कारगिल-गाथा विजय की,देश के सम्मान की,सर्वोच्च बलिदान की....
आज से 20 साल पहले भारतीय सेना ने जीता एक ऐसा युद्ध जो इतिहास में विरला ही है।
दुर्गम पहाड़ियां, ऊंचाई पर बैठा दुश्मन, मौसम की मार ....पर हौसले बुलंद थे,देश के जवानों के.... साथ में था राजनीतिक नेतृत्व का मजबूत इरादा।
भारत ने पहली बार युद्ध में अपनी भूमि का एक भी इंच दुश्मन को जाने से बचा लिया था।
आजादी के बाद पहली बार भारत ने  युद्ध में जो जीता, उसे रणनीतिक टेबल पर हारने की गलती नहीं की।
देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार,जिस के प्रधानमंत्री पूर्णता गैर कांग्रेसी थे श्री अटल बिहारी वाजपेयी ।
अटल जी के शांति प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान की नापाक हरकतें जारी रही तो शांति के मसीहा अपने नाम अटल की तरह अड़ गए देश के स्वाभिमान के लिए ....सेना को पूरी शक्ति और सामर्थ्य से दुश्मन को सीमा पार खदेड़ने का आदेश दे दिया ।
आज  वे दुनिया में नहीं है पर उनके कुशल राजनीतिक नेतृत्व को दिल से नमन।
युद्ध में लड़ने वाले सैनिकों का योगदान अतुलनीय है जिनकी तुलना नहीं की जा सकती वह हमारे लिए श्रद्धा के केंद्र है ।
आइए इस विजय के 20 साल बाद  जानते हैं कारगिल के युद्ध की विजय गाथा को।

*कारगिल जंग की डायरी*

3 मई,1999: एक चरवाहे ने भारतीय सेना को कारगिल में पाकिस्तान सेना के घुसपैठ कर कब्जा जमा लेने की सूचनी दी।
5 मई: भारतीय सेना की पेट्रोलिंग टीम जानकारी लेने कारगिल पहुंची तो पाकिस्तानी सेना ने उन्हें पकड़ लिया और उनमें से पांच की हत्या कर दी।
9 मई: पाकिस्तानियों की गोलाबारी से भारतीय सेना का कारगिल में मौजूद गोला बारूद का स्टोर नष्ट हो गया।
10 मई: पहली बार लद्दाख का प्रवेश द्वार यानी द्रास, काकसार और मुश्कोह सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा गया।
26 मई: भारतीय वायुसेना को कार्रवाई के लिए आदेश दिए गए।
27 मई: कार्रवाई में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ मिग-27 और मिग-29 का भी इस्तेमाल किया, लेकिन फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता को बंदी बना लिया।
28 मई: एक मिग-17 हेलीकॉप्टर पाकिस्तान द्वारा मार गिराया गया और चार भारतीय फौजी मारे गए।

1 जून: एनएच- 1A पर पाकिस्तान द्वारा भारी गोलाबारी की गई।
5 जून: पाकिस्तानी रेंजर्स से मिले कागजातों को भारतीय सेना ने अखबारों के लिए जारी किया, जिसमें पाकिस्तानी रेंजर्स के मौजूद होने का जिक्र था।
6 जून: भारतीय सेना ने पूरी ताकत से जवाबी कार्यवाई शुरू कर दी।
9 जून: बाल्टिक क्षेत्र की 2 अग्रिम चौकियों पर भारतीय सेना ने फिर से कब्जा जमा लिया।
11 जून: भारत ने जनरल परवेज मुशर्रफ और आर्मी चीफ लेफ्टीनेंट जनरल अजीज खान से बातचीत की रिकॉर्डिंग जारी किया, जिससे जिक्र है कि इस घुसपैठ में पाक आर्मी का हाथ है।
13 जून: भारतीय सेना ने द्रास सेक्टर में तोलोलिंग पर कब्जा कर लिया।
15 जून: अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने परवेज मुशर्रफ से फोन पर कहा कि वह अपनी फौजों को कारगिल सेक्टर से बाहर बुला लें।
29 जून: भारतीय सेना ने टाइगर हिल के नजदीक दो महत्त्वपूर्ण चौकियों प्वाइंट 5060 और प्वाइंट 5100 पर फिर से कब्जा कर लिया।

2 जुलाई: भारतीय सेना ने कारगिल पर तीन तरफ से हमला बोल दिया।
4 जुलाई: भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर पुनः कब्जा पा लिया।
5 जुलाई: भारतीय सेना ने द्रास सेक्टर पर पुनः कब्जा किया। इसके तुरंत बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने बिल क्लिंटन को बताया कि वह करगिल से अपनी सेना को हटा रहे हैं।
7 जुलाई: भारतीय सेना ने बटालिक में स्थित जुबर हिल पर कब्जा पा लिया।
11 जुलाई: पाकिस्तानी रेंजर्स ने बटालिक से भागना शुरू कर दिया।
14 जुलाई: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऑपरेशन विजय की जीत की घोषणा कर दी।
26 जुलाई: तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाए जाने का एलान किया।

