#43
नारी,तुम बदल जाओ ना.... तुम शक्तिस्वरूपा हो,परिवार की विघटक नहीं....
कितना खुश हुई होगी उस दिन जब तुम मुझसे पहली बार मिले थे,यह कहकर मुझे तुम पसन्द हो,क्या मेरे से शादी करोगे,मैं खुशनसीब रहूंगा अगर तुम मेरे साथ जीवन बिताओगी..
अनगिनत शब्द थे,अलंकार भरी भाषा,पर लब्बोलुआब एक था तुम मेरे जीवन के खाली कैनवास पर खुशियों के रंग भरोगे....
मैंने भी माँ-बाबा के कहने पर ...उनकी पसन्द पर ....बिना अपनी पारखी नज़रों को कष्ट दिये, संजोने लगी थी सपने,उम्मीदों के,खुशियों के....उस वक्त घण्टों मुझसे बतियाते थे,कुछ पल की देरी तुम्हें झुंझलाहट से भर देती थी....पर आज तुम्हें वक्त नहीं है अपने बच्चे के लिए,मेरे लिए और तुम मेरे जीवन के खाली कैनवास पर खुशियों के रंग भरने की बजाय....कहते कहते सौम्या की रुलाई फूट पड़ी पर सौरभ ने कंधा उचकाया और जेब से फ़ोन निकालकर माँ को फ़ोन करने दूसरे रूम में चला गया.....
एक ओर सौम्या की सिसकियां थी तो दूसरी और सौरभ का माँ के साथ फ़ोन पर हंस हंस कर बतियाना.....
मैं दोनों जगह हूँ एक रोती हुई सौम्या के रूप में तो दूसरी ओर सौम्या की सास,सौरभ की माँ के रूप में....
एक जगह आंसू बहाती पीड़िता, दूसरी तरफ बहू को आंसूं बहाने को मजबूर करती सास....
मैं नारी हूँ, सृष्टि की नियंता....पर कभी कभी खुद पर ही नियंत्रण नहीं कर पाती.... मैं जन्म देती हूं संतान को, सास बनकर,बेटे का तो कभी बेटी का घर खराब करने का घिनोने काम को अंजाम दे देती हूं,तो कभी भाभी बन ननद को पीहर की छांव से महरूम कर देती हूं तो कभी ननद बन भाभी को दहलीज से बाहर....
मैं स्वयं ही स्वयं की शत्रु हूँ, पुरुष उत्पीड़न की प्रेरक शक्ति भी किसी ना किसी रूप में मैं ही होती हूँ....
कभी भाई की गलतियों पर पर्दा डालने की कोशिश तो कभी पति को ढक्कनें की जरूरत.... कभी किसी के सुख से ईर्ष्या तो कभी सुंदरता की प्रतिस्पर्धा....
कभी कभी तो गिर जाती हूँ इतनी पोते के मोह में पोती का कोख में ही कत्ल करने को हो जाती हूँ उतारू....
मैं, वक्त के साथ करना चाहती हूं कदमताल,पर किसी नारी के साथ कदम मिलाने से छोटे होने का डर लगता है।
सास बनती हूँ तो बेटी बनाकर रखने का वादा करती हूं और उसके आते ही बेटा खो देने के डर से बहु को बेटी की तरह रखने का वादा भूल,उसे डायन बना देती हूं....
मैं घर की अन्नपूर्णा, कभी सूर्पनखा सी लगती हूँ.... मेरी बहु,मेरी भाभी मेरी तरह,मेरी मर्ज़ी के अनुसार व्यवहार करें,यह तो चाहती हूं पर कभी सामने वाली जैसा चाहे वैसा करने की नहीं सोचती....मेरे मन माफिक हो इसलिए कभी बेटे के तो कभी पति के कान भर देती हूं...
ऐसा नहीं की मेरा नकारात्मक ही पक्ष है,जब मां बनती हूँ तो बेटी को खूब प्यार करती हूं.....बेटी बनकर माँ को भी,बहिन बन बहिन को भी.....
नारी हूँ.... इसलिए सरल हूँ, सहज हूँ, हर हवा का झोंका बहा ले जाता है,मुझे....
सुनो,सौरभ! तुम जिम्मेदार हो,समझते हो,समझदार हो....तुम्हें परिवार संभालना है...
तुम ऑफिस में अपनी प्रबंधन कला में पारंगत माने जाते हो और अपने परिवार का प्रबंधन करने में इतने......
सौम्या तुम तो समझो,वक्त है,थोड़ा-सा सहज कर लो...बदलेगा,वक्त । सौरभ भी वैसा ही है जैसा कहा था....
मैं जा रही हूं,सौरभ की माँ को ढूंढने,समझाने....आपको मिले तो आप भी समझाना.... बताना सौम्या के आंसू,सौरभ की कसमकस औऱ उसका सगाई से पहले किया गया वादा...वो बेटी ही तो है....
फिर करेंगे,बात।
।।शिव।।
नारी,तुम बदल जाओ ना.... तुम शक्तिस्वरूपा हो,परिवार की विघटक नहीं....
