परिक्रमा क्यों...? आखिर कब होगा पराक्रम..?
भारत-पाक मसले का हल आखिर हो क्या....? इस पर जब चर्चा होती है तो कुछ लोग कहते हैं कि बातचीत से ही हल निकलता है....तो कुछ लोग पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी वाजपेयी के कथन को उद्धत करते हुए कहते हैं कि पड़ोसी बदले नहीं जा सकते.....
पड़ोसी नहीं बदले जा सकते हैं तो क्या देश पुलवामा जैसे आतंकी हमलों को सहन करने के लिए तैयार हैं...?
यदि नहीं तो पड़ोसी बदलकर नहीं मिटाकर नए पडोसी बनाये जा सकते हैं...?
बात जब किसी से बात करने की हो,तो आखिर की किससे जाये...? पाकिस्तान के मामला में तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि बात आखिर करें किससे.... जिसके हाथ में सत्ता है वह शक्तिविहीन है जो शक्ति रखते है उनका स्वार्थ ही भारत विरोध बनें रहने में है क्योंकि उनके पास शक्ति होने का कारण ही भारत का शक्ति सम्पन्न होना है.....
बातचीत करने से पहले हमें यह ध्यान में रखना होता है कि सामने वाले देश की पृष्ठभूमि और उसकी मानसिकता क्या है ...?
पिछले 70 सालों में बांग्लादेश अपवाद को छोड़कर अधिकत्तर हमारी सरकारों की नीति प्रतिक्रियावादी,अल्पकालिक और गलत अनुमानों पर आधारित रही है क्योंकि हमारी नीतियों पर पंडित नेहरू के आदर्शवादी विचारों की छाप सदैव ही बनी रही ।उनसे प्रेरणा पाने वाले नीति निर्माताओं और बौद्धिक खेमे में राष्ट्रवाद और यथार्थवाद की कमी महसूस की जाती रही है ।पाकिस्तान के मसले पर बात करने के लिए दिए जा रहे सुझाव पर जब गौर करें तो एक सवाल उठता है हम बात करें तो आखिर किससे ......
पाकिस्तान में कई पक्ष है, सेना है जो देश चलाती है उसमें भी आई एस आई जैसे संगठन है जिसे वहां "डीप स्टेट" कहा जाता है और जो कि वहां की असली ताकत है इसका कारण है कि सरकारी मशीनरी पर आई एस आई का ही नियंत्रण है ।
वहां जो लोकतंत्र के चेहरे हैं वह केवल मुखोटे है चाहे वे नवाज़ शरीफ़ हो या इमरान खान।इसलिए सरकार अभी वहां ताकत नहीं है ।
सेना ने कई धार्मिक संगठनों को इसलिए हुक्का पानी दिया है ताकि उनका कंट्रोल सरकार पर बना रहे लश्कर-ए-तैयबा हो या जमात-उद-दावा या फिर तहरीक-ए-तालिबान यह वही है जो बड़े भाई का कुर्ता और छोटे भाई का पजामा पहन कर दहशत गर्दी फैलाते रहते हैं ।
अब वे धीरे-धीरे ताकतवर होते जा रहे हैं,उन्हें अपने इस्लामिक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का फायदा मिल रहा है।
सेना से भी आगे निकल चुके इन दहशतगर्दों को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन आईएसआईएस से भी समर्थन मिल रहा हैं ।
पाकिस्तान में कहा जाता है कि पाकिस्तान को अल्लाह,आर्मी और अमेरिका चलाते हैं जब बातचीत करनी है तो हमें पाकिस्तान में बाहरी तत्व चीन,अमेरिका और सऊदी अरब के प्रभाव को भी ध्यान में रखना होगा।
अब महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी देश, वहां की सरकार से बात करता है और पाकिस्तान में सरकार केवल सेना का मुखौटा है जो कि पाकिस्तान को लोकतांत्रिक बनाए रखने में उसकी मदद करता है।