सेना में अदम्य साहस और वीरता के लिए दिए जाते हैं पुरस्कार और पदक करगिल के चित्र में सर्वाधिक पदक दिए गए सैनिकों को।
*हमारे रणबांकुरे*
*परमवीर चक्र विजेता*
*कैप्टन मनोज कुमार पांडे*
कैप्टन मनोज प्लाटून कमांडर थे, इनकी प्लाटून बटालिक सेक्टर के खालूबार की ओर बढ़ रही थी।उनके बटालियन के इस पूरी बढ़त पर दुश्मनों ने बुरी तरह रोक रखा था, जो कि उनसे ऊपर की पहाड़ियों पर पोजीशन लेकर आश्वस्त थे।उनके ऊपर जबर टॉप को फिर से भारत के अधिकार में लाने की चुनौती थी।

कंधे और टांग में बुरी तरह चोटिल होने के बावजूद, वे उनकी सैन्य टुकड़ी को लगातार प्रेरित कर रहे थे. बुरी तरह घायल होने और ख़ून के रिसाव के कारण भारत माता का यह सपूत देश पर कुर्बान हो गया. मगर उनकी शहादत बेकार नहीं गई और भारत ने इस युद्ध में दुश्मनों को बुरी तरह तबाह कर दिया।उनके अंतिम शब्द “ *ना छोड़ना* ” आज भी भारतीय सेना के लिए प्रेरणा और दुश्मनों के लिए खौफ़ का पर्याय हैं।
*ग्रेनेडियर योगेन्दर*
को सन् 1999 के कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता के प्रदर्शन हेतु सम्मानित किया गया था। वे घातक प्लाटून का हिस्सा थे, जिन्हें टाइगर हिल पर फिर से कब्जे की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई थी.। किसी भी प्रकार के खतरे से बेपरवाह ग्रेनेडियर योगेन्दर ने इस खड़ी चढ़ाई पर जीत हेतु वहां तक रस्सी के सहारे जाने का फैसला लिया.।

उनके इस बढ़ते कदम को देख कर दुश्मनों ने ग्रेनेड, रॉकेट और गोले-बारूद से हमला कर दिया. इसमें कमांडर और उनके दो साथियों की शहादत हो गई।. परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए ग्रेनेडियर योगेंदर रेंगते हुए आगे बढ़ते रहे और इस क्रम में उन्हें कई गोलियां भी लगीं। उनके इस साहस ने पूरी सैन्य टुकड़ी में ऊर्जा का संचार कर दिया और भारतीय सेना टाइगर हिल टॉप पर कब्ज़ा करने में सफल रही.। उनके इस अदम्य साहस और जिजीविषा हेतु उन्हें परम वीर चक्र से नवाज़ा गया।
 *राइफलमैन संजय कुमार*
राइफलमैन संजय कुमार उन दिनों जम्मू कश्मीर राइफल्स के साथ पोस्टिंग पर थे और उन्हें 4875 प्वाइंट के फ्लैट टॉप एरिया पर कब्ज़े की ज़िम्मेदारी दी गई थी. यह इलाका मुश्कोह घाटी का हिस्सा था और इस पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा था. वे उनकी जान की परवाह किए बगैर रेंगते हुए दुश्मनों के बंकर तक पहुंच गए.

गोलियां लगने की वजह से उनके शरीर से बुरी तरह ख़ून बह रहा था. वहां से उन्होंने दुश्मन के ही बंदूकों से तीन और दुश्मनों को मार गिराया. उनके इस अदम्य साहस के लिए उन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
*कैप्टन विक्रम बत्रा*
कैप्टन विक्रम बत्रा और उनकी 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स को प्वाइंट 5140 पर फिर से कब्ज़ा करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी. उन्होंने बहुत नज़दीक से हमला करके तीन दुश्मनों को मार गिराया था और इस क्रम में वे बुरी तरह घायल भी हो गए थे. हालांकि उनके चोटों से बेपरवाह वे लगातार लड़ते रहे.

