सीएए के विरोध को समझिए मुगालते में मत रहिए
सीएबी का विरोध हो या फिर एनआरसी अथवा एनपीआर अथवा अब जो बन चुके
सीएए का विरोध हो.... विरोध करने वाले लोगों के चेहरों को पहचानना जरूरी है.... विरोध का कारण क्या है इसको भी समझना जरूरी है.....CAB (सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल) जब सदन में प्रस्तुत हुआ तब बिना मतलब के कुछ सवाल खड़े किए गए और एक एक सवाल का भारत के गृह मंत्री ने जवाब दिया, यह कहते हुए कि देश के एक भी नागरिक की नागरिकता पर सवाल खड़े नहीं हो रहे हैं यह बिल नागरिकता देने का है नागरिकता छीनने का नहीं है।
उसके बावजूद प्रोपेगंडा राजनीति के तहत देशभर में एक भ्रम का माहौल बनाया गया पर 4 दिन मौन रहने वाले लोग यकायक उग्र हो गए ...क्योंकि देश की सबसे पुरानी पार्टी के कार्यक्रम में पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, और उनकी बहन प्रियंका वाड्रा ने बार-बार घरों से बाहर निकल कर उसका विरोध करने का आह्वान किया ।
दिल्ली के आम आदमी पार्टी के विधायक ने कथित शांतिप्रिय समुदाय के बीच में जाकर कहा कि यह बिल तो शुरुआत है बुर्के पर रोक लगेगी,दाढ़ी पर रोक लगेगी, टोपी पर रोक लगेगी, इसलिए घरों से बाहर निकलिए.... बरसों तक जिन लोगों को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया, जिन की शिक्षा के लिए व्यवस्था नहीं की गई,जिनको मुख्यधारा से जुड़ने नहीं दिया गया, ऐसे समुदाय को फिर बरगलाया गया.... हथियार बनाया गया और उसके बीच में बैठे हुए देश विध्वंसक शक्तियों ने काम किया और देश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति को,निजी संपत्ति को,पुलिस पर,आम लोगों पर पथराव शुरू हुए जैसे जम्मू कश्मीर में उग्रवादियों के उकसावे पर होते थे।
जिस जामिया मिलिया में पुलिस घुसने की बात की जाती है उस जामिया मिलिया में हजारों लोगों की उपस्थिति पहले से ही हो और वह भी कोई विद्यार्थी नहीं हो यह सवाल अपने आप में बड़ा है उसके पास में इतनी बड़ी संख्या में पत्थरों का इकट्ठा होना? हथियारों का इकट्ठा होना ?पुलिस पर हमला होना ? बार-बार इंगित करता है कि 4 दिन की शांति और उस रैली के बाद हुई प्रतिक्रिया में कुछ न कुछ लिंक जरूर है .....
तो क्या देश के सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को यह विचार नहीं करना चाहिए कि क्या देश हित में कुछ फैसले करने जरूरी है वह नहीं होने चाहिए या हर फैसले में अपना राजनीतिक नफा नुकसान देखकर ही निर्णय करना चाहिए।
जिस जीएसटी को लेकर वह आने वाली थी वह सफल नहीं हुई ...भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार सफल हो गई आज उस पर सवाल है ....ब्लैक मनी पर उनकी खुद की सरकार के तत्कालीन समय में सवाल उठते रहे कि हां ब्लैक मनी है उसको रोकने की कोशिश करेंगे जब वह ब्लैक मनी रोकने के लिए नोटबंदी जैसा कदम उठाया जाता है तो वहीं कांग्रेस सड़क पर उतरने की कोशिश करती है ....
एनआरसी असम में लागू हुआ है कांग्रेस के ही प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी के समय में हुए एक समझौते का भाग है जिसे बार-बार लटकाया जाता रहा,कभी सुरक्षा के नाम पर कभी सद्भावना के नाम पर, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया अब इसको लागू करना पड़ा और अब जब लागू हुआ है तो निश्चित रूप से लोगों के बारे में जानकारी आई है कि वह हिंदुस्तान के नागरिक ही हैं वह जो असम में रह रहे हैं बड़ी संख्या में घुसपैठिये ....भारत में भी इनकी संख्या करोड़ों में है इस बात की तस्दीक बड़ी संख्या में हो रहे अपराधों में होती है ।
जेएनयू में होते प्रदर्शनों को हम बारीकी से देखें तो सारे प्रदर्शनों में एक बात स्पष्ट दिखाई देती है कि उसमें CAA का विरोध एनआरसी का विरोध कम और भारतीयता, हिंदू संस्कृति पर आघात ज्यादा होते हैं सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों की कुछ फोटोग्राफ्स जो सोशल मीडिया में वायरल हुई वह आप देख सकते हैं ।
हिंदू महिलाएं माथे पर बिंदिया लगाती है....अपने सोलह श्रृंगार का प्रतीक मांग भरती है, साड़ी पहनती है उस पर उस प्रदर्शन में सवाल उठाए जाते हैं ....कुछ छात्राओं के हाथ में ऐसे आपत्तिजनक पोस्टर होते हैं जिनका विचार करना भी आवश्यक है पर सार्वजनिक रूप से जिन पर बात करना सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन सा लगता है इसलिए उन पर बात नहीं कर रहा हूं ....विरोध प्रदर्शन में जामिया यूनिवर्सिटी के विरोध प्रदर्शन में या जहां भी विरोध प्रदर्शन हुआ वहां तेरा मेरा रिश्ता क्या ला इलाहा इल्लल्लाह के नारे लगते हैं हिंदुओं की कब्र खुलेगी और हिंदुओं से आजादी जैसे नारे उठते हैं इस पूरे प्रकरण में आप किसी पार्टी का पक्ष मत रखिए ईमानदारी से विश्लेषण करिए ।
खिलाफत2 तो लिखा हुआ जो दीवार पर स्पष्ट कह रहा है उसको समझने की कोशिश करिए ....बताने की जरूरत नहीं कि उनके मन में क्या चल रहा है ....उनका विरोध भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम का नहीं है ना वो उस रजिस्टर से जिसमें सारे देशवासियों का डाटा आना है उसका विरोध कर रहे हैं उनको उनका विरोध अपनी शक्ति और सामर्थ्य की पहचान करने का है ....और अभिनंदन किया जाना चाहिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी का कि उन्होंने चाक-चौबंद व्यवस्थाओं के चलते और अपराधियों पर नकेल डालने के इरादे से पुलिस को दी गई खुली छूट का परिणाम था कि देश के बड़े भूभाग को सांप्रदायिकता की लपेट में ले लेने के नापाक मंसूबे धरे के धरे रह गए।
दिल्ली में जो अपराधी गिरफ्तार किये पुलिस ने उन अपराधियों के लिए जमानत लेने के लिए एक विधायक पहुंचता है उसी समुदाय का... वक्फ बोर्ड के वकील उनकी ओर से पैरवी करने के लिए खड़े होते हैं जो कि सरकारी वकील है।
ऐसे में सवाल उठता है कि विरोध करने वाले ,विरोध करवाने वाले उनके साथ खड़े हुए लोग कौन हैं ?
