एक ओर डरा सहमा पाक,मस्जिदों में नहीं लगी अजान,तो दूसरी ओर दबंग नेतृत्व, समर्थ सेना के साथ कदमताल करते हिन्दुस्थान के सरहदी मरजीवड़े....
दुनियां की जन्नत कश्मीर को जहन्नुम बनाने वाला पाक एक कार्यवाही से इतना घबराया कि बॉर्डर की मस्जिदों से अजान लगानी भी कर दी बन्द।
घबराहट साफ दिख रही है दुश्मन में,अब तक भीख का कटोरा लेकर देश देश घूम रहा पाकिस्तान, भारत की सहनशीलता को कायरता समझ धमकाता रहा और भारत दुनियां भर में उस पर हर मंच पर शांति के लिए गुहार लगाता रहा।
भारतीय सैनिकों के सर काटे गये, संसद पर हमला हुआ,हर शहर ने पाक सरपरस्ती में पले, बढ़े आतंक के नाखूनों स लहूलुहान हुआ....भारत हर बार शांति,सद्भाव,सहअस्तित्व के लिए बातचीत के बहाने तलाशता रहा.....
कंधार विमान हाईजैक हुआ तो अपने नागरिकों को बचाने की जद्दोजहद में,मीडिया और तथाकथित परिजनों की सड़क पर छाती पीट करतबों ने देश की सरकार को झुकने पर विवश कर दिया,काश! उस समय भारत कहता उड़ा दो विमान और इधर आतंकियों के चिथड़े उड़ा देता.....पर शॉफ्ट स्टेट....शांति का पैगाम,जनता का कथित दबाव उस कवि हृदय अटल को झुका गया....
उससे पहले आज भारत को धमकी देने वाली पीडीपी रुबिया के अपहरण पर आतंकियों को छोड़ने पर मजबूर कर देती है देश की सरकार को....
पर अब डरा सहमा सा लगता है पाकिस्तान क्योंकि देश का नेता अब "....परमवैभवनैव त्वेम ततस्वराष्ट्रम....." का संकल्प लेकर चलने वाला नायक है।
स्वयं भले ही वो अपने आपको देश का प्रधान सेवक कहता हो पर वो जानता है कि बलि हमेशा बकरे की ही दी जाती है शेर की नहीं इसलिए उसने देश की सेनाओं को खुला छोड़ दिया।
जंगल के अपने कायदे होते है वहां शांति पाठ से नरभक्षी को काबू में नहीं किया जाता।
इस बार भारत का प्रधानमंत्री जिस प्रचंड बहुमत से बना तो ताकत भी प्रचंड ही होती है और प्रचंड प्रहार दुश्मन सहन करने की शक्ति नहीं रखता।
भारत जिसके पास नियमित 13.6 लाख सैनिक इनमें पैरा मिलिट्री फोर्स को मिला दो तो 47 लाख से ज्यादा की क्षमता है और पाक सब कुछ मिलाकर 13 लाख ही जुटा सकता है।
भारत का रक्षा बजट 41 खरब 23 अरब 1 करोड़ 70 लाख रखा गया जो कि हमारी जीडीपी का 2.1 फीसदी है वहीं पाकिस्तान का 7 खरब 81 अरब 95 करोड़ था। यह वहां की जीडीपी का 3.6 फीसदी है।
इस बजट पर सरसरी नज़र डालें तो एक अंतर जीडीपी का दिखता है मतलब आर्थिक रूप से गर्त की जाता पाकिस्तान।
दूसरा इस रक्षा बजट में से उसे आतंकियों को और आर्मी का पेट पालना है तो अल्लाह की मर्ज़ी वाले जिहादियों को टुकड़ा डालना पड़ रहा है।
इस बार युद्ध केवल भारत की सेना नहीं लड़ेगी बल्कि थल,नभ,जल के साथ सत्ता और जन को मिलाकर ऐसा पंच पड़ना है कि दुनियां याद करेगी.....
