किसान को कर्जमाफी नहीं कीमत ही दिला दीजिये सरकार....

#7

50 हजार किसानों के दर्द को क्यों भूले...सरकार?

हुजूर .....माई बाप! रहम कर दीजिए आप मूंग खरीद लीजिए....चार दिन से बैठा हूँ.....ठंड है....घर वाले भी परेशान होंगे....

कहते कहते रामलाल का गला भरभरा रहा था और पास मैं खड़े सफेद लकदक कुर्ते-पाजामे में खड़ा व्यक्ति बोला....तुम लोगों को कुछ भी दे दो....तुम रोते ही रहोगे....सरकार को कोसते रहोगे,अभी तो मौज है तुम लोगों की ....कर्ज लो और चुकाओ मत....कर्ज माफ ओर करवा लेते हो,मुझे देखो 5 साल से होम लोन की किश्तें चुका रहा हूँ,गाड़ी की भी....

अफसर भी गला खखार कर बोला,हम भी क्या करें बाबा....आगे से आर्डर आये तो खरीदें मूंग तेरे....सेठजी को बेच जाओ और घर जाओ क्यों ठंड में  ठिठुररते हो,बिना मतलब.....

राम लाल अपनी कम्बल को ठीक करते हुए अपनी भरभराई आंखों के कोरों को पोंछते हुए नेता सरीखे आदमी से बोले...साहब आप ही नहीं चूकते किश्तें मैंने भी चुकाई है अपनी गाय बेचकर टाइम पर.....बैंक वालों को पूछ लो जाकर....पर कर्ज माफ हुआ उनका जो आपकी तरह नेतागिरी करते है जहां बैंक वाले जाते नहीं और गलती से चले भी जाएं तो फ़ोन की घण्टी ऐसी बजती है कि धिग्गिया जाते है या चाय पानी में सेटलमेंट हो जाता है....

वो बोले जा रहा था औऱ अंदर का दर्द बाहर आ रहा था.....पर उसकी सुनने के लिए कोई नहीं था,नेताजी कर्जमाफी करके इतरा रहे थे और अफसर ऊपरी आदेश की आड़ में किसान को आढ़तिये  के पास भेजने की कोशिश में था.....

यह संवाद और दृश्य राजस्थान की कृषि मंडियों में इन दिनों आम सा है....50000 पचास हजार से ज्यादा किसान समय देने के बावजूद मूंग की खरीद की वाट जो रहे है

एक ओर सरकारी खरीद की बाट जोहते किसान तो दूसरे और पत्र पत्र खेलती सरकार...

केंद्र की मोदी सरकार ने इस बरस  राज्य में मूंग उत्पादन का 25 फीसदी 2.39 लाख मीट्रिक टन मूंग खरीद करने का लक्ष्य रखा और अब तक की जानकारी के अनुसार 16.44 करोड़ के 2.36 लाख मीट्रिक टन मूंग खरीद लिया जो कि लक्ष्य का 99 फीसदी है....समस्या यहीं से आगे बढ़ी....राज्य सरकार द्वारा निर्धारित समय अवधि में आये किसानों में से लगभग 52000 किसान अपनी फसल को सरकारी मूल्य पर बेचना चाहती है तो केंद्र सरकार अपनी लक्ष्य की खरीद करने के बाद रुकी हुई है तो राज्य की कॉन्ग्रेस सरकार चाहती है कि केंद्र खरीदें....राज्य सरकार चाहे तो इसे 40 फीसदी तक बढ़ा सकती है पर वो चाहती है बारदाने से लेकर उसके बाजार तक का खर्च और बिक्री केंद्र सरकार ही देखे.....

किसान अपनी फसल को सरकारी दर पर यानी 6975 रूपये में बेचना चाहता है तो बाजार में आढ़तिये, साहूकार उसे 3500 से 4000 का भाव दे रहे है.....यह राज्य सरकार का पत्र भी कहता है.....

किसान ने यदि आढ़तिये को मूंग बेचा तो उसे कर्ज ही लेना होगा और तब किसान फिर अंतहीन चक्र में फस जाएगा.....

राम लाल की तरह कर्ज चुकाने को कुछ बेचेगा या फिर जीवन लीला समाप्त कर लेगा.....

या फिर किसान उस राह पर आगे बढ़ेगा जो देश और प्रदेश के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होगी.....

अपनी खून पसीने की उपज को जब किसान सरकारी संवेदनहीनता के चलते कम दामों पर बेचने के मजबूर होता है तब ही उसके मन में खेत से बेरुखी के भाव लाती है और वो खेत खलिहान छोड़ मनरेगा जैसी योजना से जुड़ जाता है.....

एक कल्पना करके देखिए सुने खेत खलिहानों की....बिना उपज के खाली पड़ी मंडियों की....अन्नदाता की थोडी सी बेरुखी देश में भुखमरी, अराजकता ला देगी.....

किसानों के लिए दरवाजे खुले होने का नेता भाषण ही ना दें थोड़ा सा मन का द्वार ही खोल लें.....

।।शिव।।

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