आप अपने आसपास के माहौल पर नजर डालिये... आपके फेसबुक, व्हाट्सएप, जो सोशल मीडिया में जो लोग एक्टिव है उनके अकाउंट पर नजर डालिए ...एक जमात के लोग हैं जो निंदा तक नहीं करते अपराधियों की... जब आप उनको निंदा करने के लिए कहते हैं तो वह अजीब अजीब से सवाल खड़े करते हैं ....शांति सद्भाव की बात करते हैं पर उनकी आलोचना करने के लिए बाहर नहीं आते ....एक बार भी नहीं कहा जाता कि नहीं हिंदुओं से आजादी का आंदोलन से कोई वास्ता नहीं है ....तेरा मेरा रिश्ता क्या ला इलाहा इल्लल्लाह कहने पर कोई सवाल नहीं उठाता चाहे वह कितना भी अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कहे....
आपके आस-पड़ोस के लोग को देख लीजिए सफेद भेड़ की तरह है वह जब उनको अवसर आता है और शांतिप्रिय हो जाते हैं जब अवसर आता है आक्रामक हो जाते हैं ....उनके स्टेटस देखिए ...उनकी भाषा देखिए उनका मौन देखिए ....उनका मौन उस आंदोलन के प्रति समर्थन देता है ...
राजस्थान का मुख्यमंत्री देश के टुकड़े टुकड़े हो जाने की बात करता है.... उसके खुद के गृह क्षेत्र में दंगाई बलवा करते हैं और वह जयपुर में बलवा करने वाले लोगों की जमात की अगुवाई करके शांति मार्च निकालता है ।
इससे बड़ा शर्मनाक वाक्य राजस्थान की धरती पर नहीं हो सकता कि हमारी भारत माता के बारे में कोई टुकड़े टुकड़े होने का बात करें वह भी किसी संवैधानिक पद पर बैठकर उस बिल के एक प्रावधान में बता दे वह की वह कहीं भेदभाव करता है ....
इस देश का विभाजन जब उनकी पार्टी के तत्कालीन नेताओं ने जो उनके आदर्श पुरुष है, उनके चरित्र पुरुष हैं हस्ताक्षर किए थे तो उसमें स्पष्ट था पाकिस्तान मुसलमानों के लिए और भारतीयों के लिए भारत है तो फिर आज सवाल खड़े क्यों किए जाएं?
जो लोग धर्म के आधार पर पीड़ित हैं,प्रताड़ित हैं उन लोगों को सम्मान,संबल देने के लिए भारत खड़ा होना चाहिए उसमें उनको दिक्कत कहां है...
अपराधियों से, दंगाइयों से डरकर हिंदुस्तान का विभाजन हुआ था...
आज भी वह दंगाई और अपराधी वही माहौल बनाना चाहते हैं....
देश के विभाजन की बात चलती है तो तथाकथित बुद्धिजीवी बार-बार वीर सावरकर के द्वि राष्ट्र सिद्धांत की बात करते हैं ....तो क्या कांग्रेस के नेता एक बात बताएंगे 14 अगस्त 1947 की अर्ध रात्रि पर जिस दस्तावेज पर साइन किए गए थे उन पर हस्ताक्षर करने से पहले वीर सावरकर की सहमति ली गई थी? या वीर सावरकर की सलाह से ही कांग्रेस सारे काम करती थी? यदि ऐसा है तो फिर वह अपने आप को गांधीजी का अनुगामी क्यों कहती है? और यदि नहीं तो फिर उसकी जिम्मेदारी वीर सावरकर जी पर क्यों ?
वीर सावरकर जी ने जिस संदर्भ में कहा वह बात आज भी उपयुक्त है कि जिन लोगों के लिए राष्ट्र से बड़ा अपना मजहब होता है और जिन लोगों के लिए इस देश की माटी से लगाव कि बजाय खलीफा से प्रेम होता है उनका इस देश से रिश्ता नहीं हो सकता ...
इस देश में एक ऐसी संस्कृति पली-बढ़ी है जो इस देश की माटी को अपनी मां मानती है और एक ऐसी संस्कृति इस देश में पनपने की कोशिश करती है इसको गंगा जमुनी तहजीब कहते हैं जो इस धरती को केवल जमीन का टुकड़ा मानती है और उसी नजरिए की झलक देश के पहले प्रधानमंत्री ने जब चीन ने भारत पर हमला किया तो यह कहकर संसद में दी थी कि वह जो जमीन है जिस पर चीन ने कब्जा किया है, वह तो बंजर थी जिस पर एक घास का तिनका तक नहीं उगता...
