मैं नारी हूँ, सामर्थ्य और समर्पण से परिपूर्ण शक्ति,मुझे सांत्वना नहीं सम्मान ही दीजिये...
मैं वो हूँ जो तुम्हें पूर्णता का अहसास कराती हूँ, तुम्हें इस धरती पर लाती हूँ, तुम्हें चलना,बोलना यहां तक की पीना और खाना भी तुम मेरे ही आँचल की छांव में सीखते हो।
तुम्हारा अस्तित्व मुझसे ही है बिना मेरे तुम क्या हो,पर ये मैंने कभी नहीं कहा पर धीरे धीरे तुम मुझे हर बार अहसास कराते हो,मैं नारी हूँ, अबला हूँ, कमत्तर,कमजोर हूँ।
पर क्या तुमने सोचा है मैं नहीं तो क्या तुम्हारा कोई अस्तित्व है? मैं सक्षम हूँ क्योंकि सृष्टि सृजन मुझसे है,मैं सर्वोत्तम हूँ क्योंकि मैं माँ हूँ।मैं मजबूत हूँ क्योंकि मैं परिवार का आधार हूँ।
मैं तुम्हारी तरह प्रतिस्पर्धा की नहीं सोचती,क्योंकि मैं पूरक हूँ तुम्हारी,परस्परता के संस्कार मेरे डीएनए में है,इसलिए मैंने हमेशा तुम्हें श्रेष्ठ माना।
एक आदमी मिला था,(आदमी?) नहीं तो क्या कहूँ मुझे कहता है नारी स्वतंत्र होनी चाहिए, आप संघर्ष कीजिये और उसने बताया मेरा दुनियां ने एक दिन तय कर रखा है।
मैं सोचती हूँ,मुझे क्या कभी परतंत्र बनाया जा सकता है? स्वतंत्र ही तो हूँ, बंधन कहाँ है फिर सोचा उसने कहा तो सोचने लगी,कुछ तो सही ही कह रहा होगा?
अखबारों पर नज़र दौड़ाई तो लगा मैं तो इतनी परतंत्र हूँ, कि मुझे खुद को ही पता नहीं था...और तो और मेरे आराध्य श्रीराम को भी उन्होंने सवालों के घेरे में ले लिया,लेखक के बारे में पता किया तो हैरान हो गयी,उनकी पहली पत्नी से तलाक हो गया,दूसरी अभी तक है और अपनी साथी लेखिका से नैना बावरे वाली कहानी में मस्त है....
वो महाशय मेरे आराध्य पर सवाल उठा रहे थे जो जीवन पर्यन्त एक पत्नी व्रत का पालन करते है,मेरे जानकी रूप सम्मान के लिए रावण से लड़ते है और जब बात राजा के धर्म निर्वहन की आती है तो उसी प्राण प्रिया को त्याग कर भी उसी के राम बने रहते है।
मेरे जानकी रूप के लिए प्रेम-समर्पण,शबरी रूप के लिए करुणा और माता वाले रूप के लिए वे श्रेष्ठ पुत्र होते है....वे मेरे पुत्र है,पति है, गुरु है, रक्षक है,संरक्षक है और उस देहप्रिय को वे ही नारी के अधिकार को कुचलने वाले लगते है।
मैं नहीं मानती हर पुरुष खराब है क्योंकि मंथरा,कैकई भी तो मेरे ही रूप है।
मैं माँ बनकर ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति बनती हूँ तो घर परिवार को संभाल कर अन्नपूर्णा,बस तुम जब एक बार कह देते हो कैसी हो?
मैं भूल जाती हूँ थकान,काम का बोझ मानो,मुझे मिल जाती है नई ऊर्जा....
मैं शक्ति हूँ, तुम्हारी....मैं पोषक हूँ इसलिए लक्ष्मी हूँ तुम्हारी....तुम्हारे भले का सोचने का सामर्थ्य है मुझमें इसलिए मैं सरस्वती हूँ तुम्हारी.....
पर तुम आजकल थोड़े से भटक रहे हो,पुरुष प्रधानतावादी लेखकों के चक्कर में जो अपने घर में भीगी बिल्ली बनकर बैठे रहते है.....
तुमसे क्या शिकायत करूँ....कुछ मेरी साथिनें भी तो चाहती है आज़ादी.....
आज जब पढ़ा मेरा भी दिन मानती है दुनियां और आयोजन पर फूंक देती है लाखों अरब रुपया.....पर क्या सम्मान दिला पाये..?
एक माँ,एक बेटी जो सम्मान एक नारी को दिला सकती है वो सम्मान कोई आयोजन और कोई दिन नहीं दिला सकता....
समझ रहे हो ना.... मैं क्या कह रही हूँ...?
अपने बच्चों को उन दोनों ही तरह के लेखकों से दूर करो,तुम लिखो उसकी बुद्धि का लेख कि नारी पूज्या है भोग्या नहीं....
तुम जो कर सकती हो वो करो क्योंकि शिवा जीजाऊ के बिना नहीं होते,ना राम कौशल्या बिना होते है.....
मेरे दिन को मनाने वाली दुनियां को मैं शुभकामनाएं देती हूं,भौतिकता की चकाचौंध में बस संस्कार मत भूलों,मेरा एक दिन नहीं हर दिन मेरा है।
हर दिन मेरा है तुम्हे यह लाखों अरबों रुपये किसी दिन विशेष के लिए खर्च करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.....
फिर आऊंगी,मैं कहने को अपनी बात,आज बस इतना ही पढ़ लेना,समझना.....
