सुनो,नेताओं .....
कुछ सीख सकते हो तो सीखो....स्मृति जी से।
कार्यकर्ता भाव नेतृत्व का....तभी अहंकार झुका पाई,विनम्रता से इतिहास रच पाई.....
एक ज्योतिरादित्य सिंधिया जी है जिनको सेल्फी नहीं खींचने से नाराज़ हुए कार्यकर्ता ने सबक सीखा दिया,उनको उनके ही गढ़ में हरा दिया।
तुम कांग्रेस से हो या भाजपा से इससे कोई फर्क नहीं पड़ता,बस फर्क पड़ता है तुम्हारे व्यवहार से। वोट के लिए गली गली,घर घर चक्कर लगाने वाला,पार्टी के नाम पर लड़ने वाला, अपने व्यक्तिगत रिश्ते खराब करने वाला कार्यकर्ता जब चुनाव के बाद मिलता है तब तुम्हें फुर्सत नहीं मिलती।
राजनीति से परे जाकर आज स्मृतिजी का हर उस राजनैतिक कार्यकर्ता को अभिनंदन करना चाहिए जो कार्यकर्ता भाव से अपने दल में काम करता है।
सुनो,नेताजी वोट तुम्हारे भाषणों और रणनीति से नहीं मिलते वे बस माहौल बना सकते है,तुम्हारी रणनीति को धरातल पर लाने वाला सैनिक है कार्यकर्ता। सेना में सैनिक नहीं लड़ेंगे तो क्या सेना जीतेगी...?
नेता वो नहीं जो चुनाव जीतता है,वह है जो दिल जीतता है....नेताजी सुभाष,महात्मा गाँधीजी,जेपी,कर्पूरी ठाकुर,अटलजी,आडवाणीजी, मोदीजी जैसे विरले ही होते है जो नेतृत्व करने का सामर्थ्य रखते है।
कुछ लोग सवाल उठा सकते है कि इन नामों में नेहरू-गांधी परिवार का नाम क्यों नहीं है,क्योंकि उन्होंने इसे विरासत में पाया,विरासत बनाई और जो नाम मैंने लिखे है वे देश की विरासत है, वंश को राजनीति के उत्तराधिकारी बनाने की जद्दोजहद नहीं की,ना करते है।
सत्ता एक अवसर है,सेवा का या सुख पाने का....,राजस्थान के परिदृश्य पर नज़र डालें तो मोहनलाल जी सुखाड़िया,हरिदेव जी जोशी,भैरोंसिंह जी शेखावत,ललितकिशोर जी चतुर्वेदी, नवलकिशोरजी शर्मा,गिरधारी लालजी भार्गव, दाऊदयाल जी जोशी ऐसे नाम है जिन्होंने धरती से,आम जन से अपना रिश्ता जोड़ा.....इन नामों से एक भी व्यक्ति इस जहां में नहीं पर उनके समय की पीढ़ी से पूछकर देखिए?
94 साल से प्रतिदिन सक्रिय एक संगठन तपस्या कर रहा है...आज यदि पूरे दिन का उसके काम का लेखा जोखा रखें तो हर पल कोई ना कोई काम स्वयंसेवक "विचार"के लिए करता नजर आएगा..... अर्थात सक्रियता,विचार का प्रवाह।समाज जीवन के हर क्षेत्र में संवाद,साथ,सहकार और विचार की ध्येयनिष्ठ साधना।
इसी संगठन "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ"से मुकाबले के लिए बना कॉंग्रेस सेवा दल आज कहाँ है?नेताओं की परिक्रमा, उनको गार्ड ऑफ ऑनर देने के सिवा उसे कोई काम दिया ही नहीं गया.....एक भी आपदा चाहे वो प्राकृतिक हो,या मानवीय भूलवश सबसे पहले कोई सेवा भाव से पहुंचा तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक।सेवा दल का कार्यकर्ता कहाँ गया,किसी ने देखा ही नहीं...हाँ राहुल गांधी की इस बात के लिए तारीफ करनी चाहिए जिन्होंने सेवा दल को गार्ड ऑफ ऑनर के लिए तैनाती पर रोक लगाने की इच्छा जाहिर की।
खैर, आज बात उन स्मृति जुबिन ईरानी की जिन्हें पिछले पांच साल में बहुत बार बहुत कुछ कहा गया तो वे भी कभी ममतामयी तो कभी काली के रौद्ररूप में नज़र आई,पर आज वे अपने से बड़े कार्यकर्ता की पुत्री भाव में,बहिन के रूप में दुःख में जिस प्रकार खड़ी नज़र आई वास्तव में यह राजनीति का विरला ही उदाहरण है जब किसी महिला राजनीतिज्ञ ने ऐसा साहस बटोरा हो.....
हाँ अटलजी की अंतिम यात्रा में कार्यकर्ता भाव से नंगे पांव चलते प्रधानमंत्री को भी देश ने देखा है,नहीं तो इस देश ने वो दृश्य भी देखा है जब एक राजनैतिक दल ने अपने प्रधानमंत्री के पार्थिव देह को अपने कार्यालय में दर्शनार्थ रखने,दिल्ली में अंतिम संस्कार करने की अनुमति तक नहीं दी...और तो और उनके चित्ता पर रखे शव को पूर्ण रूप से अग्नि में समर्पित करने से पहले ही नेतृत्व के डर से नेता खिसक लिए...बहुत शर्मनाक था वो दृश्य।
आज स्मृतिजी को उनके इस स्तुत्य कार्य के लिए वंदन करने को मन करता है।
आपने चुनाव ही नहीं जीता,आपने अमेठी का जन के मन को भी जीत लिया, आपके लिए शुभेच्छाएँ।
#स्मृति #ईरानी #अमेठी
।।शिव।।
कुछ सीख सकते हो तो सीखो....स्मृति जी से।
कार्यकर्ता भाव नेतृत्व का....तभी अहंकार झुका पाई,विनम्रता से इतिहास रच पाई.....
