सरकार को उलाहना दीजिये पर क्या हम भी कुछ करेंगे..? करेंगे तो कब...?
आज गणतंत्र दिवस है,कुछ विचार करना... आपके बचपन जैसी खुशी,उत्साह, उमंग आपके बच्चों में है इस उत्सव को मनाने को लेकर? पहले घर में 26 जनवरी से 1 दिन पहले 25 जनवरी को पूरा परिवार लग जाता था क्योंकि उसके बच्चे की गणवेश को धोना होता था, उस पर इस्त्री करनी होती थी, इस्त्री घर पर नहीं होती थी तो मांग कर लाते थे नहीं तो किसी लोटे में अंगारे डालकर उस पर इस्त्री किया करते थे... पीटी शूज को धोया जाता था, खराब हो गए जूतों को खड़िया मिट्टी से चमकाया जाता था... ऐसा ही दृश्य 14 अगस्त को भी होता था... 25 जनवरी को या 14 अगस्त को देशभक्ति के तराने गूंजते थे और अगले दिन 15 अगस्त और 26 जनवरी को शाम तक विभिन्न कार्यक्रमों में हम व्यस्त रहते थे ...क्या हमारे बच्चे इसी तरह व्यस्त रहते हैं ?
मुझे कल आश्चर्य हुआ जब मैं एक मेरे मित्र के घर गया, बच्चे बैठे थे तो मैंने उन्हें पूछा बेटा कल तो रिपब्लिक डे है ?
तो बच्चे ने कहा अंकल! हमारे यहां तो आज मना लिया गया, कल की तो छुट्टी है वह बच्चा एक प्रतिष्ठित निजी विद्यालय में पढ़ता था। राष्ट्रीय उत्सव 1 दिन पहले ही मना लिया गया ऐसा ही 15 अगस्त के दिन होता है उसे 14 अगस्त को बनाकर 15 अगस्त की छुट्टी कर दी जाती है.... बच्चे में देशभक्ति के संस्कार आएंगे कहां से? उसमें कर्तव्य बोध होगा कब?
औपचारिकता निभानी है तो 1 दिन पहले 1 दिन बाद में निभाते क्या फर्क पड़ता है ....पर क्या राष्ट्रीय उत्सव भी एक औपचारिकता है ?एक कार्यक्रम है ?
यही कारण है कि देश के खिलाफ कोई बोलता है तो आज की पीढ़ी में गुस्सा नहीं आता.... हम अभिभावक भी बच्चे के कैरियर को लेकर इतने व्यग्र है,उतावले है उसे आज ही डॉ, कलक्टर बना देना चाहते है.... उसे देश, समाज से जुड़ने का प्रयत्न भी नहीं करते... राष्ट्रीय कार्यक्रमों को तो छोड़िए हम हमारे बच्चों को पारिवारिक कार्यक्रमों में भी ले जाना इसलिए पसंद नहीं करते क्योंकि उन्हें ट्यूशन जाना होता है, उन्हें होमवर्क करना होता है, हम बच्चों को व्यक्तिगत उपलब्धियों की ओर उन्मुख कर रहे हैं और कसूरवार ठहराते हैं इस बात के लिए कि आज के बच्चे हमारा ध्यान नहीं रखते या नहीं रखेंगे.... जब उन्हें समाज से जोड़ा ही नहीं जा रहा तो वे समाज की अवधारणा को स्वीकार कैसे करेंगे ?
जब राष्ट्र की अस्मिता के मान बिंदुओं से जोड़ा ही नहीं जा रहा तो फिर बच्चे राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ेंगे कैसे?
एक विद्यालय के स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में जाना हुआ बहुत पहले, तो मंच पर सरकाय लो खटिया.... गाने के साथ प्रस्तुति होने लगी मैंने जब विद्यालय के संचालक को कहा- यह क्या है? तो बोले बच्चों को आजकल यही पसंद है, जो अभिभावक आए हैं वे भी खुश होते हैं..... हम क्या शिक्षा दे रहे हैं? हम बच्चों को क्या बनाना चाहते हैं ?हम देश की सरकार को कोस सकते हैं.... पर क्या हम जिम्मेदार खुद नहीं हैं ?
