुछ .....भारत माता के नाम....पढ़ाई के स्वर्ण पदक... राष्ट्रदेव के चरणों में अर्पित होते गये.... शाखा से शाखाएँ फूट पड़ी....आज हिंदुस्तान के हर गांव तक संघ है भले ही भाजपा नहीं होगी,अब तो हिंदुस्तान में आपको सैंकड़ों ऐसे गांव मिल जाएंगे जहां कांग्रेस को भले ही नहीं जाने पर संघ वहां भी "नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे.... के भाव से शाखा लगाता हुआ कोई स्वयंसेवक दिख जायेगा...
कांग्रेस के छोटे से कार्यकर्ता से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक संघ के नाम को लेकर गालियां देने का चलन सा चल पड़ा....ठीक वैसे ही जैसे आजकल मोदी को वे गाली देते है....आखिर क्यों...?
संघ और कांग्रेस में टकराव का आधार क्या है इस पर जब विचार होता है तो सामने आते है चंद कारण....
संघ कहता है -भारत पुण्यभूमि है,जन्मभूमि है और यहां की हजारों बरस पुरानी परंपरा- संस्कृति है।
कॉन्ग्रेस की थ्योरी है-भारत एक जमीन का टुकड़ा है,और हम राष्ट्र अब बनाने जा रहे है। यहां कोई संस्कृति नहीं थी सब बाहर स आया इसलिए मिलाजुला...
संघ कहता है,भारत में रहने वाला हर व्यक्ति चाहे किसी भी पूजा पध्दति को माने हिन्दू है...हिन्दू कोई पूजा पद्दति नहीं जीवन शैली है जैसा सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा...
कांग्रेस कहती है-हिन्दू एक मजहब है जैसे इस्लाम और अन्य है और संघ का हिंदुत्व संकीर्ण है।
संघ मानता है कि हमारे पुरखे एक है चाहे किसी भी पूजा प्रणाली को अपनाया होगा इसलिए राम,कृष्ण,शिवाजी, राणा प्रताप,सुरजमल्ल हमारे पुरखे है और बाबर,औरंगजेब, खिलजी,अकबर आक्रांता....
वहीं कांग्रेस कहती है राम एक काल्पनिक चरित्र है ( कोर्ट में हलपनामा ) बाबर,अकबर,औरंगजेब, खिलजी का बड़ा योगदान। प्रताप,शिवाजी और सुरजमल्ल के बारे में अब तक पाठ्यक्रम में नकारात्मक ही पढ़ाया गया।
कांग्रेस का मानना है भारत माता की जय,वंदेमातरम से मुस्लिम समाज की भावनाएं आहत होती है तो इन नारों को बंद कर देना चाहिए, भारत तेरे टुकड़े होंगे वाले नारे पर वो आरोपियों का बचाव करने के लिए मैदान में उतर पड़ती है...
दूसरी ओर संघ का मानना है जिस धरती का जल,अन्न और हवा ग्रहण की उसकी वंदना से किसी को तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए और भारत तेरे टुकड़े होंगे कहने वालों पर हो ठोस कार्यवाही...
कांग्रेस संघ को गांधी हत्या का जिम्मेदार ठहराते हुए आतंकवादी संगठन से बराबर बताती है ....
तो संघ कांग्रेस को सत्ता के लिए देश विभाजन का जिम्मेदार ठहराते हुए कांग्रेस की महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की थ्योरी से इतर श्रेष्ठ महापुरुष मानकर अपने प्रातः स्मरण में याद करता है और अपने आपको राष्ट्रवादी विचार से ओतप्रोत सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन करार देता है।
इस वैचारिक लड़ाई में कांग्रेस को वाम दलों व समाजवादियों का हमेशा साथ मिलने और 60 साल सत्ता में रहते तीन बार प्रतिबंध थोपने के बावजूद संघ का ना केवल बने रहना बल्कि हर दिन नई शक्ति के साथ उभरना कांग्रेस को मुँह चिढ़ाता है.....
सत्ता के लिए जब सपा-बसपा एक हो सकते है ऐसे में एक नवयुवक ने पूछा मुझे कि क्या कभी संघ और कॉन्ग्रेस साथ हो सकते है ? तो मुझे लगा मेरे पास उत्तर स्पष्ट है....वैचारिक द्वंद इतने है और संघ को सत्ता में आना नहीं इसलिए कोई समझौता हो नहीं सकता हाँ यह नेहरूजी वाली कांग्रेस ना होकर सरदार पटेल वाली कांग्रेस होती तो शायद आज भाजपा नहीं होती....
पर यह तो उस कहावत को ही चरितार्थ करती ...ना नो मण तेल होगा ना राधा नाचेगी....
।।शिव।।
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