कैसे दोस्त है,आप? रामजी ने बताये अच्छे दोस्त के गुण...नवरात्र विचार ६

जीवन एक तरह से युद्ध के समान होता है, इस जीवनरूपी नैया में समय समय पर परेशानियां भी आती रहती हैं। समय समय पर विभिन्न विपत्तियां आती हैं। इन विपत्तियों में हमें अपनों की पहचान हो पाती है। दुःख, मुसीबत में ही परम मित्र की सत्यता का प्रमाण मिलता है। किसी ने यहां तक कहा है कि सच्चा प्यार तो भी मिल जाता है लेकिन सच्चा मित्र मिलना बहुत मुश्किल है। कौन हमारा अच्छा मित्र है जो सदैव हमारे हित के बारे में ही सोचता है और कौन हमारा बुरा मित्र है, इसकी पहचान होना अति आवश्यक है। अच्छे मित्र के बारे में श्रीरामचरितमानस में जिक्र किया है।

आइए आज हम श्रीरामचरितमानस में मित्र धर्म पर की गई कुछ बातों को समझे और अपने आपको परखें,क्या हम किसी के सच्चे मित्र है?

मित्र के दुःख से होता है दुःख?

जे न मित्र दुःख होहि दुखारी।
तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।।
निज दुख गिरि सम  रज करि जाना। 
मित्रक दुख रज मेरू समाना।।
जिन्ह कें असि मति सहज न आई। 
ते सठ कत हठि करत मिताई।। 

जो मित्र अपने मित्र के दुःख में दुःखी ना हो, उन्हें देखकर ही पाप लगता है। अपने दुख को मित्र के दुःख के सामने रज के समान और मित्र के दुःख को पर्वत के समान समझने की सहज बुद्धि नहीं है वे मूर्ख मित्रता का हठ ही करते हैं।
 कहने का अर्थ है कि ऐसे लोगों से सदैव दूरी बनाए रखनी चाहिए। इसके साथ ही जो व्यक्ति अपने बड़े से बड़े दुख को धूल की तरह मानता है वहीं मित्र के धूल के जैसे कष्ट को किसी पहाड़ की तरह मानता है, असल में वही सच्चा मित्र है।

गलत काम करने से रोके...

कुपथ निवारि सुपंथ चलावा।
गुन प्रगटै अवगुनन्हि दुरावा।।

अर्थात -कुमार्ग से सन्मार्ग की ओर ले जाने वाला, गुणों का प्रसार और अवगुणों को दूर करने का प्रयास करता है।

अर्थात- जो लोग स्वाभाव से कम बुद्धि के होते हैं, मूर्ख होते हैं ऐसे लोगों से आगे बढ़कर कभी  मित्रता नहीं करनी चाहिए। एक अच्छा मित्र बनने के लिए एक समझदार इंसान होना भी आवश्यक है क्योंकि ऐसा कहने के पीछे आशय है कि एक सच्चे मित्र का धर्म होता है कि वह अपने मित्र को गलत और अनैतिक कार्य करने से रोके, साथ ही उसे सही रास्ते पर जाने के लिए प्रेरित करे और उसके गुणों को निखार कर सामने लाने में मदद करे और बुरी आदतों पर विराम लगाते हुए उसे सबके सामने आने से रोकने में भी साथ दे।

विपत्ति में निभाए साथ.....


देत लेत मन संक न धरई । 
बल अनुमान सदा हित कराई ॥
विपत्ति काल कर सतगुन नेहा। 
श्रुति का संत मित्र गुण एहा ॥

