#29
माँ शारदे की पावन पीठ के बिना अधूरा हिंदुस्थान....क्या कभी सत्ता के लिए देश विभाजन स्वीकारने वाले नेताओं की आत्मा उन्हें कचोटती होगी....?
कभी शारदा प्रदेश रहा कश्मीर आज माँ शारदे की कृपा से वंचित है और माँ शारदे की पावन पीठ पूजन से महरूम है.....क्या कभी जागेगा हमारा सोया खून..?
देश की चार दिशाओं में राष्ट्रीय एकात्मता के प्रतीक चार मठों की स्थापना करने के बाद आदि शंकर को मां सरस्वती की कृपा प्राप्त हुई ।
कहते हैं कि जब शंकर अपने शिष्यों के साथ गंगा किनारे बैठे थे तभी किसी ने समाचार दिया कि कश्मीर में एक स्थान है जहां माँ शारदे का निवास है और उस स्थान पर एक मंदिर बना हुआ है जो माता शारदा को समर्पित है ।उसके चार द्वार हैं और मंदिर के परिसर में सर्वज्ञ पीठ है जिस पर केवल वही व्यक्ति आरूढ़ हो सकता है जो सबसे बड़ा ज्ञानी हो ।
ऐसा वृतांत विद्यारण्य द्वारा लिखित शंकर दिग्विजय ग्रंथ में आता है ।
कहते हैं उस मंदिर के पूर्व, पश्चिम, और उत्तर दिशा के द्वार इन दिशाओं से आए विद्वानों से खुल चुके थे पर दक्षिण दिशा से कोई आया नहीं था इसलिए आदि शंकर ने तय किया कि वे दक्षिण दिशा से जाएंगे ।
जब वे कश्मीर में पहुंचे तो अनेक विद्वानों ने न्याय, दर्शन ,सांख्य दर्शन, बौद्ध एवं जैन जैसे अनेक विषयों के विद्वानों से उनका मुकाबला हुआ और इन प्रतिस्पर्धाओं में आदि शंकर ने अपनी तर्कशक्ति,बुद्धि -विवेक से अपनी श्रेष्ठता साबित की ।
उसके बाद दक्षिण का द्वार खुला और वे उस मंदिर में प्रवेश कर पाए और उस सर्वज्ञ पीठ पर आरूढ़ हुए।
मां सरस्वती की कृपा से उनकी विद्वता की कीर्ति पताका अब चारों दिशाओं में फहरा रही थी ।यही वे शंकर से शंकराचार्य कहलाए ।यहीं आचार्य शंकर ने मां सरस्वती की आराधना की और उनके द्वारा रची गई स्तुति जिसका विद्यालयों में आज भी गान होता है -
"नमस्ते शारदे देवि काश्मीरपुर वासिनि त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानम देहिमे।"
पर कश्मीरपुर वासनीसनी मां शारदे का वह पवित्र स्थान अब भारत में नहीं है,अब यह पावन पीठ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चली गई है ।
कभी आचार्य शंकर को शंकराचार्य बनाने वाली पीठ के आज महज भग्नावशेष ही बचे हैं।
हम भले ही आज बसंत पंचमी और नवरात्रा में ,लक्ष्मी पूजा में मां शारदे की प्रार्थना आदि शंकराचार्य द्वारा रचित श्लोकों से करते हो पर उस पावन पीठ को हम लगभग भूल चुके हैं जिस पीठ पर स्वयं आदि शंकराचार्य विराजमान हुए थे।
यह पावन पीठ मां शक्ति के 18 शक्तिपीठों में से एक है ।
इस पीठ पर केवल कश्मीरी पंडित ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश से लोग आते थे दर्शन-पूजन करने,आशीर्वाद लेने के लिए।
मुजफ्फराबाद झेलम और किशन गंगा नदियों के संगम पर बसा हुआ छोटा सा नगर है और किशन गंगा के तट पर ही मां शारदा का यह पावन गांव शारदा नाम से स्थित है।
कहते हैं कनिष्क के राज में यह संपूर्ण मध्य एशिया का सबसे बड़ा ज्ञान केंद्र था, एक पुस्तक है "वंडर दैट वाज इंडिया" जिसे ए एल बेसन ने लिखा है ।जिसमें वे बताते हैं कि बच्चों के उपनयन संस्कार के समय बच्चे कश्मीर गच्छामि कहते थे जो इस बात का द्योतक है कभी कश्मीर उच्च शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र रहा होगा।
