पुलवामा हमले के बाद एक बार फिर सवाल उठता है कि पाकिस्तान से कैसे निपटा जाए.....

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब शहीद हुए सैनिकों की पार्थिव देह की परिक्रमा कर रहे थे तो देखा होगा,जिस किसी ने भी उनके कदमों को,उनके चेहरे को वे सहज ही अनुमान लगा सकते है कि अपने आपको लौहपुरुष सरदार पटेल का अनुगामी कहलाने वाला अंदर ही अंदर तूफान से गुजर रहा था।
सबसे मजबूत प्रधानमंत्री की छवि को 30 बरसों के सबसे बड़े हमले ने क्षति पहुंचाई थी तो देश को बहुत बड़ा नुकसान....
मोदी सरकार ने पहले फैसले के रूप में पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीना तो दूसरे प्रहार के रूप में भारत में 200 फीसदी डयूटी चार्ज लगाकर कमर तोड़ दी।
भारतीय व्यापारियों ने सीमेंट आयात के करार रद्द कर दिए,पाकिस्तान भेजे जाने वाले आदेश भी निरस्त कर दिये, अब हालात ये है कि पाक सीमा में हजारों ट्रक खड़े है भारत में प्रवेश पाने को और यहाँ कोई खरीददार नहीं......
पाकितान के बाजार में टमाटर,लौकी जैसी सब्जियों के दामों ने आग लगा दी है।
अब एक सुझाव बार-बार आ रहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल समझौते को समाप्त कर दिया जाए ।
आइए, जानते हैं आखिर क्या है सिंधु जल समझौता ?
भारत पाक के मध्य हुए पहले युद्ध के बाद भारत ने पाकिस्तान जाने वाले जल को रोकने का फैसला किया था जिस पर 1949 में अमेरिकी विशेषज्ञ डेविड लिलियंथल ने इस जल पानी को राजनीतिक नजरिए से अलग तकनीकी एवं व्यापारिक नजरिए से सोचने की सलाह दी थी औऱ उन्होंने विश्व बैंक से इस मामले में मध्यस्थता करने का सुझाव भी दिया था। जिस पर 1951 में विश्व बैंक के अध्यक्ष यूजिंग रॉबर्ट्स ने मध्यस्थता की।
10 साल की बैठकों और चर्चाओं के बाद 19 सितंबर 1960 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान के बीच रावलपिंडी में समझौता हुआ जो कि 12 जनवरी 1961 से लागू किया गया।
क्या है समझौते में..?
 समझौते में भारत की ओर से पाकिस्तान में 6 नदियां जाती है जिसमें से पूर्वी क्षेत्र से रावी,व्यास, सतलुज और पश्चिमी क्षेत्र से झेलम, चिनाव और सिंधु का जल पाकिस्तान जाता रहा है। समझौते के तहत पूर्वी नदियों रावी, व्यास और सतलज का पूरा पानी भारत उपयोग करेगा और पश्चिमी क्षेत्र की तीन नदियों झेलम, चिनाव और सिंध का पानी पूरा पाकिस्तान को जाएगा।
 इस समझौते में भारत सरकार ने अपना बहुत कुछ खोते हुए इन 6 नदियों का का 80% हिस्सा पाकिस्तान को देना स्वीकार कर लिया। इस समझौते में यह प्रावधान किया गया कि भारत कृषि के लिए इस जल का उपयोग कर सकता है। हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बन सकते हैं पर बिना जल को रोके। ऐसे में भारत को वहां रन ऑफ रिवर प्रोजेक्ट ही बनाने होंगे।
सिंधु नदी और पाकिस्तान
सिंधु नदी दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है जो लगभग 3000 किलोमीटर लंबी बहती है।  वे गंगा से भी बड़ी नदी है जो अपनी पांच सहायक नदियों चिनाब, झेलम, सतलज ,रावी और व्यास के साथ पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से को चल पहुंचाती है ।
क्यों पाकिस्तान के लिए महत्वपूर्ण है सिंधु जल समझौता?
 क्योंकि पाकिस्तान का 65% हिस्सा सिंधु जल पर निर्भर है पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ जमीन की सिंचाई होती है और इन नदियों पर पाकिस्तान की विभिन्न जल, बिजली परियोजनाएं संचालित है।