सेना से आखिर बात हो तो कैसे ? क्योंकि उसका तो केवल फायदा है ही इसी में कि पाकिस्तान में भारत के प्रति डर बना रहे भारत की ताकत का, भारत का सामर्थ्य का ।
पाकिस्तान में और उसकी आवाम में जब तक डर है और जब तक कश्मीर मुद्दा बना है पाकिस्तानी सेना सामाजिक और राजनीतिक रूप से वहां मजबूत रहती है ।
राजनीतिक और सामाजिक तौर पर मजबूती के अलावा राजस्व के बड़े हिस्से को सेना अपने कब्जे में ले लेती है।
पाकिस्तान में जिहादी गुट भी है जो कश्मीर,इस्लाम और अल्लाह की मर्जी के नाम पर धन लूटने में लगे हुये है वह भी अब धीरे-धीरे बेकाबू होने लगे हैं ।
यदि दोनों देशों के बीच शांति हो जाती है तो वहां की आर्मी,वहां के जेहादी ,वहां के दहशतगर्दों का हुक्का पानी बंद हो जाएगा ।
जैश ए मोहम्मद हो या फिर लश्कर जैसे संगठन है जो आर्मी की रणनीतिक संपदा है।
ऐसे में फिर सवाल उठता है कि पाकिस्तान में बात आखिर की किससे की जाये।
जब बात ना बने और सामने वाले अड़ियल घोड़े की तरह ही ऐंठने लगे तो फिर पडौसी बदलने में ही भलाई है जैसे चीन तिब्बत को हड़प पर हमारा पडौसी बन गया...
क्या भारत इसके लिए तैयार है..? सेना तैयार है तो क्या जन मानस प्याज-पैट्रोल के दाम बढ़ने पर सरकार का साथ देने को तैयार है..? सरदार पटेल के अनुगामी सरकार के मुखिया तैयार है तो क्या नीति निर्धारक और बौद्धिक गुट नेहरू की आदर्शवादिता को तिलांजलि दे,सावरकर जैसी आक्रामक नीति को स्वीकारने को तैयार है...?
सब तैयार है तो भारत को अपने सैनिकों के पार्थिव देह की परिक्रमा नहीं करनी पड़ेगी और भारत का पराक्रम पूरी दुनियां देखेगी....
।।शिव।।
भारत-पाक मसले का हल आखिर हो क्या....? इस पर जब चर्चा होती है तो कुछ लोग कहते हैं कि बातचीत से ही हल निकलता है....तो कुछ लोग पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी वाजपेयी के कथन को उद्धत करते हुए कहते हैं कि पड़ोसी बदले नहीं जा सकते.....
पड़ोसी नहीं बदले जा सकते हैं तो क्या देश पुलवामा जैसे आतंकी हमलों को सहन करने के लिए तैयार हैं...?
यदि नहीं तो पड़ोसी बदलकर नहीं मिटाकर नए पडोसी बनाये जा सकते हैं...?
बात जब किसी से बात करने की हो,तो आखिर की किससे जाये...? पाकिस्तान के मामला में तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि बात आखिर करें किससे.... जिसके हाथ में सत्ता है वह शक्तिविहीन है जो शक्ति रखते है उनका स्वार्थ ही भारत विरोध बनें रहने में है क्योंकि उनके पास शक्ति होने का कारण ही भारत का शक्ति सम्पन्न होना है.....
बातचीत करने से पहले हमें यह ध्यान में रखना होता है कि सामने वाले देश की पृष्ठभूमि और उसकी मानसिकता क्या है ...?
पिछले 70 सालों में बांग्लादेश अपवाद को छोड़कर अधिकत्तर हमारी सरकारों की नीति प्रतिक्रियावादी,अल्पकालिक और गलत अनुमानों पर आधारित रही है क्योंकि हमारी नीतियों पर पंडित नेहरू के आदर्शवादी विचारों की छाप सदैव ही बनी रही ।उनसे प्रेरणा पाने वाले नीति निर्माताओं और बौद्धिक खेमे में राष्ट्रवाद और यथार्थवाद की कमी महसूस की जाती रही है ।पाकिस्तान के मसले पर बात करने के लिए दिए जा रहे सुझाव पर जब गौर करें तो एक सवाल उठता है हम बात करें तो आखिर किससे ......