आज अलगाव की भूमि,कभी ज्ञान और धर्म की भूमि हुआ करती थी।आचार्य अभिनव गुप्त जो कि शंकराचार्य के समकक्ष सम्मानित समझे गए हैं उन्होंने कश्मीर का वर्णन करते हुए लिखा है कि यहां स्थान स्थान पर ऋषियों की कुटिया थी और पद पद पर भगवान शिव का वास था।
सवाई माधोपुर के रहने वाले प्रमोद पंडित बताते हैं कि शारदा पीठ का उल्लेख राज तरंगिणी में मिलता है जिसे कल्हण ने लिखा था। जिसमें कहा गया है कि सम्राट ललितादित्य के समय में शारदा पीठ में जो विश्वविद्यालय संचालित था उसमें बंगाल के गौड़ समुदाय के लोग अधिकतम संख्या में आते थे और इस विश्वविद्यालय में 14 विषयों की पढ़ाई होती थी ,यही शारदा लिपि का जन्म हुआ था ।
वह बताते हैं कि इसके अलावा नीलमत पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है ।
जो भी हो आज जब बसंत पंचमी की हम पूजा कर रहे हैं तो मां शारदे की पीठ का स्मरण करना हम सब के लिए आवश्यक है। इस बात के लिए भी कि हम अपनी इस पीठ से वंचित हैं, वह ज्ञान की पीठ जिस पर स्वयं आदि शंकराचार्य विराजमान हुए, वह स्थान जो हमारे लिए पवित्र है आज परकीय हाथों में है ।
आज यह संकल्प भी होना चाहिए... एक दिन हम इस पावन स्थान को लेकर रहेंगे, पूजन करेंगे। एक दिन फिर से उस स्थान पर गूंजेगा "नमस्ते शारदे देवि काश्मीरपुर वासिनि त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानम देहिमे।"
यह नेताओं के भरोसे नहीं,यह संभव है हमारी माताओं,बहनों और गुरुओं के भरोसे से जो भारत की भावी पीढ़ी को संस्कार दें माता जीजा-सा,समर्थ गुरु रामदास -सा....
काश!भारत की हर माँ जीजा माता सा संकल्प ले ले...
बसंत पंचमी पर शहीद हकीकत राय के पुण्य स्मरण,माँ शारदे,आदि शंकराचार्य और उस पावन पीठ का मानस पूजन करते हुए आप सभी को शुभकामनाएं देता हूँ।
।।शिव।।
माँ शारदे की पावन पीठ के बिना अधूरा हिंदुस्थान....क्या कभी सत्ता के लिए देश विभाजन स्वीकारने वाले नेताओं की आत्मा उन्हें कचोटती होगी....?
कभी शारदा प्रदेश रहा कश्मीर आज माँ शारदे की कृपा से वंचित है और माँ शारदे की पावन पीठ पूजन से महरूम है.....क्या कभी जागेगा हमारा सोया खून..?
देश की चार दिशाओं में राष्ट्रीय एकात्मता के प्रतीक चार मठों की स्थापना करने के बाद आदि शंकर को मां सरस्वती की कृपा प्राप्त हुई ।
कहते हैं कि जब शंकर अपने शिष्यों के साथ गंगा किनारे बैठे थे तभी किसी ने समाचार दिया कि कश्मीर में एक स्थान है जहां माँ शारदे का निवास है और उस स्थान पर एक मंदिर बना हुआ है जो माता शारदा को समर्पित है ।उसके चार द्वार हैं और मंदिर के परिसर में सर्वज्ञ पीठ है जिस पर केवल वही व्यक्ति आरूढ़ हो सकता है जो सबसे बड़ा ज्ञानी हो ।
ऐसा वृतांत विद्यारण्य द्वारा लिखित शंकर दिग्विजय ग्रंथ में आता है ।
कहते हैं उस मंदिर के पूर्व, पश्चिम, और उत्तर दिशा के द्वार इन दिशाओं से आए विद्वानों से खुल चुके थे पर दक्षिण दिशा से कोई आया नहीं था इसलिए आदि शंकर ने तय किया कि वे दक्षिण दिशा से जाएंगे ।
जब वे कश्मीर में पहुंचे तो अनेक विद्वानों ने न्याय, दर्शन ,सांख्य दर्शन, बौद्ध एवं जैन जैसे अनेक विषयों के विद्वानों से उनका मुकाबला हुआ और इन प्रतिस्पर्धाओं में आदि शंकर ने अपनी तर्कशक्ति,बुद्धि -विवेक से अपनी श्रेष्ठता साबित की ।
उसके बाद दक्षिण का द्वार खुला और वे उस मंदिर में प्रवेश कर पाए और उस सर्वज्ञ पीठ पर आरूढ़ हुए।
मां सरस्वती की कृपा से उनकी विद्वता की कीर्ति पताका अब चारों दिशाओं में फहरा रही थी ।यही वे शंकर से शंकराचार्य कहलाए ।यहीं आचार्य शंकर ने मां सरस्वती की आराधना की और उनके द्वारा रची गई स्तुति जिसका विद्यालयों में आज भी गान होता है -