ऐसे शर्मनाक बयान देने वाले विचारों को इंगित करती है....
सीएए के बारे में आपने बहुत कुछ पढ़ा होगा जब देश का विभाजन हुआ तो स्पष्ट रूप से धार्मिक आधार पर हुआ.... एक वह वर्ग जो अलग रहना चाहता था अब मुस्लिम समुदाय उसके लिए इस्लामिक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान बन चुका था और एक वह वर्ग जो इस देश को अपनी माता मानता था, माता मानता है और माता ही मानता रहेगा उनके लिए हिंदुस्तान यथावत रहा और बहुत बड़ा भूभाग देने के बावजूद जब कोई संविधान नहीं था, कोई सरकार नहीं थी, उस समय भी इस देश में सहिष्णुता के नाम पर वसुधेव कुटुंबकम की संस्कृति मानने वाले लोगों ने देश के बंटवारे का समर्थन करने वाले समुदाय और कौम को खदेड़ने के बजाय कहा कि नहीं यह हमारे भाई हैं यहां रहना चाहते हैं तो रह सकते हैं..... उनके सद्भाव पर आज सवाल उठाए जाते हैं कि वह सहिष्णु नहीं है ....
अपने टैक्स के पैसे से देश में संसाधन जुटाने वाले समुदाय को कहा जाता है कि आप सहिष्णु नहीं है ....
आप सब लोग समझदार हैं, अपने आसपास नजर दौड़ा कर देखिए कि किसी हॉस्पिटल,किसी स्कूल किसी सामुदायिक उपयोग में आने वाली किसी बड़ी चीज का, बड़े भवन का, बड़ी सुविधाओं का विस्तार इस समुदाय ने किया है?
इस सवाल पर बहुत सारे लोग भी कहेंगे पंचर निकालने वाले लोग पैसे कहां से लाएंगे ..... सुदूर गांव ढाणियों में बड़ी बड़ी मस्जिद है, चारमीनार वाली मिल जाएंगी, बड़े-बड़े मदरसे मिल जाएंगे जिनमें गैर हिंदुओं का प्रवेश लगभग वर्जित है.... राजस्थान जैसे शांतिप्रिय प्रदेश में भी आपको बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा से बच्चे लाकर मदरसों में रखे जाने की जानकारियां मिल जाती हैं .... सुदूर गांवों तक में जब यह विस्तार हो रहा है क्योंकि उनके पास धन संपदा है .....तो उसका उपयोग सार्वजनिक संपत्ति निर्माण में क्यों नहीं होता यह सवाल बार-बार खड़ा होता है ?
केवल दीनी तालीम के लिए सब कुछ करने वाला समुदाय अपने दीन के लिए ही करने वाला समुदाय ....क्या उसकी जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह हिंदुस्तान के हर नागरिक के लिए सुविधाओं के विस्तार में अपना योगदान दें ....
एक बात गौर करने लायक है कई बार वे हमारे दलित भाइयों को, जो वंचित वर्ग के लोग हैं ,उनको अपने साथ जोड़कर बहुत बार बयान बाजी करते हैं पर जब उनको अधिकार देने की बात आती है,सम्मान देने की बात आती है तो वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में और अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों में इन वंचित भाइयों को आरक्षित नहीं करते।
वामपंथियों,कांग्रेस और मजहबी ठेकेदारों के गठजोड़ का परिणाम है सीएए का विरोध होना ।
क्योंकि वामपंथ की नींव हिल चुकी हैं,लगता है कि यह दशक वामपंथ की विदाई का दशक है ।
कॉन्ग्रेस सिकुड़ते हुए एक राजनीतिक दल के रूप में उभर रही है, महाराष्ट्र में सबसे छोटी पार्टी होकर सरकार में भागीदार है,झारखंड में सबसे छोटी पार्टी बनकर सत्ता में भागीदार है और दम ऐसे भरते है जैसे उसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है...
जिन राज्यों में कभी सरकार बनाती थी खुद की वहां सिकुड़ कर चौथे और पांचवें नंबर पर लूढ़कने के बावजूद अपनी वापसी के सपने दिखा रही है ।
इन सबके बीच हम भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करें या नहीं करें और इन आंदोलनों के पीछे कि सच को जानिए....
इन आंदोलन के बाहर जो लोग मौन बैठे हैं उनको पहचानिए.... उनको भी पहचानिए जो आपके साथ खड़े हैं, आपकी हां में हां मिलाने की कोशिश करते हैं, दिखावा करते हैं और सच कुछ और है वह समझने की कोशिश करिए....
1947 में देश विभाजन से पहले जो मतदान हुआ कि देश का धर्म के आधार पर विभाजन होना चाहिए या नहीं होना चाहिए ....उसके आंकड़ों पर यदि आप थोड़ा सा भी दृष्टिपात करेंगे तो बहुत सारी चीजें समझ में आ जाएंगी कि जो सार्वजनिक रूप से यह कहते थे कि देश का विभाजन नहीं होना चाहिए उन्होंने भी बड़ी संख्या में पाकिस्तान निर्माण के समर्थन में मतदान किया था..... हमें आसपास दिखने वाले ऐसे लोग जो अपने आप को आधुनिक बताते हैं, हमारी सामाजिक मान्यताओं का उपहास उड़ाते हैं ,कभी मंदिर पर टिप्पणी करते हैं, कभी किसी पंडित पर टिप्पणी करते हैं, कभी किसी भगवान पर टिप्पणी करते हैं और चुटकुले के रूप में हम उसको मजाक समझ कर छोड़ देते हैं ....पर क्या आपने कभी गौर किया है कि वह अपनी मान्यताओं,अपनी परंपराओं के खिलाफ कुछ भी नहीं सुनता ....न कुछ कहता है ।
आधुनिक दिखने वाला व्यक्ति अपने घर पर अपने बच्चे के लिए दीनी तालीम की व्यवस्था करता है वह किसी पंडित का मजाक उड़ा लेगा पर किसी मौलवी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलेगा ....