मातृ शक्ति को नमन।
।।शिव।।
मैं वो हूँ जो तुम्हें पूर्णता का अहसास कराती हूँ, तुम्हें इस धरती पर लाती हूँ, तुम्हें चलना,बोलना यहां तक की पीना और खाना भी तुम मेरे ही आँचल की छांव में सीखते हो।
तुम्हारा अस्तित्व मुझसे ही है बिना मेरे तुम क्या हो,पर ये मैंने कभी नहीं कहा पर धीरे धीरे तुम मुझे हर बार अहसास कराते हो,मैं नारी हूँ, अबला हूँ, कमत्तर,कमजोर हूँ।
पर क्या तुमने सोचा है मैं नहीं तो क्या तुम्हारा कोई अस्तित्व है? मैं सक्षम हूँ क्योंकि सृष्टि सृजन मुझसे है,मैं सर्वोत्तम हूँ क्योंकि मैं माँ हूँ।मैं मजबूत हूँ क्योंकि मैं परिवार का आधार हूँ।
मैं तुम्हारी तरह प्रतिस्पर्धा की नहीं सोचती,क्योंकि मैं पूरक हूँ तुम्हारी,परस्परता के संस्कार मेरे डीएनए में है,इसलिए मैंने हमेशा तुम्हें श्रेष्ठ माना।
एक आदमी मिला था,(आदमी?) नहीं तो क्या कहूँ मुझे कहता है नारी स्वतंत्र होनी चाहिए, आप संघर्ष कीजिये और उसने बताया मेरा दुनियां ने एक दिन तय कर रखा है।
मैं सोचती हूँ,मुझे क्या कभी परतंत्र बनाया जा सकता है? स्वतंत्र ही तो हूँ, बंधन कहाँ है फिर सोचा उसने कहा तो सोचने लगी,कुछ तो सही ही कह रहा होगा?
अखबारों पर नज़र दौड़ाई तो लगा मैं तो इतनी परतंत्र हूँ, कि मुझे खुद को ही पता नहीं था...और तो और मेरे आराध्य श्रीराम को भी उन्होंने सवालों के घेरे में ले लिया,लेखक के बारे में पता किया तो हैरान हो गयी,उनकी पहली पत्नी से तलाक हो गया,दूसरी अभी तक है और अपनी साथी लेखिका से नैना बावरे वाली कहानी में मस्त है....
वो महाशय मेरे आराध्य पर सवाल उठा रहे थे जो जीवन पर्यन्त एक पत्नी व्रत का पालन करते है,मेरे जानकी रूप सम्मान के लिए रावण से लड़ते है और जब बात राजा के धर्म निर्वहन की आती है तो उसी प्राण प्रिया को त्याग कर भी उसी के राम बने रहते है।
मेरे जानकी रूप के लिए प्रेम-समर्पण,शबरी रूप के लिए करुणा और माता वाले रूप के लिए वे श्रेष्ठ पुत्र होते है....वे मेरे पुत्र है,पति है, गुरु है, रक्षक है,संरक्षक है और उस देहप्रिय को वे ही नारी के अधिकार को कुचलने वाले लगते है।
मैं नहीं मानती हर पुरुष खराब है क्योंकि मंथरा,कैकई भी तो मेरे ही रूप है।
मैं माँ बनकर ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति बनती हूँ तो घर परिवार को संभाल कर अन्नपूर्णा,बस तुम जब एक बार कह देते हो कैसी हो?
मैं भूल जाती हूँ थकान,काम का बोझ मानो,मुझे मिल जाती है नई ऊर्जा....
मैं शक्ति हूँ, तुम्हारी....मैं पोषक हूँ इसलिए लक्ष्मी हूँ तुम्हारी....तुम्हारे भले का सोचने का सामर्थ्य है मुझमें इसलिए मैं सरस्वती हूँ तुम्हारी.....
पर तुम आजकल थोड़े से भटक रहे हो,पुरुष प्रधानतावादी लेखकों के चक्कर में जो अपने घर में भीगी बिल्ली बनकर बैठे रहते है.....
तुमसे क्या शिकायत करूँ....कुछ मेरी साथिनें भी तो चाहती है आज़ादी.....
आज जब पढ़ा मेरा भी दिन मानती है दुनियां और आयोजन पर फूंक देती है लाखों अरब रुपया.....पर क्या सम्मान दिला पाये..?
एक माँ,एक बेटी जो सम्मान एक नारी को दिला सकती है वो सम्मान कोई आयोजन और कोई दिन नहीं दिला सकता....
समझ रहे हो ना.... मैं क्या कह रही हूँ...?
अपने बच्चों को उन दोनों ही तरह के लेखकों से दूर करो,तुम लिखो उसकी बुद्धि का लेख कि नारी पूज्या है भोग्या नहीं....
तुम जो कर सकती हो वो करो क्योंकि शिवा जीजाऊ के बिना नहीं होते,ना राम कौशल्या बिना होते है.....
मेरे दिन को मनाने वाली दुनियां को मैं शुभकामनाएं देती हूं,भौतिकता की चकाचौंध में बस संस्कार मत भूलों,मेरा एक दिन नहीं हर दिन मेरा है।
हर दिन मेरा है तुम्हे यह लाखों अरबों रुपये किसी दिन विशेष के लिए खर्च करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.....
फिर आऊंगी,मैं कहने को अपनी बात,आज बस इतना ही पढ़ लेना,समझना.....
मातृ शक्ति को नमन।
।।शिव।।
Comments
अच्छी पोस्ट डाली है आपने, पढ़कर बहुत अच्छा लगा आपको बहुत बहुत धन्यवाद ।
सभी मातृ शक्ति को नमन..