इसके लिए जरूरी है जन की भागीदारी और उनकी समझदारी....सेना के सबसे ज्यादा मददगार होते है सीमा क्षेत्र में रहने वाले लोग।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर टिप्पणी करने वाले बयान वीर तो हो सकते है पर धरातल पर शून्य ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस महत्वपूर्ण पक्ष को समझा और सन 1985 में सीमा जनकल्याण समिति की स्थापना की।
यह समिति सीमा क्षेत्र में करती है संवाद,सुनती है समस्या,रखती है लोगों की शिक्षा,चिकित्सा का ध्यान।
क्योंकि संघ विचार से प्रेरित इस संगठन का मानना है कि सीमा पर रहने वाले लोग बिना पद,पहचान के सैनिक है,वे उस भौगोलिक क्षेत्र के जानकार होते है,कुछ भी अपरिचित,अनहोनी,अन अपेक्षित उनकी आंखों से बच नहीं सकता।
वे सामान्य नागरिक होकर भी सैनिक है....सीमा पर अराष्ट्रीय तत्वों का बढ़ना देश की सुरक्षा को खतरे में डालना है।
इस समिति ने और इससे जुड़े कार्यकर्ताओं ने अनेक बार ऐसी सूचना सांझा की है सेना और सीमा रक्षक बलों से,जो महत्वपूर्ण होती है देश की सुरक्षा के लिहाज से।
राजस्थान के सीमा जनकल्याण समिति से जुड़े पुरुषोत्तम सारस्वत से सटीक परिभाषित करते हुए कहते है-
"देश की सीमाएं माता के वस्त्र के समान है,जिनकी रक्षा करना हर पुत्र का धर्म है,हम सीमा पर खड़े मां के आंचल की रक्षा करने का धर्म निभाते है। सीमा सुरक्षा बल फ्रंट लाइन है तो हम सेकण्ड लाइन पर खड़े है।"
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर हल्ला बोलने वाले किसी एक संगठन का नाम बता दे जो इन विषम परिस्थितियों में रहने वाले लोगों को संभालता हो... यहां पहरूवा बनकर खड़ी है कहीं सीमा जनकल्याण समिति तो कहीं सरहदी सेना।
ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंतरराष्ट्रीय सीमा पर राष्ट्रवाद अलख जगाने वाले सीमा जागरण के महत्वपूर्ण प्रकल्प को साकार रूप देते है।
आज सैनिकों के शौर्य के साथ साथ सीमा के सजग प्रहरियों को भी सैल्यूट करने का मन करता है। जय हिंद
।।शिव।।
दुनियां की जन्नत कश्मीर को जहन्नुम बनाने वाला पाक एक कार्यवाही से इतना घबराया कि बॉर्डर की मस्जिदों से अजान लगानी भी कर दी बन्द।
घबराहट साफ दिख रही है दुश्मन में,अब तक भीख का कटोरा लेकर देश देश घूम रहा पाकिस्तान, भारत की सहनशीलता को कायरता समझ धमकाता रहा और भारत दुनियां भर में उस पर हर मंच पर शांति के लिए गुहार लगाता रहा।
भारतीय सैनिकों के सर काटे गये, संसद पर हमला हुआ,हर शहर ने पाक सरपरस्ती में पले, बढ़े आतंक के नाखूनों स लहूलुहान हुआ....भारत हर बार शांति,सद्भाव,सहअस्तित्व के लिए बातचीत के बहाने तलाशता रहा.....
कंधार विमान हाईजैक हुआ तो अपने नागरिकों को बचाने की जद्दोजहद में,मीडिया और तथाकथित परिजनों की सड़क पर छाती पीट करतबों ने देश की सरकार को झुकने पर विवश कर दिया,काश! उस समय भारत कहता उड़ा दो विमान और इधर आतंकियों के चिथड़े उड़ा देता.....पर शॉफ्ट स्टेट....शांति का पैगाम,जनता का कथित दबाव उस कवि हृदय अटल को झुका गया....
उससे पहले आज भारत को धमकी देने वाली पीडीपी रुबिया के अपहरण पर आतंकियों को छोड़ने पर मजबूर कर देती है देश की सरकार को....
