क्या खोखला हिन्दुस्थान कर सकेगा पाक-चीन का मुकाबला...? सवाल उठाने का हक है तो जबाब भी देने का कर्तव्य निभाइये....
अपनी मर्जी का करने की आदत पड़ती जा रही है...भूख लगी है तो मैगी चाहिए, भले ही डॉ कहे यह स्वास्थ्य के लिए खराब है....फेसबुक के लिए सेल्फी लेनी है इसके लिए पहाड़ पर चढ़कर खाई की ओर बढ़ेंगे भले ही घर वाले टोकते रहें....
बाइक चलाते हुए स्टंट करेंगे भले ही हाथ पैर टूट जाये,क्योंकि मर्जी है,और आज़ाद देश के नागरिक है।
स्वतंत्रता है,अधिकार है क्योंकि देश के पहले प्रधानमंत्री ने कहा था,अब सब कुछ सरकार करेगी....अंग्रेजों के शासन में नियम कायदों पर चलने वाला भारत अचानक प्रधानमंत्री जी के कहे अनुसार सब कुछ सरकार के गले डाल आज़ाद हो गया।
अब आते है मुद्दे पर ...पुलवामा हमले में हमारे सैनिकों के शरीर के कई हिस्से हो गए,एक अपील आई कृपया कोई ऐसी फ़ोटो शेयर ना करें पर सोशल मीडिया के शेरों ने सबसे पहले,सबसे अलग,सबसे तेज़ बनने के लिए वही किया।
सैनिक जबाबी कार्यवाही के लिए जा रहे थे तो कहा गया कृपया कोई फ़ोटो शेयर ना करें लोगों ने लाइव दिखाना शुरू कर दिया....
हद तो तब हुई जब अभिनंदन पाकिस्तान की कैद में थे तो लोग उनके घर के बाहर,उनके परिवार की जानकारी दे रहे थे,और अभिनंदन पाक को कुछ भी नहीं बता रहे थे।
देश की सेना पर हमला हुआ तो सरकार से पूछा क्यों हुआ? सरकार ने सेना को कहा जो चाहे करो तो कहा गया सब सेना ने किया आपने क्या किया....फिर सरकार से की गई कार्यवाही का सबूत मांगने लगे....
दिल्ली के मुख्यमंत्री की पार्टी से जुड़ी एक महिला सरकार को इस मामले पर राजनीति ना करने का कहते वीडियो जारी करती है तो देश की सबसे पुरानी पार्टी उसे अभिनंदन की पत्नी कहकर प्रचारित करती है और हम सब उसे फॉरवर्ड-फॉरवर्ड का गेम खेलने लगते है।

देश का प्रधानमंत्री विभिन्न देशों की यात्रा करता है तो हम सवाल उठाते है,जब वे देश भारत के साथ उस वक्त खड़े होते है जब देश को जरूरत होती है तो हम चुप हो जाते है....
प्रधानमंत्री अपनी कूटनीति-रणनीति से पाक को झुकने को मजबूर कर देता है तो जिनेवा संधि और अभिनंदन को मजबूरी में छोड़ने वाले पाक प्रधानमंत्री को यश गाथा लेकर बैठ जाते है....
कैसे देश के नागरिक है हम,अपने ही देश पर सवाल उठाते है,दुश्मन का गुणगान करते है,अधिकार याद रखते है,कर्तव्य भूल जाते है....
राजनैतिक प्रतिबद्धता क्या राष्ट्र की प्रतिबद्धता से बड़ी हो गयी,क्या ऐसा ही देश की सरकार सोचती तो देश के राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न मिलता...?
क्या देश में सरदार पटेल और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के स्मारक बनते...?
याद कीजिये उत्तर प्रदेश को जहाँ एक मुख्यमंत्री ने अपनी,अपने दल के संस्थापक और पार्टी के चुनाव निशान की मूर्तियों पर हजारों करोड़ सरकारी खजाने से खर्च कर दिए,क्या यह सरकार देश भर में  डॉ हेडगेवार, गुरुजी ,दीनदयाल उपाध्याय, श्यामाप्रसाद मुखर्जी के स्मारक नहीं बना सकती थी..?
सत्तारूढ़ पार्टी भी एक राजनैतिक पार्टी ही है,उसके अपने कार्यक्रम है,नीति हॉ,सिध्दांत है उस पर सवाल समझ में आते है,पर देश की सेना के शौर्य,पराक्रम पर सवाल,सेनिकों की झूठी पत्नियों के सहारे राजनीति तो राष्ट्र द्रोह ही है....

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