बलात्कारियों के रूप में पनप रहे नव हूणों का शिरोच्छेदन स्कन्दगुप्त के विचार के अनुकूल ही होगा...

क्या केवल कानून बनाने से अपराध रुक जाएंगे..? क्या अपराधियों को दंड देने की प्रक्रिया सीधी सपाट और सरल नहीं होनी चाहिए...? क्या खुलेआम घूमने वाले इन भेड़ियों को सरेआम फांसी लगाने का प्रावधान नहीं होना चाहिए? क्या अधिकतम समय सीमा तय नहीं होनी चाहिए ..? अपराधी, अपराधी है वो किसी जाति, किसी समाज - समुदाय का हो एकमेव अपराधी ही है ...पर उनके साथ कौन खड़ा होता है? यह देखने की बात है...पीड़िता के पक्ष में कौन खड़ा होता है यह भी देखने की बात है... तथाकथित शांति के पैरोकार, तथाकथित प्ले कार्ड धारक, तथाकथित गांधीवादी- शांतिवादी अब क्यों मौन हो जाते हैं जब एक वर्ग विशेष की किसी महिला के साथ अत्याचार होता है । दलित, हिंदू, और मुस्लिम में महिलाओं को बांट कर हम हमारी माता को बांट देते हैं। मां मां होती है वह किसी जाति, संप्रदाय से नहीं आती... हमारे देखने का नजरिया बदल जाता है और हमारा देखने का नजरिया बदला है मीडिया ने ... एक दलित महिला के साथ अत्याचार एक अल्पसंख्यक महिला के साथ अत्याचार आखिर यह क्यों होना चाहिए? लिखते समय उनकी आत्मा कचोटती नहीं होगी ? किसी महिला का उत्पीड़न करने...