कितना खुश हुई होगी उस दिन जब तुम मुझसे पहली बार मिले थे,यह कहकर मुझे तुम पसन्द हो,क्या मेरे से शादी करोगे,मैं खुशनसीब रहूंगा अगर तुम मेरे साथ जीवन बिताओगी..
अनगिनत शब्द थे,अलंकार भरी भाषा,पर लब्बोलुआब एक था तुम मेरे जीवन के खाली कैनवास पर खुशियों के रंग भरोगे....
मैंने भी माँ-बाबा के कहने पर ...उनकी पसन्द पर ....बिना अपनी पारखी नज़रों को कष्ट दिये, संजोने लगी थी सपने,उम्मीदों के,खुशियों के....उस वक्त घण्टों मुझसे बतियाते थे,कुछ पल की देरी तुम्हें झुंझलाहट से भर देती थी....पर आज तुम्हें वक्त नहीं है अपने बच्चे के लिए,मेरे लिए और तुम मेरे जीवन के खाली कैनवास पर खुशियों के रंग भरने की बजाय....कहते कहते सौम्या की रुलाई फूट पड़ी पर सौरभ ने कंधा उचकाया और जेब से फ़ोन निकालकर माँ को फ़ोन करने दूसरे रूम में चला गया.....
एक ओर सौम्या की सिसकियां थी तो दूसरी और सौरभ का माँ के साथ फ़ोन पर हंस हंस कर बतियाना.....
मैं दोनों जगह हूँ एक रोती हुई सौम्या के रूप में तो दूसरी ओर सौम्या की सास,सौरभ की माँ के रूप में....
एक जगह आंसू बहाती पीड़िता, दूसरी तरफ बहू को आंसूं बहाने को मजबूर करती सास....
मैं नारी हूँ, सृष्टि की नियंता....पर कभी कभी खुद पर ही नियंत्रण नहीं कर पाती.... मैं जन्म देती हूं संतान को, सास बनकर,बेटे का तो कभी बेटी का घर खराब करने का घिनोने काम को अंजाम दे देती हूं,तो कभी भाभी बन ननद को पीहर की छांव से महरूम कर देती हूं तो कभी ननद बन भाभी को दहलीज से बाहर....
मैं स्वयं ही स्वयं की शत्रु हूँ, पुरुष उत्पीड़न की प्रेरक शक्ति भी किसी ना किसी रूप में मैं ही होती हूँ....
कभी भाई की गलतियों पर पर्दा डालने की कोशिश तो कभी पति को ढक्कनें की जरूरत.... कभी किसी के सुख से ईर्ष्या तो कभी सुंदरता की प्रतिस्पर्धा....
कभी कभी तो गिर जाती हूँ इतनी पोते के मोह में पोती का कोख में ही कत्ल करने को हो जाती हूँ उतारू....
मैं, वक्त के साथ करना चाहती हूं कदमताल,पर किसी नारी के साथ कदम मिलाने से छोटे होने का डर लगता है।
सास बनती हूँ तो बेटी बनाकर रखने का वादा करती हूं और उसके आते ही बेटा खो देने के डर से बहु को बेटी की तरह रखने का वादा भूल,उसे डायन बना देती हूं....
मैं घर की अन्नपूर्णा, कभी सूर्पनखा सी लगती हूँ.... मेरी बहु,मेरी भाभी मेरी तरह,मेरी मर्ज़ी के अनुसार व्यवहार करें,यह तो चाहती हूं पर कभी सामने वाली जैसा चाहे वैसा करने की नहीं सोचती....मेरे मन माफिक हो इसलिए कभी बेटे के तो कभी पति के कान भर देती हूं...
ऐसा नहीं की मेरा नकारात्मक ही पक्ष है,जब मां बनती हूँ तो बेटी को खूब प्यार करती हूं.....बेटी बनकर माँ को भी,बहिन बन बहिन को भी.....
नारी हूँ.... इसलिए सरल हूँ, सहज हूँ, हर हवा का झोंका बहा ले जाता है,मुझे....
सुनो,सौरभ! तुम जिम्मेदार हो,समझते हो,समझदार हो....तुम्हें परिवार संभालना है...
तुम ऑफिस में अपनी प्रबंधन कला में पारंगत माने जाते हो और अपने परिवार का प्रबंधन करने में इतने......
सौम्या तुम तो समझो,वक्त है,थोड़ा-सा सहज कर लो...बदलेगा,वक्त । सौरभ भी वैसा ही है जैसा कहा था....
मैं जा रही हूं,सौरभ की माँ को ढूंढने,समझाने....आपको मिले तो आप भी समझाना.... बताना सौम्या के आंसू,सौरभ की कसमकस औऱ उसका सगाई से पहले किया गया वादा...वो बेटी ही तो है....
फिर करेंगे,बात।
।।शिव।।
Comments
यदि आज समाज में नारी ही नारी की सहायक हो तो निश्चित रूप से नारी पर होने वाले अत्याचारों में कमी हो जाएगी..💐💐