हमने क्या कभी सवाल किया है कि हमारे बच्चों का करिकुलम क्या है? उन्हें क्या पढ़ाया जाता है ?
हम सवाल इसलिए भी नहीं कर सकते क्योंकि हमने वही पढ़ा है.... हम हमारे मान बिंदुओं से इतना कट गए कि कोई भी आकर हमारे मान बिंदुओं पर चोट कर दे हमें पता ही नहीं चलता... वह हमें आहत कर रहा है हम आहत केवल तब होते हैं जब हमारे व्यक्तिगत लाभ कम होते हैं, हमारे हित टकराते है.... सरकारों की ओर से दिए जाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों में क्या होता है इस पर भी हमने कभी गौर नहीं किया .... राजस्थान सरकार का शिक्षा विभाग भारत सरकार की राष्ट्रव्यापी शिक्षक प्रशिक्षण योजना निष्ठा में इस बार हजारों शिक्षकों के प्रशिक्षण का कार्यक्रम चला रखा है... प्रशिक्षक आते हैं,क्या बोलते हैं ...इसकी क्या मॉनिटरिंग होती है?
सरकारी आदेश से शिक्षक प्रशिक्षण ले रहे हैं ....प्रशिक्षक हमारे मान बिंदुओं पर सवाल उठाते हैं ...क्या उन प्रशिक्षकों पर सवाल उठाने का हक शिक्षक को है?
सेल्फ डिफेंस के कोर्स में हमारे सनातनी विचारों पर अनर्गल प्रलाप करते हुए प्रहार किया जाता है ....क्योंकि सरकारी आदेश से कार्यक्रम है इसलिए शिक्षक बोलता नहीं है और जो बोलता है वह सरकार के आदेश की अवहेलना करेगा,ऐसा मानते हुए सरकार की भृकुटी तन जाती है क्योंकि प्रशिक्षक सरकार की विचारों की अनुकूलता के आधार पर बोलता है फिर उसे डर नहीं ....डर उसे हैं जो उसका विरोध करता है .....एक बार मन में विचार करिए कि क्या आज हम किसी राष्ट्रीय उत्सव के किसी कार्यक्रम में भागीदार हुए ?
किसी झंडारोहण में शामिल हुए ?
किसी ध्वज वंदना कार्यक्रम में शामिल हुए?
हम जब खुद ही ऐसे कार्यक्रमों को अवकाश का अवसर मान लेंगे तो फिर हमारी संतति कैसे राष्ट्रीयता के भाव से जुड़ पाएगी...
देश में राजनीतिक दलों ने अपनी सत्ता की कुर्सी को स्थाई बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने जिस तरह देश के मन का विभाजन किया था उस विभाजन की खाई को और चौड़ा करने का काम किया ताकि वे अंग्रेजों से अधिक समय तक शासन कर सके... इसके लिए ऐसे तमाम उदाहरण गढ़े गए... देश की बहुसंख्यक समाज को खंड खंड किया गया ....जिसने सत्तारूढ़ लोगों की मंशा पर सवाल उठाया उन्हें सांप्रदायिक कहकर कटघरे में खड़ा किया गया....उन्हें देश विभाजन का जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की गई जबकि हुआ उल्टा कि जो लोग सत्ता में थे उन्होंने देश विभाजन किया....
बिना किसी निर्वाचन के 1947 से 50 तक निर्णय करते रहे जबकि निर्णय को संविधान के साथ जोड़ा जाना चाहिए था क्योंकि जब निर्वाचन ही नहीं हुआ तो उनके फैसलों को क्यों देश के जनमानस का निर्णय माना जाए.... उन्हें यह अनुमति किसने दी कि देश का विभाजन कर दिया जाए? ना देश के जनमानस ने उनमें से किसी को राष्ट्रीय नेता चुना...ना देश के जनमानस ने उन्हें यह छूट दी कि वह देश के विभाजन के बाद विभाजनकारी तत्वों को यहां रहने की अनुमति दें ....