रामचरितमानस की इस चौपाई के अनुसार, किसी मनुष्य के पास चाहे कितनी भी धन-दौलत हो लेकिन अगर वह जरूरत के समय उसके मित्र के काम न आए तो व्यर्थ है। इसलिए हर मनुष्य को अपनी क्षमता अनुसार, अपने मित्र की सहायता बुरे समय में अवश्य करनी चाहिए। एक दूजे से सहायता लेने और देने में जिनके मन में शंका ना हो ।अच्छे और सच्चे मित्र की पहचान यही है कि वह दुख मुसीबत में जो भी बन पड़े अपने दोस्त की मदद के समय तत्पर रहे। वेदों और शास्त्रों में भी कहा गया है कि विपत्ति के समय साथ देने वाला और अधिक स्नेह करने वाला ही सच्चा मित्र होता है।

मुंहदेखा व्यवहार न करें

आगे कह मृदु वचन बनाई। 
पाछे अनहित मन कुटिलाई ॥
जाकर चित अहि गति सम भाई ।
अस कुमित्र परिहरेहीं भलाई ॥

इस चौपाई के अनुसार, ऐसा मनुष्य जो सामने पड़ने पर तो मीठी-मीठी बात करें हमारी भलाई की बात कहे लेकिन पीठ पीछे भर भर कर बुराई करे तो ऐसे मित्र का साथ छोड़ना ही बेहतर है। एक सच्चा दोस्त वही होता है जो जैसा हमारे पीठ पीछे व्यवहार करे वैसा ही हमारे सामने मुंहदेखा व्यवहार करने वाले लोगों से दोस्ती करना घाटे का सौदा होता है। इसी तरह जिसका मन सांप की चाल के समान टेढ़ा प्रतीत हो यानी जो मन में आपके प्रति कुटिल विचार, बुरा विचार रखता है हो वह दोस्त नहीं कुमित्र होता है। ऐसे लोगों को अपने जीवन से निकालने में ही भलाई है।


छल-कपटी न हो

सेवक सठ नृप कृपन कुनारी।
कपटी मित्र शूल सम चारि।। 

यह चौपाई कहती है कि जिस तरह एक इंसान को मूर्ख सेवक, कंजूस राजा,कुलटा स्त्री से खतरा होता है वैसे ही एक कपटी मित्र भी जीवन में किसी खतरे से कम नहीं होता है। ये चारों ही शूल(कांटे) के सामान होते हैं, इनसे बचना चाहिए।
जिस तरह कपटी मनुष्य धोखा देकर हृदय को दुखी करता है उसी तरह कपटी मित्र भी हमारे साथ छलावा कर सकता है। जिससे हमें नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए हमें सतर्क रहते हुए इन सभी प्रकृति के लोगों से दूर रहना चाहिए।
कोशिश करनी चाहिए मित्र के साथ सदैव विश्वासपूर्ण रिश्ते का निर्वाहन करें ऐसा कोई कृत्य न करें जिससे हमारे दोस्त को दुख या ठेस पहुंचे।

दुर्भाग्य से ऐसे मित्र नहीं मिले तो स्वयं श्रीराम को ही अपना मित्र बना लीजिए क्योंकि उन्होंने ही सुग्रीव को वचन देते हुए कहा है.


सखा सोच त्यागहु बल मोरें। 
सब बिधि घटब काज मैं तोरे।।

बाबा तुलसीदास जी ने प्रभु श्रीराम जी से कहलवाया
 -मित्र मेरे बल पर सब चिंता छोड़ दो मै हर तरह से तुम्हें सफल करूंगा। यह वचन वे सुग्रीव को देते हैं।
नवरात्र की इस पावन बेला में माँ जगज्जननी उमामहेश्वरी,बाबा बजरंग बली की साखी में मित्र धर्म के पालन का संकल्प लीजिये,फिर देखिए जीवन का आनंद।

।।शिव।।
शारदीय नवरात्र-२०७६(2076)

Comments

MANJU said…
मित्रलाभ की कड़ी में जुड़ने योग्य लेख।
Shiv Sharma said…
मित्र और मित्रता की चौपाइयों के माध्यम बहुत सुंदर व्याख्या
प्रणाम!आपका स्नेह बना रहे
Sangeeta tak said…
सच्चा प्रेम दुर्लभ है और सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है ।

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