इन सब बातों को गौर से देखिए.... शांति से देखिए और जब यह नारा सुने कि तेरा मेरा रिश्ता क्या ला इलाहा इल्लल्लाह मन में संकल्प करिए कि मेरा भी एक नारा है तेरा मेरा रिश्ता क्या बाल्मीकि तुलसी सा.... हमें भी इस बात को समझना पड़ेगा कि बाल्मीकि जी के राम थे और एक रामजी के भीम थे ....एक रिश्ता है हम सबका.... एक सहोदर भाव से, एक मां की संतान के रूप में हमें उठ खड़ा होना होगा.... तभी जाकर इन नारों का भी जवाब दिया जाएगा और आने वाले संकटों पर हम विजय होंगे ....
संकटों से मुंह मोड़ लेने वाले समाज के रूप में हम हमारी पहचान स्थापित करना चाहते हैं या संकटों का प्रतिकार कर विजय होने वाले समाज के रूप में हम खड़ा होना चाहते हैं अब यह तय करने का समय आ गया है ।
वैसे हमारे लिए कहा जाता है कि हम अमृत पुत्र हैं, हम हमेशा जीवित रहेंगे ....बहुत सारी संस्कृतिया इस दुनिया से खत्म हो गई.... दुनिया के नक्शे से जिनका नामोनिशान मिट गया.... रोम, यूनान मिट गए जहां से...हस्ती है कि मिटती नहीं जहां से...जिसने लिखा उसी ने पाकिस्तान बनाने की पहल की.... इसलिए सावचेत रहिये... अब सच की ओर आंखें बंद मत करिए.... नहीं तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी... क्योंकि हम आज जिन परम्पराओं और संस्कृति को गर्व के साथ मना पा रहे हैं उसे बचाने के लिए हमारे पुरखों ने बलिदान किए है अगणित... छोटे-छोटे बच्चों को दीवार में चुनवा गया.... खोलते तेल के कड़ाहों में जिंदा तल दिया गया, हाथियों के नीचे कुचले गए पर अपने धर्म पर अडिग रहने का साहस हमारे पुरखों ने किया...
शिखाएं कटाने के बजाय अपना सिर कटवाने वाले समाज के लोग हम हैं...हूण जब धरती पर आए थे तो उससे चीन इसलिए बच गया कि उसे बड़ी दीवार बना रखी थी और भारत हूणों के दर्द को सहन कर खड़ा हुआ और स्कंदगुप्त के नेतृत्व में भारत की सीमाओं से बाहर खदेड़ दिया... जिन हूणों से दुनिया त्रस्त थी ऐसे हूणों को खदेड़ कर भगा देने वाला समुदाय आज गहरी निंद्रा में सो रहा है ....जागने का वक्त है,जगाने का वक्त है... सच का सामना कीजिए, झूठ के लबादे में मत रहिए... अपनी परंपराओं पर गर्व करिए पर सावचेत रहिए क्योंकि शत्रु सामने नहीं है ...आपके साथ रहकर आपकी पीठ पर खंजर घोपने के लिए तैयार है।
आप सबको ध्यान होगा कि भगवान रामजी और रावण के युद्ध में जब उनके अनुज लक्ष्मण जी को शक्ति बाण लगा था तो संजीवनी बूटी की आवश्यकता हुई थी और हनुमानजी बूटी लाने गए थे,तब रावण की योजना से कालनेमि नाम का एक राक्षस बीच रास्ते में बैठ गया था भगवान हनुमान जी का रास्ता रोकने के उद्देश्य से।
... और मीठा बनकर राम नाम लेकर उसने हनुमान जी का समय बर्बाद करने की कोशिश की थी और हनुमान जी ने उस कालनेमि को मार कर उस षड्यंत्र को और चक्रव्यूह को तोड़ा था ....इसलिए कालनेमि बनकर आने वाले कुछ लोगों को पहचानिए क्योंकि कालनेमि का वध यदि नहीं किया होता हनुमान जी ने, तो वह लक्ष्मण जी की मूर्छा तोड़ने वाली, जीवन देने वाली संजीवनी को समय पर नहीं ले जा सकते थे।
यदि हमें अमृत पुत्र रहना है तो हमें अमृत्व कि यह संजीवनी वक्त पर पीनी ही होगी और हमारे अमरत्व की संजीवनी है हमारी एकता, हमारी सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद संकट के समय एकजुट खड़े होने का साहस और सामर्थ्य ।
कोई सवाल नहीं है कि आप कितना समय दे सकते हैं एक छोटा सा उदाहरण है, भगवान राम जब लंका विजय के लिए सागर पर सेतु बांध रहे थे तब पास में ही गिलहरी को देखा वह एक बार समुद्र के पानी से अपने आप को भिगोती थी और बालू मिट्टी में आकर अपने आप को लोटपोट कर के अपने ऊपर मिट्टी लेकर उस सागर में जाकर वापस छोड़ दी थी वह भगवान राम के कार्य में अपना योगदान दे रही थी.... हम भी हमारे जीवन में प्रतिदिन में से कुछ पल इस बात के लिए सोचने और विचार करने के लिये... लोगों को जागरूक करने में खर्च करें कि समय आ गया है.... राजस्थानी में कहावत है एको राखो,चेतो राखो और खुडको राखो.... आज बस इतना ही।
।।शिव।।
सीएए का विरोध हो.... विरोध करने वाले लोगों के चेहरों को पहचानना जरूरी है.... विरोध का कारण क्या है इसको भी समझना जरूरी है.....CAB (सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल) जब सदन में प्रस्तुत हुआ तब बिना मतलब के कुछ सवाल खड़े किए गए और एक एक सवाल का भारत के गृह मंत्री ने जवाब दिया, यह कहते हुए कि देश के एक भी नागरिक की नागरिकता पर सवाल खड़े नहीं हो रहे हैं यह बिल नागरिकता देने का है नागरिकता छीनने का नहीं है।
उसके बावजूद प्रोपेगंडा राजनीति के तहत देशभर में एक भ्रम का माहौल बनाया गया पर 4 दिन मौन रहने वाले लोग यकायक उग्र हो गए ...क्योंकि देश की सबसे पुरानी पार्टी के कार्यक्रम में पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, और उनकी बहन प्रियंका वाड्रा ने बार-बार घरों से बाहर निकल कर उसका विरोध करने का आह्वान किया ।