*महावीर चक्र विजेता*

मेजर विवेक गुप्ता, 2 राजपुताना राइफल्स
मेजर पदमापानी आचार्य, 2 राजपुताना राइफल्स
कैप्टन एन केंगुरुसे, 2 राजपुताना राइफल्स
नायक दिगेंद्र कुमार, 2 राजपुताना राइफल्स
मेजर राजेश सिंह अधिकारी, 18 ग्रेनेडियर्स
लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, 18 ग्रेनेडियर्स
कैप्टन अनुज नायर, 17 जाट
लेफ्टिनेंट केशिंग क्लिफोर्ड नाेंग्रुम, 12 जैक लाइट इंफेंट्री
मेजर सोनम वांगचुक, लदाख स्काउट्स।
युद्ध में सैनिकों के महत्वपूर्ण साथी होते है,हथियार ....आइये,जानते है उनको भी...
77-B बोफोर्स - स्वीडन के साथ हुए बोफोर्स तोप सौदे को लेकर देश में काफी विवाद हुए। लेकिन इसी तोप ने अपना जलवा लड़ाई के मैदान में ऐसा दिखाया कि पाकिस्तानी फौजियों को अपनी पोस्ट छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। सेना भी इस जीत की बड़ी वजह 77-B  बोफर्स को ही मानती है। बोफोर्स तोप की बौछार की बदौलत सेना को कवर मिला और उसने लगातार आगे बढ़ते हुए घुसपैठियों को मार गिराया। बोफोर्स ने दुश्मनों के बंकरों को भारी नुकसान पहुंचाया और अपने जवानों को सुरक्षा कवच दिया।

30 किलोमीटर तक की अचूक वार करने वाली बोफोर्स 105mm के गोले,160mm और 120mm के मोर्टार, 122mm ग्रैड और BM 21 रॉकेट लॉन्चर से सीधा फॉयर करने में सक्षम है। इसके पाकिस्तानी सेना के 69 अधिकारी और नॉदर्न लाइट इनफैन्टरी के 772 जवान मारे गये। बोफोर्स के कहर बरपाते गोलों ने पाकिस्तानी सेना की रक्षा पंक्ति को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया और 1000 सैनिकों को घायल कर दिया। बोफर्स  हमले की जिम्मेदारी 3 बहादुर अधिकारी और 69 सैनिकों को दी गई थी जिन्होने अपनी जांबाजी से सेना की रणनीतिक लड़ाई को अंजाम दिया।
18 गन बैरल घिस गये- 286 मीडियम रेजिमेंट की इतिहास में ये पहली बार हुआ कि 18 गन बैरल सिर्फ 25 दिनों में फॉयर करते करते घिस गये। इसके बाद भी रेजिमेंट रुका नहीं और 163 मीडियम रेजीडेंट से नये गन बैरल लेकर हमला ऑपरेशन जारी रखा।तोपें - भारतीय तोपों ने  2,50,000 गोले, बम और रॉकेट कारगिल की लड़ाई में दागे। लगभग 5,000 तोपें रोजाना गोले और बम दागती थीं, जबकि 300 बंदूकें मोर्टार से दुश्मन पर वार करती थीं। जिस दिन टाइगर हिल से पाकिस्तानी कब्जा हटाया गया सिर्फ उस दिन  9,000 गोले जवानों ने दागे।
फॉयर अटैक- 1 राउंड फायर प्रति मिनट के हिसाब से 17 दिन तक लगातार किये गये जो दुनिया की किसी भी लड़ाई में दूसरे विश्व युद्ध के बाद नहीं हुआ। इस घमासान में हमारे जवान ना खा पाते थे और ना सो पाते थे।
मिग 21- ऑपरेशन 'सफेद सागर' के तहत भारतीय वायु सेना ने थल सेना की मदद मिग 21 लड़ाकू विमान के जरिए की।
और सबसे महत्वपूर्ण रहा इजरायल का साथ-इस्रायल ने सीमा सुरक्षा और आतंकरोध में अपने देश के तकनीकी और अनुभव को भारत के साथ बिना किसी समझौते के तहत किया। लेजर तकनीक का इस्तेमाल कर लड़ाकू विमान से मिसाइल के जरिए हमले में मदद की और ड्रोन से हवाई निगरानी कर दुश्मनों को खोज-खोजकर मार गिराने में भारतीय सेना की मदद की।
इस युद्ध के दौरान भारत ने 527 से ज्यादा वीर योद्धाओं को खोया था। वहीं 1300 से ज्यादा घायल हो गए थे। लगभग दो महीने तक यह युद्ध चला था। पाकिस्तान को भी अपनी कारस्तानी की कीमत घुसपैठियों के वेश में आये 3000 से ज्यादा सैनिकों को खोकर चुकानी पड़ी।
आइए, करगिल के विजय के महानायको को श्रद्धा से याद करें। एक बार फिर संकल्प लें,कि हम देश की रक्षा के लिए अपनी जान लुटाने वाले सैनिकों के साथ सदा खड़े रहेंगे।

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