जीवन प्रबंध के अधिष्ठाता है श्री राम...नवरात्र विचार ७

जानकीनाथ श्रीराम केवल पुराण पुरुष नहीं बल्कि जीवन प्रबंध,कौशल के अधिष्ठाता है.....
नवरात्र में बहुत सारे लोग नवराह्नपरायण के रूप में श्री राम चरित मानस का पाठ करते हैं.... कुछ लोग बाबा हनुमंत लाल जी के सुंदरकांड का पाठ करते हैं .....कुछ लोग माता जगदंबिका के दुर्गा सप्तशती के पाठ करते हैं।
कुछ अन्य मंत्रों के माध्यम से माता भगवती को प्रसन्न करते है ।श्री राम चरित मानस का पाठ करने के पीछे मुझे लगता है जो गंभीर विषय है वह है विजयादशमी उत्सव का अगले दिन होना,जो श्री राम की रावण पर विजय का उत्सव है और अधर्म पर धर्म की जय का महोत्सव है।
 शक्ति पर्व के मध्य रामजी जैसी मर्यादा जीवन में उतारने और उससे समाज में विजयश्री हासिल कर जीवन में दीपोत्सव सा आनंद लाने के लिए श्री राम चरित्र मानस के पठन की परंपरा शुरू हुई होगी ।
राम केवल पुराण पुरुष नहीं है,बल्कि जीवन जीने के प्रबंध कौशल के अधिष्ठाता है ।
जीवन में सफल होना है तो सबसे जरूरी है आप में धैर्य का होना,श्रीराम के जीवन में धैर्य की पराकाष्ठा है ....आप सोचिए एक व्यक्ति जिसको प्रातः राज पाट संभालना है उसे यकायक कहा जाए कि वल्कल वस्त्र धारण करिए और वन को प्रस्थान करें।
एक पल भी उनके चेहरे पर विषाद नहीं दिखता...ना राज मिलने से हर्षित होते हैं न वन जाने से दुखी होते हैं ऐसा अमित धैर्य जीवन में जिसके पास हो उसे कौन पराजित कर सकता है?
उनके जीवन में दूसरा पहलू है स्वयं पर विश्वास .....रघुकुल तत्कालीन समय का सबसे बड़ा वंश था ,वे  केवल राजा दशरथ के पुत्र नहीं बल्कि रघु,इक्ष्वाकु,भागीरथ जैसे सम्राटों के वंशज थे तो दूसरी ओर महाराज जनक के जामाता भी।
जब वन के लिए निकले तो ऐसा नहीं है कि आसपास कोई नगर नहीं रहा होगा...? किसी को भी संदेश भेज देते तो हर कोई राजा उनके चरण वंदन करने के लिए उपस्थित हो जाता ।
माता सीता का हरण हुआ पंचवटी से ...तब वे अपने ननिहाल कौशल से थोड़ी ही दूरी पर थे ,वह अपने ननिहाल से सहायता लेकर रावण पर हमला कर सकते थे।
वे जनकजी को संदेश भेजकर उनकी सेना को लेकर रावण पर हमला कर सकते थे ...वे भरत से सैनिक सहायता मांग सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया..... उन्होंने अपने स्वयं के पुरुषार्थ से अर्जित किया,उसी से ही विजय का वरण किया ।
श्रीराम के जीवन में एक बात और समझ में आती है वह है साधनों की पवित्रता...
 जब वे सुग्रीव से मिलते हैं जो वंचित है, पीड़ित है और सामने महाराज बाली हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने रावण को अपनी बगल में दबा लिया था और घूमते रहे थे, उसके बहुत अनुनय विनय करने के बाद उसे छोड़ा गया था।
 वे चाहते तो सुग्रीव को छोड़कर बाली से दोस्ती करते और बाली की शक्ति जब इतनी थी तो रावण को वह कभी भी समाप्त करवा सकता था,पर उन्होंने साधन की पवित्रता पर ध्यान दिया और पीड़ित वंचित को साथ लेकर उसे शक्ति का भान करवाया ।
रामायण में राम रावण युद्ध के दौरान सुग्रीव ताकतवर सेनापति के रूप में उभरते हैं
भगवान श्री राम यदि अपने वनवास को टाल देते तो सोच कर देखिए क्या वे भगवान के रूप में पूरे समाज में पूजे जाते ? वे युवराज होते,वे महाराज होते ....वे कुछ भी होते पर भगवान श्रीराम नहीं होते.....उनके धैर्य और स्वयं पर विश्वास ने उन्हें साधारण मानवी से जग के मन का विजेता बनाया
श्री राम ने हमेशा अपने साथ के वंचित,पीड़ित,शोषित समाज के सामान्य मानवी को आगे बढ़ाया और उसे सम्मान दिया ।
आप देखिए हनुमान जी का आलिंगन करते हैं उसे अपना सबसे प्रिय मित्र,भरत के समान अनुज कह कर संबोधित करते हैं और जब वे रावण से युद्ध जीतकर अयोध्या पहुंचते हैं तो सब को बुला कर कहते हैं कि आप सबने मेरे लिए अपने परिवार का,अपने सुखों का त्याग किया था उसके लिए मैं आपका ऋणी हूं और आप मेरे लिए सीता,लक्ष्मण,भरत सबसे ज्यादा प्रिय है।
इस आत्मीयता के कारण ही वे पूज्य बने और समाज के आदर्श बने ।
उन्होंने अपने सहचरों को कभी प्रताड़ित नहीं किया,उन्हें प्रोत्साहित किया ।
क्या हम अपने साथ काम करने वाले लोगों को प्रोत्साहित करते हैं ?
उनके अच्छे काम के लिए उनकी पीठ थपथपाते हैं ?अपने परिवार में क्या हम ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं..?
 वे अपने साथियों में नेतृत्व क्षमता के गुण विकसित करते हैं, जब वे हनुमान जी को मुद्रिका देते हैं माता जानकी की खोज करने के लिए,तो उस समय उन्हें क्या करना है यह कुछ नहीं कहते।हनुमान जी स्वयं वहां जाते हैं और अपने बुद्धि विवेक से जो कुछ करते हैं ...लंका को आग लगाते हैं,... लंका को तहस-नहस करते हैं और जब वापस आकर बताते हैं तो उनकी पीठ थपथपाते  है,वह यह नहीं कहते हैं कि मेरी इजाजत के बिना ऐसा किया क्यों ?
मैंने कहा थोड़ी था कि वहां आग लगानी है...?
 वह जाने से पहले कोई सीमा में नहीं बांधते,उन पर भरोसा करते है...वे फ्रीहैण्ड कर देते है कि तुम्हें करना क्या है,यह तय तुम्हें ही करना है,इसलिए बताते नहीं... इससे अभिप्राय यह है कि वे हनुमान जी के नेतृत्व के गुणों को प्रोत्साहित करते हैं ।

नहीं तो आज के राजनीतिक परिदृश्य में देखें तो आदमी को संकट लगने लग जाता है कि यदि सहयोगी आगे बढ़ गया,अधिक पॉपुलर हो गया तो मेरी कुर्सी को कोई खतरा नहीं हो जाए....
आइए इस नवरात्र हम अपने जीवन में श्रीराम के धैर्य,स्वयं पर विश्वास,साथियों से आत्मीयता और उनके काम की प्रशंसा के गुणों को आत्मसात करें तभी सच्चे अर्थों में राम के प्रति हमारी आस्था प्रबल होगी।
।।शिव।।
शारदीय नवरात्र-२०७६ (2076)

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