सिंधु नदी की बात करें तो वह करीब साढे 11  लाख वर्गकिलोमीटर में फैला है जिसका क्षेत्रफल उदाहरण के तौर पर  उत्तर प्रदेश जैसे चार राज्य उसमें समाहित हो सकते हैं ।
सिंधु और सतलज का उद्गम चीन से हुआ है तो बाकी चिनाब, झेलम, रावी और व्यास यह नदियां भारत से ही निकलती है। क्या भारत सिंधु जल समझौते को तोड़ सकता है?
आज तक भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय संधियों और कानूनों को मानने वाले देश के रूप में रही है ।एक आदर्शवादी  नजरिए से देखें तो भारत इस समझौते को नहीं तोड़ेगा पर समझौता जिस कारणों के बीच हुआ था उसमें अहम थे। शांति, सौहार्द और आपसी सद्भाव ।
भारत द्वारा जल समझौता स्वीकार भी इसीलिए किया गया था की क्षेत्र में शांति,सौहार्द और आपसी सद्भाव बना रहे।परन्तु पाकिस्तान लगातार भारत के आंतरिक मामलों में और देश की रक्षा, सुरक्षा, समृद्धि से जुड़े मामलों में  हस्तक्षेप कर रहा है ।
हाल ही में पुलवामा में आंतकी हमला कर उसके द्वारा पोषित और सेना के द्वारा नियंत्रित जैश ए मोहम्मद के आतंकवादियों ने भारतीय सुरक्षा बलों के 45 जवानों को शहीद कर दिया गया। क्योंकि समझौते की मूल भावनाओं का अस्तित्व भी जब नहीं रहा है तो ऐसे में सिंधु जल समझौते को समाप्त किया जा सकता है।
क्यों सोती रही सरकारें..?
 भारत और पाकिस्तान के बीच हुए जल समझौते में भारत को 33 मिलयन एमएफ पानी मिलना है जिसमें से अभी भी 31 मिलियन एमएफ जल ही उपयोग में लिया जा रहा है औऱ भारत के हिस्से का 2 मिलियन एमएफ जल पाकिस्तान को चला जाता है ।
सवाल उठता है कि हम कावेरी के मुद्दे पर दो राज्यों के आमने सामने होने को देखते रहे,हरियाणा,राजस्थान अपने अपने दावों पर मुँह फुलाते रहे पर पाकिस्तान हमारे कानूनी हिस्से के 2 मिलियन एमएफ जल से मौज मनाता रहा।
 यदि यह जल जो कि समझौते के अनुसार भारत का हक है रुक जाता है और इसे उपयोग में लिया जाता है तो जम्मू कश्मीर, हरियाणा,पंजाब और राजस्थान को इस जल का लाभ मिलेगा ।
अब क्या एक्शन प्लान मोदी का

प्रधानमंत्री मोदी ने उरी में हुए हमले के बाद जल संसाधन मंत्रालय को जो निर्देश दिया था उसके अनुसार योजना बनाई जा रही है बताया जाता है कि सिंधु और झेलम में 35 लाख वर्गफ़ीट का स्टोरेज किया जा सकता है जिससे 18000 मेगावाट बिजली बनाई जा सकती है।

 इसके लिए नए बांध और हाइड्रो प्रोजेक्ट पर तेजी से काम करना शुरू किया गया है। शाहपुर-कण्डी बांध परियोजना,उझ नदी डैम प्रोजेक्ट और रावी-ब्यास लिंक2 परियोजना जैसे  तीन प्रोजेक्ट प्रारंभ किये गए है। जिन पर साढ़े आठ हजार करोड़ से ज्यादा खर्ज किया जाएगा। हाल ही में नदियों के रास्ते जल परिवहन करने की दिशा में उठाए गए कदमों के बाद दुलबुल नेविगेशन में झेलम से गाद हटाने का काम प्रारंभ हुआ है।
इस बार शायद भारत मजबूत कदम उठा लें  और केवल 2 मिलयन एमएफ पानी का ही नहीं भविष्य में पाकिस्तान को बून्द बून्द के तरसने को मजबूर कर सके ऐसी क्षमता वाले बांध और परियोजना विकसित करें।
पर इसके लिए चाहिए वक्त....और वो वक्त मोदी सरकार के पास नहीं है क्योंकि अब यह देश की जनता के हाथ में है कि  वो 70 साल की अनदेखी के बाद उठ रहे कदमों के साथ देगी या अटल सरकार की तरह ही परमाणु की शक्ति पर प्याज की कीमतों को वरीयता देगी.....?
।।शिव।।

Comments

Sangeeta tak said…
दमदार लेखन
बहुत ही शानदार लेख
������

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