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सच में बढ़ी बेरोजगारी या आंकड़ों में है खेल..? वाहनों की हो रही है बिक्री और प्रोविडेंट फंड में कटौती वाले युवा भी बढ़े फिर क्यों उठे सवाल...? दो सदस्यों के इस्तीफे के तार कहाँ जुड़े है...? या उनके दावों में है दम..?

हाल ही में एक समाचार पत्र में भारतीय आंकड़ा आयोग के हवाले से खबर प्रकाशित की गई या यू कहें कि भारतीय आंकड़ा आयोग की बनी हुई एक रिपोर्ट को लीक किया गया जिसमें यह दावा किया गया है कि भारत की वर्तमान बेरोजगारी दर 6.1 फ़ीसदी की है जबकि यह 2011 12 में 2.2 फिसदी थी ।
इस रिपोर्ट के माध्यम से यह कहने का प्रयास किया गया है कि भारत में बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है ।
अब सवाल उठता है क्या इसके लिए पिछले 55 माह से काम कर रही नरेंद्र मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है या इसकी जिम्मेदारी किसी और की भी है ।
भारत जहां कि विशाल जनसंख्या का 65% भाग युवा है जो 35 साल से कम उम्र के है।
 एक और भारतीय आंकड़ा आयोग द्वारा बेरोजगारी बढ़ने की ओर इशारा किया गया है वहीं भारत सरकार के थिंक टैंक समझे जाने वाली नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने इसे नकार दिया है ।
उनका यह कहना है कि इस रिपोर्ट को भारत सरकार ने स्वीकार नहीं किया है इसलिए यह एक महज ड्राफ्ट है और इस पर कोई राय नहीं दी जा सकती ।
चुनाव से ठीक पहले इन आंकड़ों का जारी होना और भारतीय आंकड़ा आयोग के 2 सदस्यों का इस्तीफा दे देना महत्वपूर्ण समझा जाता है ।
हम सब जानते हैं कि देश  में रोजगार के दो क्षेत्र हैं एक संगठित क्षेत्र जहां कुल रोजगार की 10 से 15 फ़ीसदी हिस्सेदारी है जबकि असंगठित क्षेत्र में 80 से 85% की भागीदारी है ।
संगठित क्षेत्र के ही पिछले दिनों की गतिविधियों पर नजर डालें तो नजारा कुछ औऱ ही कहता है।
 सितंबर 2017 से नवंबर 2018 तक के 15 महीनों में 1,80,00000 लोगों ने पहली बार प्रोविडेंट फंड में अपने पैसों की कटौती की जिसमें से 64% लोग 28 वर्ष से कम उम्र के थे ।कहने का अर्थ यह है कि लगभग 2 करोड लोगों ने प्रोविडेंट फंड में अपना अंशदान दिया। यह तभी कर पाये होंगे जब  उन्हें रोजगार उपलब्ध हुआ ।
इसी प्रकार हम मार्च 2014 के आंकड़े देखें तो लगभग 6500000 लोगों ने नेशनल पेंशन स्कीम में अपने आप को रजिस्टर्ड करवाया जबकि गत वर्ष अक्टूबर के यह आंकड़े बढ़कर 12000000 से भी ज्यादा हो गए हैं जोकि लगभग 2 गुना है।