दिल्ली के आम आदमी पार्टी के विधायक ने कथित शांतिप्रिय समुदाय के बीच में जाकर कहा कि यह बिल तो शुरुआत है बुर्के पर रोक लगेगी,दाढ़ी पर रोक लगेगी, टोपी पर रोक लगेगी, इसलिए घरों से बाहर निकलिए.... बरसों तक जिन लोगों को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया, जिन की शिक्षा के लिए व्यवस्था नहीं की गई,जिनको मुख्यधारा से जुड़ने नहीं दिया गया, ऐसे समुदाय को फिर बरगलाया गया.... हथियार बनाया गया और उसके बीच में बैठे हुए देश विध्वंसक शक्तियों ने काम किया और देश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति को,निजी संपत्ति को,पुलिस पर,आम लोगों पर पथराव शुरू हुए जैसे जम्मू कश्मीर में उग्रवादियों के उकसावे पर होते थे।
जिस जामिया मिलिया में पुलिस घुसने की बात की जाती है उस जामिया मिलिया में हजारों लोगों की उपस्थिति पहले से ही हो और वह भी कोई विद्यार्थी नहीं हो यह सवाल अपने आप में बड़ा है उसके पास में इतनी बड़ी संख्या में पत्थरों का इकट्ठा होना? हथियारों का इकट्ठा होना ?पुलिस पर हमला होना ? बार-बार इंगित करता है कि 4 दिन की शांति और उस रैली के बाद हुई प्रतिक्रिया में कुछ न कुछ लिंक जरूर है .....
तो क्या देश के सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को यह विचार नहीं करना चाहिए कि क्या देश हित में कुछ फैसले करने जरूरी है वह नहीं होने चाहिए या हर फैसले में अपना राजनीतिक नफा नुकसान देखकर ही निर्णय करना चाहिए।
जिस जीएसटी को लेकर वह आने वाली थी वह सफल नहीं हुई ...भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार सफल हो गई आज उस पर सवाल है ....ब्लैक मनी पर उनकी खुद की सरकार के तत्कालीन समय में सवाल उठते रहे कि हां ब्लैक मनी है उसको रोकने की कोशिश करेंगे जब वह ब्लैक मनी रोकने के लिए नोटबंदी जैसा कदम उठाया जाता है तो वहीं कांग्रेस सड़क पर उतरने की कोशिश करती है ....
एनआरसी असम में लागू हुआ है कांग्रेस के ही प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी के समय में हुए एक समझौते का भाग है जिसे बार-बार लटकाया जाता रहा,कभी सुरक्षा के नाम पर कभी सद्भावना के नाम पर, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया अब इसको लागू करना पड़ा और अब जब लागू हुआ है तो निश्चित रूप से लोगों के बारे में जानकारी आई है कि वह हिंदुस्तान के नागरिक ही हैं वह जो असम में रह रहे हैं बड़ी संख्या में घुसपैठिये ....भारत में भी इनकी संख्या करोड़ों में है इस बात की तस्दीक बड़ी संख्या में हो रहे अपराधों में होती है ।
जेएनयू में होते प्रदर्शनों को हम बारीकी से देखें तो सारे प्रदर्शनों में एक बात स्पष्ट दिखाई देती है कि उसमें CAA का विरोध एनआरसी का विरोध कम और भारतीयता, हिंदू संस्कृति पर आघात ज्यादा होते हैं सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों की कुछ फोटोग्राफ्स जो सोशल मीडिया में वायरल हुई वह आप देख सकते हैं ।
हिंदू महिलाएं माथे पर बिंदिया लगाती है....अपने सोलह श्रृंगार का प्रतीक मांग भरती है, साड़ी पहनती है उस पर उस प्रदर्शन में सवाल उठाए जाते हैं ....कुछ छात्राओं के हाथ में ऐसे आपत्तिजनक पोस्टर होते हैं जिनका विचार करना भी आवश्यक है पर सार्वजनिक रूप से जिन पर बात करना सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन सा लगता है इसलिए उन पर बात नहीं कर रहा हूं ....विरोध प्रदर्शन में जामिया यूनिवर्सिटी के विरोध प्रदर्शन में या जहां भी विरोध प्रदर्शन हुआ वहां तेरा मेरा रिश्ता क्या ला इलाहा इल्लल्लाह के नारे लगते हैं हिंदुओं की कब्र खुलेगी और हिंदुओं से आजादी जैसे नारे उठते हैं इस पूरे प्रकरण में आप किसी पार्टी का पक्ष मत रखिए ईमानदारी से विश्लेषण करिए ।
खिलाफत2 तो लिखा हुआ जो दीवार पर स्पष्ट कह रहा है उसको समझने की कोशिश करिए ....बताने की जरूरत नहीं कि उनके मन में क्या चल रहा है ....उनका विरोध भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम का नहीं है ना वो उस रजिस्टर से जिसमें सारे देशवासियों का डाटा आना है उसका विरोध कर रहे हैं उनको उनका विरोध अपनी शक्ति और सामर्थ्य की पहचान करने का है ....और अभिनंदन किया जाना चाहिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी का कि उन्होंने चाक-चौबंद व्यवस्थाओं के चलते और अपराधियों पर नकेल डालने के इरादे से पुलिस को दी गई खुली छूट का परिणाम था कि देश के बड़े भूभाग को सांप्रदायिकता की लपेट में ले लेने के नापाक मंसूबे धरे के धरे रह गए।
दिल्ली में जो अपराधी गिरफ्तार किये पुलिस ने उन अपराधियों के लिए जमानत लेने के लिए एक विधायक पहुंचता है उसी समुदाय का... वक्फ बोर्ड के वकील उनकी ओर से पैरवी करने के लिए खड़े होते हैं जो कि सरकारी वकील है।
ऐसे में सवाल उठता है कि विरोध करने वाले ,विरोध करवाने वाले उनके साथ खड़े हुए लोग कौन हैं ?
