शिशुपाल मत बनिए... सत्य के श्रीकृष्ण को आत्मसात करिए....

रात को एक पुस्तक पढ़ रहा था, उसमें महाभारत का एक दृष्टांत था।
भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था और वह भी भरी सभा में।
 कहानी यह है कि शिशुपाल बचपन से ही अक्खड़,बददिमाग था और अपने आप को बहुत बड़ा योद्धा मानता था और श्री कृष्ण से उसकी जमती नहीं थी।
 हर बार वह श्री कृष्ण के सामने होकर गालियां निकालता था तो शिशुपाल की मां जो कि रिश्ते में भगवान श्री कृष्ण की बुआ लगती थी ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा- पुत्र! शिशुपाल तेरा छोटा भाई है, उसकी गलतियां माफ कर दिया कर.... तब श्रीकृष्ण ने कहा था -बुआजी !सब गलतियां तो नहीं पर इसकी 100 गलतियां माफ करने का मैं वचन देता हूं ।
महाराज युधिष्ठिर की सभा में शिशुपाल अपनी 96वीं गाली देता है तो श्रीकृष्ण उसे टोकते है,लेकिन शीशुपाल एक और देता है.... भगवान श्री कृष्ण कहते हैं रुक जा शिशुपाल... पर वह एक और गाली देता है फिर श्री कृष्ण कहते हैं,शिशुपाल! बस कर बस .....पर वह अट्टहास करता है और कहता है कायर है जो तुम मुझे बार-बार रोकने की बात करता है, हिम्मत है तो शस्त्र उठा.... दिखा तेरी वीरता... फिर एक और गाली और भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र उसकी गर्दन धड़ से अलग कर देता.... 

क्या भगवान श्री कृष्ण सौ गालियां सुनने तक कायर थे? या वह जो गालियां शिशुपाल बोल रहा था वही कृष्ण थे ?
कृष्ण, कृष्ण थे और शिशुपाल, शिशुपाल था ....श्री कृष्ण अपना वचन निभाने के लिए विवश थे और शिशुपाल अपना चरित्र दिखाने के लिए विवश था।
 हमारे परिवारों में भी,समाज में भी ऐसी अनेक घटनाएं होती हैं ।कोई व्यक्ति आपकी बात सुनता है, सुनकर कभी कड़वी बात की भी उपेक्षा कर जाता है इसका मतलब यह नहीं कि जो हमारी सुन रहा है वह कायर है...
 और जो कह रहा है वह कोई सत्यनिष्ठ या कोई बहुत बड़ा विद्वान है....
आज का एक उदाहरण हम सबके सामने है...मीडिया में हम देखते हैं कोई मोदी के पक्ष में लिखता है तो उसे गोदी मीडिया कहा जाता है और जो मोदी के विपक्ष में लिखता है उसे डिजाइनर पत्रकारिता कहा जाता है..... मोदी की हां में हां मिलाता है वह राष्ट्रवादी है और जो व्यवस्थाओं पर सवाल उठाता है वह पाकिस्तान परस्त हो जाता है।
 यह निर्णय तो समाज को करना है कौन शिशुपाल और कौन कृष्ण......जीवन में बनना है तो कृष्ण बनिए शिशुपाल नहीं ....क्योंकि शिशुपाल बनना सहज है, सरल है और कृष्ण बनना अपना जीवन की आहुति देने जैसा होता है, गरल पीना होता है ।
समाज में कुछ लोग शंख की तरह होते हैं कोई भी आए फूंक लगाओं और बजने लग जाते हैं, फिर माफी मांग लेते हैं और कुछ लोग संत की तरह होते हैं जो उन शंखों को बजते हुए सुनते हैं....समाज बिना शंख के भी नहीं रह सकता और बिना संत के भी नहीं रह सकता इसलिए समाज में दोनों का होना जरूरी है, दोनों की जरूरत है ....पर इतना ना हो कि शंख ज्यादा हो जाए और संत कम रह जाएं और ऐसा भी ना हो सब तरफ संत ही संत हो शंख नहीं रहे क्योंकि शंख नहीं रहेंगे तो शिशुपाल वाली सो गलती कौन करेगा....?  क्योंकि शिशुपाल नहीं तो भगवान श्री कृष्ण का यह दृष्टांत कभी नहीं होता।
शिशुपाल अकेला नहीं था जो भगवान श्रीकृष्ण को गालियां देता था और ना ही शिशुपाल के मरने से भगवान श्री कृष्ण को दी जाने वाली गालियां रुक गई थी ।शिशुपाल के रूप में जो गालियां देते थे वे सब महाभारत के युद्ध में निष्प्राण हो गए.... सब के सब उस कीमत को चुकाने के लिए मजबूर हो गए.... क्योंकि सत्य प्रताड़ित हो सकता है पराजित नहीं ।

इसलिये जीवन में सत्य को अंगीकार करिए,सत्य की पहचान करिए....अपने आसपास के लोगों को देखिए ....कहीं वे आपको शंख समझकर फूंक तो नहीं लगा रहे हैं?
फूंक-फूंक में अंतर होता है एक फूंक वह होती है जो घर में चूल्हे को जगाती है.... एक फूंक वह होती है जो बसे बसाई घर उजाड़ देती है ...एक फूंक वह होती है जो जीवन सुधार देती है, और एक वह होती है सब कुछ बिगाड़ देती है ....
शंख ही बनना है तो वह शंख बनना जो मंदिर में आरती के वक्त काम आता है ....वह शंख बनना जो जय का नाद करता है...
।।शिव।।

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