 इसके अलावा इनकम टैक्स रिटर्न भरने वालों में जो नॉन कॉरपोरेट टैक्सपेयर है अर्थात जो प्रोफेशनल है वह पिछले 4 सालों में 635000 नए जुड़े हैं ।
निश्चित रूप से उन्होंने भी नए रोजगार के अवसरों का सृजन किया होगा क्योंकि उनके यहां भी ऑफिस और अन्य कार्यो के लिए लोग उनके साथ जुड़ते हैं ।
यदि असंगठित क्षेत्र की बात करें और केवल ट्रांसपोर्ट सेक्टर के आंकड़ों को हम सरसरी नजर से देखें तो ध्यान में आता है पिछले 4 वर्षों में 36,00000  लाख बड़े ट्रक या कमर्शियल व्हीकल खरीदे गए वहीं डेढ़ करोड़ पैसेंजर व्हीकल और 27 लाख से अधिक ऑटो की बिक्री हुई है।
 ट्रांसपोर्ट सेक्टर में इस बढ़ी हुई भागीदारी में निश्चित रूप से ही सेवा क्षेत्र में बड़े रोजगार के अवसर मिले होंगे और लगभग 2 करोड लोग ट्रांसपोर्ट सेक्टर में नये रोजगार के अवसरों से जुड़े हैं ।
इसके अलावा होटल व्यापार में भी 50% से ज्यादा की वृद्धि हुई है जो यह बताती है कि लगभग डेढ़ करोड़ लोग होटल व्यवसाय में अपना रोजगार प्राप्त कर रहे हैं।
 एक और रोजगार के अवसर घटने की बात कही जा रही है वहीं दूसरी ओर सरकारी आंकड़े जो कि मुद्रा योजना के हैं वह बताते हैं कि पहली बार लोन लेने वालों की संख्या 4. 25 करोड़ से ज्यादा की है।
इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में कॉमन सर्विस सेंटर खोले गए हैं जिनकी संख्या 200000 से अधिक है ।हाईवे, रेलवे, नए मकानों के निर्माण में, एयरपोर्ट, नए मेडिकल कॉलेज और यूनिवर्सिटी के निर्माण में निश्चित ही नए रोजगार के अवसरों का सृजन हुआ है ।
ऐसे में रोजगार के अवसरों में कमी वाले आंकड़े कहीं अतिशयोक्ति पूर्ण लगते हैं।
भारतीय जनता पार्टी के सीकर जिला अध्यक्ष एवं स्वदेशी जागरण मंच के पूर्व पदाधिकारी विष्णु चेतानी बताते हैं कि यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल में रोजगार के अवसरों में जिस प्रकार कमी आई और देश में भ्रष्टाचार का जिस प्रकार का खेल खेला गया उससे देश की आर्थिक प्रगति बाधित हुई और रोजगार के अवसरों के सृजन में कमी आई ।

 उन्होंने बेरोजगारी के कथित आंकड़े लीक करने और दो सदस्यों के इस्तीफा देने के समय पर भी सवाल उठाते हुए कहा ऐसा क्या कारण है कि किसी कमीशन के सदस्य अपनी रिपोर्ट को मनवाने के लिए ही दबाव बनाने पर अड़े हो...? क्या यह चुनाव में किसी सरकार की छवि पर प्रश्नचिन्ह लगाने का मामला तो नहीं..?
जो भी हो देश की आबादी का 65% युवा आज रोजगार की ओर देखता है इसलिए सरकार को अपनी नीति जहां स्पष्ट करनी होगी वही सवाल उठा रहे विपक्ष को भी वह रोजगार के सृजन कैसे बढ़ाएंगे इस पर अपनी स्पष्ट राय देश के युवाओं के समक्ष बतानी ही होगी। 
पर हिंदुस्तान में विकास, रोजगार और सुशासन मुद्दे नहीं होकर भावनात्मक रूप से मुद्दे बनाए जाते हैं किसी के लिए मोदी महत्वपूर्ण है तो किसी के लिए प्रियंका में इंदिरा गांधी की छवि ..?

क्या देश का युवा पिछले 5 साल के काम के आधार पर मोदी सरकार को फिर से चुनेगा या  5 साल पहले की 10 साल वाली यूपीए सरकार के कामकाज के लिए पुराने अखबारों को पढ़कर वोट करेगा...?
 यह फैसला युवाओं को करना है और मुझे लगता है भारत का युवा समझदार है,वो देश की तरक्की,खुशहाली और स्वाभिमान के लिए वोट करेगा।
।।शिव।।

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