आप अपने आसपास के माहौल पर नजर डालिये... आपके फेसबुक, व्हाट्सएप, जो सोशल मीडिया में जो लोग एक्टिव है उनके अकाउंट पर नजर डालिए ...एक जमात के लोग हैं जो निंदा तक नहीं करते अपराधियों की... जब आप उनको निंदा करने के लिए कहते हैं तो वह अजीब अजीब से सवाल खड़े करते हैं ....शांति सद्भाव की बात करते हैं पर उनकी आलोचना करने के लिए बाहर नहीं आते ....एक बार भी नहीं कहा जाता कि नहीं हिंदुओं से आजादी का आंदोलन से कोई वास्ता नहीं है ....तेरा मेरा रिश्ता क्या ला इलाहा इल्लल्लाह कहने पर कोई सवाल नहीं उठाता चाहे वह कितना भी अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कहे....
आपके आस-पड़ोस के लोग को देख लीजिए सफेद भेड़ की तरह है वह जब उनको अवसर आता है और शांतिप्रिय हो जाते हैं जब अवसर आता है आक्रामक हो जाते हैं ....उनके स्टेटस देखिए ...उनकी भाषा देखिए उनका मौन देखिए ....उनका मौन उस आंदोलन के प्रति समर्थन देता है ...
राजस्थान का मुख्यमंत्री देश के टुकड़े टुकड़े हो जाने की बात करता है.... उसके खुद के गृह क्षेत्र में दंगाई बलवा करते हैं और वह जयपुर में बलवा करने वाले लोगों की जमात की अगुवाई करके शांति मार्च निकालता है ।
इससे बड़ा शर्मनाक वाक्य राजस्थान की धरती पर नहीं हो सकता कि हमारी भारत माता के बारे में कोई टुकड़े टुकड़े होने का बात करें वह भी किसी संवैधानिक पद पर बैठकर उस बिल के एक प्रावधान में बता दे वह की वह कहीं भेदभाव करता है ....
इस देश का विभाजन जब उनकी पार्टी के तत्कालीन नेताओं ने जो उनके आदर्श पुरुष है, उनके चरित्र पुरुष हैं हस्ताक्षर किए थे तो उसमें स्पष्ट था पाकिस्तान मुसलमानों के लिए और भारतीयों के लिए भारत है तो फिर आज सवाल खड़े क्यों किए जाएं?
जो लोग धर्म के आधार पर पीड़ित हैं,प्रताड़ित हैं उन लोगों को सम्मान,संबल देने के लिए भारत खड़ा होना चाहिए उसमें उनको दिक्कत कहां है...
अपराधियों से, दंगाइयों से डरकर हिंदुस्तान का विभाजन हुआ था...
आज भी वह दंगाई और अपराधी वही माहौल बनाना चाहते हैं....
देश के विभाजन की बात चलती है तो तथाकथित बुद्धिजीवी बार-बार वीर सावरकर के द्वि राष्ट्र सिद्धांत की बात करते हैं ....तो क्या कांग्रेस के नेता एक बात बताएंगे 14 अगस्त 1947 की अर्ध रात्रि पर जिस दस्तावेज पर साइन किए गए थे उन पर हस्ताक्षर करने से पहले वीर सावरकर की सहमति ली गई थी? या वीर सावरकर की सलाह से ही कांग्रेस सारे काम करती थी? यदि ऐसा है तो फिर वह अपने आप को गांधीजी का अनुगामी क्यों कहती है? और यदि नहीं तो फिर उसकी जिम्मेदारी वीर सावरकर जी पर क्यों ?
वीर सावरकर जी ने जिस संदर्भ में कहा वह बात आज भी उपयुक्त है कि जिन लोगों के लिए राष्ट्र से बड़ा अपना मजहब होता है और जिन लोगों के लिए इस देश की माटी से लगाव कि बजाय खलीफा से प्रेम होता है उनका इस देश से रिश्ता नहीं हो सकता ...
इस देश में एक ऐसी संस्कृति पली-बढ़ी है जो इस देश की माटी को अपनी मां मानती है और एक ऐसी संस्कृति इस देश में पनपने की कोशिश करती है इसको गंगा जमुनी तहजीब कहते हैं जो इस धरती को केवल जमीन का टुकड़ा मानती है और उसी नजरिए की झलक देश के पहले प्रधानमंत्री ने जब चीन ने भारत पर हमला किया तो यह कहकर संसद में दी थी कि वह जो जमीन है जिस पर चीन ने कब्जा किया है, वह तो बंजर थी जिस पर एक घास का तिनका तक नहीं उगता...