एक ज्योतिरादित्य सिंधिया जी है जिनको सेल्फी नहीं खींचने से नाराज़ हुए कार्यकर्ता ने सबक सीखा दिया,उनको उनके ही गढ़ में हरा दिया।
तुम कांग्रेस से हो या भाजपा से इससे कोई फर्क नहीं पड़ता,बस फर्क पड़ता है तुम्हारे व्यवहार से। वोट के लिए गली गली,घर घर चक्कर लगाने वाला,पार्टी के नाम पर लड़ने वाला, अपने व्यक्तिगत रिश्ते खराब करने वाला कार्यकर्ता जब चुनाव के बाद मिलता है तब तुम्हें फुर्सत नहीं मिलती।
राजनीति से परे जाकर आज स्मृतिजी का हर उस राजनैतिक कार्यकर्ता को अभिनंदन करना चाहिए जो कार्यकर्ता भाव से अपने दल में काम करता है।
सुनो,नेताजी वोट तुम्हारे भाषणों और रणनीति से नहीं मिलते वे बस माहौल बना सकते है,तुम्हारी रणनीति को धरातल पर लाने वाला सैनिक है कार्यकर्ता। सेना में सैनिक नहीं लड़ेंगे तो क्या सेना जीतेगी...?
नेता वो नहीं जो चुनाव जीतता है,वह है जो दिल जीतता है....नेताजी सुभाष,महात्मा गाँधीजी,जेपी,कर्पूरी ठाकुर,अटलजी,आडवाणीजी, मोदीजी जैसे विरले ही होते है जो नेतृत्व करने का सामर्थ्य रखते है।
कुछ लोग सवाल उठा सकते है कि इन नामों में नेहरू-गांधी परिवार का नाम क्यों नहीं है,क्योंकि उन्होंने इसे विरासत में पाया,विरासत बनाई और जो नाम मैंने लिखे है वे देश की विरासत है, वंश को राजनीति के उत्तराधिकारी बनाने की जद्दोजहद नहीं की,ना करते है।
सत्ता एक अवसर है,सेवा का या सुख पाने का....,राजस्थान के परिदृश्य पर नज़र डालें तो मोहनलाल जी सुखाड़िया,हरिदेव जी जोशी,भैरोंसिंह जी शेखावत,ललितकिशोर जी चतुर्वेदी, नवलकिशोरजी शर्मा,गिरधारी लालजी भार्गव, दाऊदयाल जी जोशी ऐसे नाम है जिन्होंने धरती से,आम जन से अपना रिश्ता जोड़ा.....इन नामों से एक भी व्यक्ति इस जहां में नहीं पर उनके समय की पीढ़ी से पूछकर देखिए?
94 साल से प्रतिदिन सक्रिय एक संगठन तपस्या कर रहा है...आज यदि पूरे दिन का उसके काम का लेखा जोखा रखें तो हर पल कोई ना कोई काम स्वयंसेवक "विचार"के लिए करता नजर आएगा..... अर्थात सक्रियता,विचार का प्रवाह।समाज जीवन के हर क्षेत्र में संवाद,साथ,सहकार और विचार की ध्येयनिष्ठ साधना।
इसी संगठन "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ"से मुकाबले के लिए बना कॉंग्रेस सेवा दल आज कहाँ है?नेताओं की परिक्रमा, उनको गार्ड ऑफ ऑनर देने के सिवा उसे कोई काम दिया ही नहीं गया.....एक भी आपदा चाहे वो प्राकृतिक हो,या मानवीय भूलवश सबसे पहले कोई सेवा भाव से पहुंचा तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक।सेवा दल का कार्यकर्ता कहाँ गया,किसी ने देखा ही नहीं...हाँ राहुल गांधी की इस बात के लिए तारीफ करनी चाहिए जिन्होंने सेवा दल को गार्ड ऑफ ऑनर के लिए तैनाती पर रोक लगाने की इच्छा जाहिर की।
खैर, आज बात उन स्मृति जुबिन ईरानी की जिन्हें पिछले पांच साल में बहुत बार बहुत कुछ कहा गया तो वे भी कभी ममतामयी तो कभी काली के रौद्ररूप में नज़र आई,पर आज वे अपने से बड़े कार्यकर्ता की पुत्री भाव में,बहिन के रूप में दुःख में जिस प्रकार खड़ी नज़र आई वास्तव में यह राजनीति का विरला ही उदाहरण है जब किसी महिला राजनीतिज्ञ ने ऐसा साहस बटोरा हो.....
हाँ अटलजी की अंतिम यात्रा में कार्यकर्ता भाव से नंगे पांव चलते प्रधानमंत्री को भी देश ने देखा है,नहीं तो इस देश ने वो दृश्य भी देखा है जब एक राजनैतिक दल ने अपने प्रधानमंत्री के पार्थिव देह को अपने कार्यालय में दर्शनार्थ रखने,दिल्ली में अंतिम संस्कार करने की अनुमति तक नहीं दी...और तो और उनके चित्ता पर रखे शव को पूर्ण रूप से अग्नि में समर्पित करने से पहले ही नेतृत्व के डर से नेता खिसक लिए...बहुत शर्मनाक था वो दृश्य।
आज स्मृतिजी को उनके इस स्तुत्य कार्य के लिए वंदन करने को मन करता है।
आपने चुनाव ही नहीं जीता,आपने अमेठी का जन के मन को भी जीत लिया, आपके लिए शुभेच्छाएँ।
#स्मृति #ईरानी #अमेठी
।।शिव।।
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