कश्मीरी पंडित....दर्द ना सुने कोई

#6
दर्द 27 साल का...कश्मीरी पंडितों का विस्थापन ...वो काली रात और सत्ता की अनदेखी....कब होगी वापसी...

आज़ादी के बाद से पाक पोषित अलगाव और कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन की अनदेखी के कारण कश्मीर के हालात खराब होते रहे.....एक एक कर इबादत करने वाली मस्जिदों से कश्मीर को हिन्दू मुक्त करने की साजिश होने लगी हुई......
चिनार की हवा जहरीली होने लगी....डल झील का पानी ठहरने लगा.... पर अब्दुल्ला परिवार के लिए दंडवत हुई कॉंग्रेस ने वोट तो हिंदुओं के लिए पर अनदेखी जारी रही.....
धीरे धीरे अलगाव की आग सीमा से होती हुई....मस्जिदों,मदरसों के रास्ते होकर अमन पसंद कश्मीरियों के दिलोदिमाग में घर करती गयी....
खुफिया एजेंसी हर बार कहती रही....अमन पर मंडरा रहा है खतरा ....दिल्ली से आते पैसे कश्मीरी नेताओं के पेट में जाते रहे .....और दिल्ली वाले नेता फारूक अब्दुल्ला की शेरो शायरी के दीवाने होते रहे ।
एकमात्र राजनीतिक दल के रूप में भारतीय जनता पार्टी धारा 370 और कश्मीर जैसे मुद्दों को उठाती रही क्योंकि उसके पूर्ववर्ती संगठन जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान उसी कश्मीर की सर जमी में हुआ है.... और उस समय फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्लाह शासन कर रहे थे ।
डॉ मुखर्जी एक देश में-एक निशान, एक प्रधान, एक विधान की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे और घाटी की जेल में ही उनकी मौत हो गई जो आज भी सवालों के घेरे में है ।
4 जनवरी 1990 को सरे आम एक उर्दू समाचार पत्र 
" आफताब"लिखता है कश्मीर को खाली करके हिन्दू चले जाएं....दीवारों पर घरों पर पोस्टर चस्पा होते है ....डरे हुए हिन्दू सरकार की ओर देखते है तो उन्हें एक आश्वासन मिलता है रटा-रटाया चिंता ना करें ...
पर जब एक्शन होता है तो ना प्रशासन होता है ना सरकार....स्थानीय पुलिस मूकदर्शक बन जाती है....अपने से लगते लोग अचानक से खून के प्यासे हो जाते है....अपने हाथों में पली बेटियों....अपने हाथों पर कलावा बंधवाने वाले....उन्हीं हाथों से आबरू लूटने पर उतारू हो गये.....
आज से 27 साल पहले 19 जनवरी 1990 को जो कुछ हुआ वो शांति, अमन, लोकतंत्र, भारत की एकता, धर्मनिरपेक्षता,भाईचारा, धरती का स्वर्ग जैसे सारे शब्दों को दफन कर गया घाटी में।
लहूलुहान हो गई पूरी घाटी कश्मीरी पंडितों के खून से ....बच्चों की किलकारी चीखों में बदल गयी...महिलाओं की हंसी काफूर हो गई....
 सामूहिक रूप से महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया उनके स्तन काट कर पाकिस्तान जिंदाबाद लिख दिया गया ....चाचा भैया कहने वाली बेटियां और बहने आज उनके लिए हवस का सामान हो गई ...देखते ही देखते पूरी कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन हो गई...
कश्मीरी पंडितों की चीख पुकार अनसुनी कर दी गई ...मानवाधिकार के पैरोकार पता नहीं कहां खो गए ....लाखों लोग अपने घरों से बेघर हो गए ....सरकार की आंख खुली तब तक देर हो चुकी थी ....घाटी से हिंदू निकल चुके थे लेकर जख्म..... जो कभी नहीं भरे जाने.... अपने ही देश में शरणार्थी बन जाने की पीड़ा... बरसों की मेहनत से कमाई संपत्ति को खो जाने का दर्द .....भाई बहन के रिश्ते को तार-तार हो जाने का गम .....और महिलाओं की आबरू लूट जाने का जख्म ....
आज 27 साल बाद भी वे अपने घरों तक नहीं लौट पाए और देश के नेता रोहिंग्या का दर्द बांटने की कोशिश में लगे है....

एक पीढ़ी विस्थापित शिविरों में बूढ़ी हो गयी औऱ एक पीढ़ी जवान हो गयी....
हाल ही में एक कश्मीरी IAS ने नोकरी छोड़ दी यह कह कर कि कश्मीर में मानवाधिकारों का हनन हो रहा है वो भी जब वे देश के सेना के जवानों पर पत्थर फेंके रहे हो और पैलेट गन के इस्तेमाल पर विपक्षी हायतौबा मचाते हो और कोर्ट रोक लगा देता हो....
वाह!रे मानवाधिकार पत्थर फेंके कर भी मानव बनें हुए है और सेनिकों को मारकर भी अधिकार रखते हो.....
एक ओर फट्टे तम्बुओं में जिंदगी बसर करने वाले,भारत में विश्वास रखने वाले ना मानवीय दृष्टिकोण से देखे गए ना ही अधिकार पर किसी ने चोंच खोली....
रोहिंग्या के लिए कोर्ट दरवाजे खटखटाने वालों को कश्मीरी पंडित याद नहीं आये...बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए खड़े होने वाले मानों अपनी जीभ को तालू से सिलवा चुके है....
काश!दर्द समझ सकते हम उनका तो 27 साल विस्थापित ना रहते वे....घाटी में बसा दिया होता पूर्व सैनिकों को हथियार के साथ....आज की तरह खुली छूट मिल गयी होती सेना को और.... कोर्ट पैलेट गन पर राम जन्मभूमि केस की तरह कह देता....इतना महत्वपूर्ण नहीं है ये मामला.....
कश्मीर फिर से पंडितों की हंसी से चहके....फिर मंदिरों से घण्टी की आवाज मस्जिद से आती अजान को संगीत दे...फिर शिकारे डल झील में चलें.....
अनुपम खेर फिर से अपनी जड़े तलाश सके....
खोने वाला दर्द तो खत्म नहीं होगा पर अपनी माटी की सोंधी खुशबू से फिर से जुड़ जाने की खुशियां भी कम नहीं होती..... बूढ़ी आंखों को इंतजार है फिर से अपने कश्मीर जाने का....युवाओं को अब भी चीखों के साथ याद है शिकारे की चाप....कहवे की खुशबू उसका स्वाद....
।।शिव।।

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