पर अब डरा सहमा सा लगता है पाकिस्तान क्योंकि देश का नेता अब "....परमवैभवनैव त्वेम ततस्वराष्ट्रम....." का संकल्प लेकर चलने वाला नायक है।
स्वयं भले ही वो अपने आपको देश का प्रधान सेवक कहता हो पर वो जानता है कि बलि हमेशा बकरे की ही दी जाती है शेर की नहीं इसलिए उसने देश की सेनाओं को खुला छोड़ दिया।
जंगल के अपने कायदे होते है वहां शांति पाठ से नरभक्षी को काबू में नहीं किया जाता।
इस बार भारत का प्रधानमंत्री जिस प्रचंड बहुमत से बना तो ताकत भी प्रचंड ही होती है और प्रचंड प्रहार दुश्मन सहन करने की शक्ति नहीं रखता।
भारत जिसके पास नियमित 13.6 लाख सैनिक इनमें पैरा मिलिट्री फोर्स को मिला दो तो 47 लाख से ज्यादा की क्षमता है और पाक सब कुछ मिलाकर 13 लाख ही जुटा सकता है।
भारत का रक्षा बजट 41 खरब 23 अरब 1 करोड़ 70 लाख रखा गया जो कि हमारी जीडीपी का 2.1 फीसदी है वहीं पाकिस्तान का 7 खरब 81 अरब 95 करोड़ था। यह वहां की जीडीपी का 3.6 फीसदी है।
इस बजट पर सरसरी नज़र डालें तो एक अंतर जीडीपी का दिखता है मतलब आर्थिक रूप से गर्त की जाता पाकिस्तान।
दूसरा इस रक्षा बजट में से उसे आतंकियों को और आर्मी का पेट पालना है तो अल्लाह की मर्ज़ी वाले जिहादियों को टुकड़ा डालना पड़ रहा है।
इस बार युद्ध केवल भारत की सेना नहीं लड़ेगी बल्कि थल,नभ,जल के साथ सत्ता और जन को मिलाकर ऐसा पंच पड़ना है कि दुनियां याद करेगी.....
इसके लिए जरूरी है जन की भागीदारी और उनकी समझदारी....सेना के सबसे ज्यादा मददगार होते है सीमा क्षेत्र में रहने वाले लोग।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर टिप्पणी करने वाले बयान वीर तो हो सकते है पर धरातल पर शून्य ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस महत्वपूर्ण पक्ष को समझा और सन 1985 में सीमा जनकल्याण समिति की स्थापना की।
यह समिति सीमा क्षेत्र में करती है संवाद,सुनती है समस्या,रखती है लोगों की शिक्षा,चिकित्सा का ध्यान।
क्योंकि संघ विचार से प्रेरित इस संगठन का मानना है कि सीमा पर रहने वाले लोग बिना पद,पहचान के सैनिक है,वे उस भौगोलिक क्षेत्र के जानकार होते है,कुछ भी अपरिचित,अनहोनी,अन अपेक्षित उनकी आंखों से बच नहीं सकता।
वे सामान्य नागरिक होकर भी सैनिक है....सीमा पर अराष्ट्रीय तत्वों का बढ़ना देश की सुरक्षा को खतरे में डालना है।
इस समिति ने और इससे जुड़े कार्यकर्ताओं ने अनेक बार ऐसी सूचना सांझा की है सेना और सीमा रक्षक बलों से,जो महत्वपूर्ण होती है देश की सुरक्षा के लिहाज से।
राजस्थान के सीमा जनकल्याण समिति से जुड़े पुरुषोत्तम सारस्वत से सटीक परिभाषित करते हुए कहते है-
"देश की सीमाएं माता के वस्त्र के समान है,जिनकी रक्षा करना हर पुत्र का धर्म है,हम सीमा पर खड़े मां के आंचल की रक्षा करने का धर्म निभाते है। सीमा सुरक्षा बल फ्रंट लाइन है तो हम सेकण्ड लाइन पर खड़े है।"
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर हल्ला बोलने वाले किसी एक संगठन का नाम बता दे जो इन विषम परिस्थितियों में रहने वाले लोगों को संभालता हो... यहां पहरूवा बनकर खड़ी है कहीं सीमा जनकल्याण समिति तो कहीं सरहदी सेना।
ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंतरराष्ट्रीय सीमा पर राष्ट्रवाद अलख जगाने वाले सीमा जागरण के महत्वपूर्ण प्रकल्प को साकार रूप देते है।
आज सैनिकों के शौर्य के साथ साथ सीमा के सजग प्रहरियों को भी सैल्यूट करने का मन करता है। जय हिंद
।।शिव।।
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