पाकिस्तान में कई पक्ष है, सेना है जो देश चलाती है उसमें भी आई एस आई जैसे संगठन है जिसे वहां "डीप स्टेट" कहा जाता है और जो कि वहां की असली ताकत है इसका कारण है कि सरकारी मशीनरी पर आई एस आई का ही नियंत्रण है ।
वहां जो लोकतंत्र के चेहरे हैं वह केवल मुखोटे है चाहे वे नवाज़ शरीफ़ हो या इमरान खान।इसलिए सरकार अभी वहां ताकत नहीं है ।
सेना ने कई धार्मिक संगठनों को इसलिए हुक्का पानी दिया है ताकि उनका कंट्रोल सरकार पर बना रहे लश्कर-ए-तैयबा हो या जमात-उद-दावा या फिर तहरीक-ए-तालिबान यह वही है जो बड़े भाई का कुर्ता और छोटे भाई का पजामा पहन कर दहशत गर्दी फैलाते रहते हैं ।
अब वे धीरे-धीरे ताकतवर होते जा रहे हैं,उन्हें अपने इस्लामिक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का फायदा मिल रहा है।
सेना से भी आगे निकल चुके इन दहशतगर्दों को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन आईएसआईएस से भी समर्थन मिल रहा हैं ।
पाकिस्तान में कहा जाता है कि पाकिस्तान को अल्लाह,आर्मी और अमेरिका चलाते हैं जब बातचीत करनी है तो हमें पाकिस्तान में बाहरी तत्व चीन,अमेरिका और सऊदी अरब के प्रभाव को भी ध्यान में रखना होगा।
अब महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी देश, वहां की सरकार से बात करता है और पाकिस्तान में सरकार केवल सेना का मुखौटा है जो कि पाकिस्तान को लोकतांत्रिक बनाए रखने में उसकी मदद करता है।
सेना से आखिर बात हो तो कैसे ? क्योंकि उसका तो केवल फायदा है ही इसी में कि पाकिस्तान में भारत के प्रति डर बना रहे भारत की ताकत का, भारत का सामर्थ्य का ।
पाकिस्तान में और उसकी आवाम में जब तक डर है और जब तक कश्मीर मुद्दा बना है पाकिस्तानी सेना सामाजिक और राजनीतिक रूप से वहां मजबूत रहती है ।
राजनीतिक और सामाजिक तौर पर मजबूती के अलावा राजस्व के बड़े हिस्से को सेना अपने कब्जे में ले लेती है।
पाकिस्तान में जिहादी गुट भी है जो कश्मीर,इस्लाम और अल्लाह की मर्जी के नाम पर धन लूटने में लगे हुये है वह भी अब धीरे-धीरे बेकाबू होने लगे हैं ।
यदि दोनों देशों के बीच शांति हो जाती है तो वहां की आर्मी,वहां के जेहादी ,वहां के दहशतगर्दों का हुक्का पानी बंद हो जाएगा ।
जैश ए मोहम्मद हो या फिर लश्कर जैसे संगठन है जो आर्मी की रणनीतिक संपदा है।
ऐसे में फिर सवाल उठता है कि पाकिस्तान में बात आखिर की किससे की जाये।
जब बात ना बने और सामने वाले अड़ियल घोड़े की तरह ही ऐंठने लगे तो फिर पडौसी बदलने में ही भलाई है जैसे चीन तिब्बत को हड़प पर हमारा पडौसी बन गया...
क्या भारत इसके लिए तैयार है..? सेना तैयार है तो क्या जन मानस प्याज-पैट्रोल के दाम बढ़ने पर सरकार का साथ देने को तैयार है..? सरदार पटेल के अनुगामी सरकार के मुखिया तैयार है तो क्या नीति निर्धारक और बौद्धिक गुट नेहरू की आदर्शवादिता को तिलांजलि दे,सावरकर जैसी आक्रामक नीति को स्वीकारने को तैयार है...?
सब तैयार है तो भारत को अपने सैनिकों के पार्थिव देह की परिक्रमा नहीं करनी पड़ेगी और भारत का पराक्रम पूरी दुनियां देखेगी....
।।शिव।।
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