ऐसे शर्मनाक बयान देने वाले विचारों को इंगित करती है....
सीएए के बारे में आपने बहुत कुछ पढ़ा होगा जब देश का विभाजन हुआ तो स्पष्ट रूप से धार्मिक आधार पर हुआ.... एक वह वर्ग जो अलग रहना चाहता था अब मुस्लिम समुदाय उसके लिए इस्लामिक राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान बन चुका था और एक वह वर्ग जो इस देश को अपनी माता मानता था, माता मानता है और माता ही मानता रहेगा उनके लिए हिंदुस्तान यथावत रहा और बहुत बड़ा भूभाग देने के बावजूद जब कोई संविधान नहीं था, कोई सरकार नहीं थी, उस समय भी इस देश में सहिष्णुता के नाम पर वसुधेव कुटुंबकम की संस्कृति मानने वाले लोगों ने देश के बंटवारे का समर्थन करने वाले समुदाय और कौम को खदेड़ने के बजाय कहा कि नहीं यह हमारे भाई हैं यहां रहना चाहते हैं तो रह सकते हैं..... उनके सद्भाव पर आज सवाल उठाए जाते हैं कि वह सहिष्णु नहीं है ....
अपने टैक्स के पैसे से देश में संसाधन जुटाने वाले समुदाय को कहा जाता है कि आप सहिष्णु नहीं है ....
आप सब लोग समझदार हैं, अपने आसपास नजर दौड़ा कर देखिए कि किसी हॉस्पिटल,किसी स्कूल किसी सामुदायिक उपयोग में आने वाली किसी बड़ी चीज का, बड़े भवन का, बड़ी सुविधाओं का विस्तार इस समुदाय ने किया है?
इस सवाल पर बहुत सारे लोग भी कहेंगे पंचर निकालने वाले लोग पैसे कहां से लाएंगे ..... सुदूर गांव ढाणियों में बड़ी बड़ी मस्जिद है, चारमीनार वाली मिल जाएंगी, बड़े-बड़े मदरसे मिल जाएंगे जिनमें गैर हिंदुओं का प्रवेश लगभग वर्जित है.... राजस्थान जैसे शांतिप्रिय प्रदेश में भी आपको बिहार, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा से बच्चे लाकर मदरसों में रखे जाने की जानकारियां मिल जाती हैं .... सुदूर गांवों तक में जब यह विस्तार हो रहा है क्योंकि उनके पास धन संपदा है .....तो उसका उपयोग सार्वजनिक संपत्ति निर्माण में क्यों नहीं होता यह सवाल बार-बार खड़ा होता है ?
केवल दीनी तालीम के लिए सब कुछ करने वाला समुदाय अपने दीन के लिए ही करने वाला समुदाय ....क्या उसकी जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह हिंदुस्तान के हर नागरिक के लिए सुविधाओं के विस्तार में अपना योगदान दें ....
एक बात गौर करने लायक है कई बार वे हमारे दलित भाइयों को, जो वंचित वर्ग के लोग हैं ,उनको अपने साथ जोड़कर बहुत बार बयान बाजी करते हैं पर जब उनको अधिकार देने की बात आती है,सम्मान देने की बात आती है तो वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में और अन्य अल्पसंख्यक संस्थानों में इन वंचित भाइयों को आरक्षित नहीं करते।
वामपंथियों,कांग्रेस और मजहबी ठेकेदारों के गठजोड़ का परिणाम है सीएए का विरोध होना ।
क्योंकि वामपंथ की नींव हिल चुकी हैं,लगता है कि यह दशक वामपंथ की विदाई का दशक है ।
कॉन्ग्रेस सिकुड़ते हुए एक राजनीतिक दल के रूप में उभर रही है, महाराष्ट्र में सबसे छोटी पार्टी होकर सरकार में भागीदार है,झारखंड में सबसे छोटी पार्टी बनकर सत्ता में भागीदार है और दम ऐसे भरते है जैसे उसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है...
जिन राज्यों में कभी सरकार बनाती थी खुद की वहां सिकुड़ कर चौथे और पांचवें नंबर पर लूढ़कने के बावजूद अपनी वापसी के सपने दिखा रही है ।
इन सबके बीच हम भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करें या नहीं करें और इन आंदोलनों के पीछे कि सच को जानिए....
इन आंदोलन के बाहर जो लोग मौन बैठे हैं उनको पहचानिए.... उनको भी पहचानिए जो आपके साथ खड़े हैं, आपकी हां में हां मिलाने की कोशिश करते हैं, दिखावा करते हैं और सच कुछ और है वह समझने की कोशिश करिए....
1947 में देश विभाजन से पहले जो मतदान हुआ कि देश का धर्म के आधार पर विभाजन होना चाहिए या नहीं होना चाहिए ....उसके आंकड़ों पर यदि आप थोड़ा सा भी दृष्टिपात करेंगे तो बहुत सारी चीजें समझ में आ जाएंगी कि जो सार्वजनिक रूप से यह कहते थे कि देश का विभाजन नहीं होना चाहिए उन्होंने भी बड़ी संख्या में पाकिस्तान निर्माण के समर्थन में मतदान किया था..... हमें आसपास दिखने वाले ऐसे लोग जो अपने आप को आधुनिक बताते हैं, हमारी सामाजिक मान्यताओं का उपहास उड़ाते हैं ,कभी मंदिर पर टिप्पणी करते हैं, कभी किसी पंडित पर टिप्पणी करते हैं, कभी किसी भगवान पर टिप्पणी करते हैं और चुटकुले के रूप में हम उसको मजाक समझ कर छोड़ देते हैं ....पर क्या आपने कभी गौर किया है कि वह अपनी मान्यताओं,अपनी परंपराओं के खिलाफ कुछ भी नहीं सुनता ....न कुछ कहता है ।
आधुनिक दिखने वाला व्यक्ति अपने घर पर अपने बच्चे के लिए दीनी तालीम की व्यवस्था करता है वह किसी पंडित का मजाक उड़ा लेगा पर किसी मौलवी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलेगा ....
