अभिनंदन! भारत माँ के वीर जवानों का,दुनियां ने देखा फिर सेना का पराक्रम....नया भारत....मजबूत भारत...अब सबूत दिए नहीं जाते,समूल नष्ट कर दिये जाते है....।
पुलवामा हमले की तेरहवीं को तड़के ही भारतीय वायु सेना ने पुलवामा की शहादत के बदले की दूसरी कार्यवाही करते हुए पाकिस्तान द्वारा कब्जाये गए कश्मीर में आतंकी की फैक्ट्री को सुपुर्द ए खाक कर दिया।
हमले के 100 घण्टे में मास्टर माइंड को नेस्तनाबूद करने वाली सेना ने 13वीं पर जोरदार कार्यवाही कर पूरे देश को बड़ी खुश खबरी दी।
कार्यवाही के बाद भारतीय सेना ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता के जरिए भावनाओं का प्रकट किया।
भारतीय सेना ने @adgpi ट्विटर हैंडल से रामधारी सिंह दिनकर की कविता ट्वीट कर प्रतिक्रिया दी ।
स्व. रामधारी सिंह दिनकर की पहचान राष्ट्रवादी कवि की रही है।
23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय के सिमरिया गांव में जन्में दिनकर ने कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रेणुका, रश्मिरथी, द्वंदगीत, बापू, धूप छांह, मिर्च का मजा, सूरज का ब्याह जैसी कृतियां की रचना की।
उन्हें काव्य संग्रह उर्वशी के लिए 1972 के ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किए गया।
भारतीय सेना ने ट्वीट करते हुए लिखा-
'क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुए विनीत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की,
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की।'
दरअसल यह कविता राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने शक्ति और क्षमा शीर्षक से लिखी थी।
. कविता मूल स्वरूप में यहां पढ़ सकते है।
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा?
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
बदलते जमाने के साथ भारत भी बदला, बदले भारत की बुलंद तस्वीर आज दुनियां ने देखी....
अभिनंदन नए भारत का,शक्ति,सामर्थ्य से लबरेज भारत का,सक्षम भारत के जवानों का।
।।शिव।।
पुलवामा हमले की तेरहवीं को तड़के ही भारतीय वायु सेना ने पुलवामा की शहादत के बदले की दूसरी कार्यवाही करते हुए पाकिस्तान द्वारा कब्जाये गए कश्मीर में आतंकी की फैक्ट्री को सुपुर्द ए खाक कर दिया।
हमले के 100 घण्टे में मास्टर माइंड को नेस्तनाबूद करने वाली सेना ने 13वीं पर जोरदार कार्यवाही कर पूरे देश को बड़ी खुश खबरी दी।
कार्यवाही के बाद भारतीय सेना ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता के जरिए भावनाओं का प्रकट किया।
भारतीय सेना ने @adgpi ट्विटर हैंडल से रामधारी सिंह दिनकर की कविता ट्वीट कर प्रतिक्रिया दी ।
स्व. रामधारी सिंह दिनकर की पहचान राष्ट्रवादी कवि की रही है।
23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय के सिमरिया गांव में जन्में दिनकर ने कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रेणुका, रश्मिरथी, द्वंदगीत, बापू, धूप छांह, मिर्च का मजा, सूरज का ब्याह जैसी कृतियां की रचना की।
उन्हें काव्य संग्रह उर्वशी के लिए 1972 के ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित किए गया।
भारतीय सेना ने ट्वीट करते हुए लिखा-
'क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुए विनीत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की,
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की।'
दरअसल यह कविता राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने शक्ति और क्षमा शीर्षक से लिखी थी।
. कविता मूल स्वरूप में यहां पढ़ सकते है।
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा?
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
बदलते जमाने के साथ भारत भी बदला, बदले भारत की बुलंद तस्वीर आज दुनियां ने देखी....
अभिनंदन नए भारत का,शक्ति,सामर्थ्य से लबरेज भारत का,सक्षम भारत के जवानों का।
।।शिव।।
Comments
*तू बैठा था ज़मीं पे घात लगाए, हम आसमाँ से आके पेल गए ।।।*
जय हिंद
हम #स्वाहा कहके खत्म करेंगे
#जय_हिंद .🇮🇳