"नमस्ते शारदे देवि काश्मीरपुर वासिनि त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानम देहिमे।"
पर कश्मीरपुर वासनीसनी मां शारदे का वह पवित्र स्थान अब भारत में नहीं है,अब यह पावन पीठ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चली गई है ।
कभी आचार्य शंकर को शंकराचार्य बनाने वाली पीठ के आज महज भग्नावशेष ही बचे हैं।
हम भले ही आज बसंत पंचमी और नवरात्रा में ,लक्ष्मी पूजा में मां शारदे की प्रार्थना आदि शंकराचार्य द्वारा रचित श्लोकों से करते हो पर उस पावन पीठ को हम लगभग भूल चुके हैं जिस पीठ पर स्वयं आदि शंकराचार्य विराजमान हुए थे।
यह पावन पीठ मां शक्ति के 18 शक्तिपीठों में से एक है ।
इस पीठ पर केवल कश्मीरी पंडित ही नहीं बल्कि संपूर्ण देश से लोग आते थे दर्शन-पूजन करने,आशीर्वाद लेने के लिए।
मुजफ्फराबाद झेलम और किशन गंगा नदियों के संगम पर बसा हुआ छोटा सा नगर है और किशन गंगा के तट पर ही मां शारदा का यह पावन गांव शारदा नाम से स्थित है।
कहते हैं कनिष्क के राज में यह संपूर्ण मध्य एशिया का सबसे बड़ा ज्ञान केंद्र था, एक पुस्तक है "वंडर दैट वाज इंडिया" जिसे ए एल बेसन ने लिखा है ।जिसमें वे बताते हैं कि बच्चों के उपनयन संस्कार के समय बच्चे कश्मीर गच्छामि कहते थे जो इस बात का द्योतक है कभी कश्मीर उच्च शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र रहा होगा।
आज अलगाव की भूमि,कभी ज्ञान और धर्म की भूमि हुआ करती थी।आचार्य अभिनव गुप्त जो कि शंकराचार्य के समकक्ष सम्मानित समझे गए हैं उन्होंने कश्मीर का वर्णन करते हुए लिखा है कि यहां स्थान स्थान पर ऋषियों की कुटिया थी और पद पद पर भगवान शिव का वास था।
सवाई माधोपुर के रहने वाले प्रमोद पंडित बताते हैं कि शारदा पीठ का उल्लेख राज तरंगिणी में मिलता है जिसे कल्हण ने लिखा था। जिसमें कहा गया है कि सम्राट ललितादित्य के समय में शारदा पीठ में जो विश्वविद्यालय संचालित था उसमें बंगाल के गौड़ समुदाय के लोग अधिकतम संख्या में आते थे और इस विश्वविद्यालय में 14 विषयों की पढ़ाई होती थी ,यही शारदा लिपि का जन्म हुआ था ।
वह बताते हैं कि इसके अलावा नीलमत पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है ।
जो भी हो आज जब बसंत पंचमी की हम पूजा कर रहे हैं तो मां शारदे की पीठ का स्मरण करना हम सब के लिए आवश्यक है। इस बात के लिए भी कि हम अपनी इस पीठ से वंचित हैं, वह ज्ञान की पीठ जिस पर स्वयं आदि शंकराचार्य विराजमान हुए, वह स्थान जो हमारे लिए पवित्र है आज परकीय हाथों में है ।
आज यह संकल्प भी होना चाहिए... एक दिन हम इस पावन स्थान को लेकर रहेंगे, पूजन करेंगे। एक दिन फिर से उस स्थान पर गूंजेगा "नमस्ते शारदे देवि काश्मीरपुर वासिनि त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानम देहिमे।"
यह नेताओं के भरोसे नहीं,यह संभव है हमारी माताओं,बहनों और गुरुओं के भरोसे से जो भारत की भावी पीढ़ी को संस्कार दें माता जीजा-सा,समर्थ गुरु रामदास -सा....
काश!भारत की हर माँ जीजा माता सा संकल्प ले ले...
बसंत पंचमी पर शहीद हकीकत राय के पुण्य स्मरण,माँ शारदे,आदि शंकराचार्य और उस पावन पीठ का मानस पूजन करते हुए आप सभी को शुभकामनाएं देता हूँ।
।।शिव।।
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