इन सब बातों को गौर से देखिए.... शांति से देखिए और जब यह नारा सुने कि तेरा मेरा रिश्ता क्या ला इलाहा इल्लल्लाह मन में संकल्प करिए कि मेरा भी एक नारा है तेरा मेरा रिश्ता क्या बाल्मीकि तुलसी सा.... हमें भी इस बात को समझना पड़ेगा कि बाल्मीकि जी के राम थे और एक रामजी के भीम थे ....एक रिश्ता है हम सबका.... एक सहोदर भाव से, एक मां की संतान के रूप में हमें उठ खड़ा होना होगा.... तभी जाकर इन नारों का भी जवाब दिया जाएगा और आने वाले संकटों पर हम विजय होंगे ....
संकटों से मुंह मोड़ लेने वाले समाज के रूप में हम हमारी पहचान स्थापित करना चाहते हैं या संकटों का प्रतिकार कर विजय होने वाले समाज के रूप में हम खड़ा होना चाहते हैं अब यह तय करने का समय आ गया है ।
वैसे हमारे लिए कहा जाता है कि हम अमृत पुत्र हैं, हम हमेशा जीवित रहेंगे ....बहुत सारी संस्कृतिया इस दुनिया से खत्म हो गई.... दुनिया के नक्शे से जिनका नामोनिशान मिट गया.... रोम, यूनान मिट गए जहां से...हस्ती है कि मिटती नहीं जहां से...जिसने लिखा उसी ने पाकिस्तान बनाने की पहल की.... इसलिए सावचेत रहिये... अब सच की ओर आंखें बंद मत करिए.... नहीं तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी... क्योंकि हम आज जिन परम्पराओं और संस्कृति को गर्व के साथ मना पा रहे हैं उसे बचाने के लिए हमारे पुरखों ने बलिदान किए है अगणित... छोटे-छोटे बच्चों को दीवार में चुनवा गया.... खोलते तेल के कड़ाहों में जिंदा तल दिया गया, हाथियों के नीचे कुचले गए पर अपने धर्म पर अडिग रहने का साहस हमारे पुरखों ने किया...
शिखाएं कटाने के बजाय अपना सिर कटवाने वाले समाज के लोग हम हैं...हूण जब धरती पर आए थे तो उससे चीन इसलिए बच गया कि उसे बड़ी दीवार बना रखी थी और भारत हूणों के दर्द को सहन कर खड़ा हुआ और स्कंदगुप्त के नेतृत्व में भारत की सीमाओं से बाहर खदेड़ दिया... जिन हूणों से दुनिया त्रस्त थी ऐसे हूणों को खदेड़ कर भगा देने वाला समुदाय आज गहरी निंद्रा में सो रहा है ....जागने का वक्त है,जगाने का वक्त है... सच का सामना कीजिए, झूठ के लबादे में मत रहिए... अपनी परंपराओं पर गर्व करिए पर सावचेत रहिए क्योंकि शत्रु सामने नहीं है ...आपके साथ रहकर आपकी पीठ पर खंजर घोपने के लिए तैयार है।
आप सबको ध्यान होगा कि भगवान रामजी और रावण के युद्ध में जब उनके अनुज लक्ष्मण जी को शक्ति बाण लगा था तो संजीवनी बूटी की आवश्यकता हुई थी और हनुमानजी बूटी लाने गए थे,तब रावण की योजना से कालनेमि नाम का एक राक्षस बीच रास्ते में बैठ गया था भगवान हनुमान जी का रास्ता रोकने के उद्देश्य से।
... और मीठा बनकर राम नाम लेकर उसने हनुमान जी का समय बर्बाद करने की कोशिश की थी और हनुमान जी ने उस कालनेमि को मार कर उस षड्यंत्र को और चक्रव्यूह को तोड़ा था ....इसलिए कालनेमि बनकर आने वाले कुछ लोगों को पहचानिए क्योंकि कालनेमि का वध यदि नहीं किया होता हनुमान जी ने, तो वह लक्ष्मण जी की मूर्छा तोड़ने वाली, जीवन देने वाली संजीवनी को समय पर नहीं ले जा सकते थे।
यदि हमें अमृत पुत्र रहना है तो हमें अमृत्व कि यह संजीवनी वक्त पर पीनी ही होगी और हमारे अमरत्व की संजीवनी है हमारी एकता, हमारी सांस्कृतिक विविधताओं के बावजूद संकट के समय एकजुट खड़े होने का साहस और सामर्थ्य ।
कोई सवाल नहीं है कि आप कितना समय दे सकते हैं एक छोटा सा उदाहरण है, भगवान राम जब लंका विजय के लिए सागर पर सेतु बांध रहे थे तब पास में ही गिलहरी को देखा वह एक बार समुद्र के पानी से अपने आप को भिगोती थी और बालू मिट्टी में आकर अपने आप को लोटपोट कर के अपने ऊपर मिट्टी लेकर उस सागर में जाकर वापस छोड़ दी थी वह भगवान राम के कार्य में अपना योगदान दे रही थी.... हम भी हमारे जीवन में प्रतिदिन में से कुछ पल इस बात के लिए सोचने और विचार करने के लिये... लोगों को जागरूक करने में खर्च करें कि समय आ गया है.... राजस्थानी में कहावत है एको राखो,चेतो राखो और खुडको राखो.... आज बस इतना ही।
।।शिव।।
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