हम सवाल नहीं करते? हम अपने आप से भी नहीं पूछते?
हम जिम्मेदारियों से दूर भागते हैं क्योंकि हमने 1947 में जब देश आजाद हुआ और प्रथम प्रधानमंत्री ने कहा कि अब सबकुछ सरकार करेगी तो हम सरकार केंद्रित हो गए सब कुछ करने का काम सरकार का है,समाज का नहीं है ।इसलिए समाज मौन ही नहीं मूकदर्शक भी होता गया और गणतंत्र की हालत देखिए इस गणतंत्र में गण लोप होता जा रहा है तंत्र निरंकुश होता जा रहा है तंत्र के लोग वातानुकूलित कक्ष में बैठकर गण की चिंता करते हैं और योजना बनाते हैं और गण खून पसीना बहाने को मजबूर है और तंत्र की कुछ तांत्रिक किस्म के नेताओं से सांठ गांठ है कि वे उनके अनुकूलता में ही सब कुछ करते हैं ...
कुछ सरकारें सही कदम उठाती हैं तो कुछ तांत्रिक किस्म के नेता तंत्र का सहारा लेकर एक ऐसा आडंबर रचते हैं कि वह गण जो मौन रहता है वह अनजाने ही मुखर होने लगता है, अभी हाल ही में भारत सरकार ने महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू के दिए हुए आश्वासन की परिणिति के रूप में एक कानून लेकर आई...इस कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में बसे वहां के अल्पसंख्यकों का धार्मिक आधार पर उत्पीड़न हो तो 2014 से पहले भारत आये नागरिकों को कानूनन नागरिकता दिए जाने का प्रावधान किया गया तो उसे इस प्रकार प्रसारित किया गया कि मानो जो नागरिक हैं उनकी नागरिकता छीनी जा रही है .....
जब मैं गण का लोप लिखता हूं तब मेरे मन में कई सवाल उठते हैं क्या शाहीन बाग में बैठे लोग गण नहीं है? क्या जामिया मिलिया इस्लामिया में संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले लोग गण नहीं है ? क्या जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह इंशाल्लाह कहने वाले लोग गण नहीं है?
हां ऐसे लोग इस गणतंत्र का आनंद लेने वाले लोग हैं जो पिछले 70 सालों से आनंद ही ले रहे हैं क्योंकि उनके लिए विशेष सुविधाएं की गई सत्ता ने सत्ता बनाए रखने के लिए।
2014 के बाद जब यहां का समाज जागृत होने लगा तो कुछ लोगों के पेट में कीड़े कुलबुलाने लगे तो वह पाखंड पर उतर आए ।
2019 में उनके पाखंड को जब दरकिनार कर दिया गया तो पाखंडियों ने रंग बदला, लाल झंडे, हरे झंडे में बदलने लगे हाथ हंसिये और हथौड़े से जा मिला,झाड़ू ने झंडा पकड़ लिया और देश की मुखालफत होने लगी.... किस बात का विरोध कर रहे हैं उन्हें पता नहीं पर उन्हें पता है कि विरोध यहां के विचार का करना है इसलिए हिंदू प्रतीक चिन्हों का अपमान करते हैं.... जिन्ना वाली आजादी मांगते हैं.... खिलाफत-2 की हुंकार भरते हैं और सरकार मूकदर्शक बनती है क्योंकि यदि वह कुछ करती है तो राजनीतिक प्रोपेगंडा क्या होगा....देश को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कैसे प्रस्तुत किया जाएगा... सही तरीके से समझती है....जनता दुःखी है,पीड़ित है कदमों के फासले पर पूरा होने वाला सफर कई किलोमीटर में पूरा हो रहा है.....पर नोटबंदी की कतार दिखाने वाला मीडिया,विपक्ष अब लंबी लाइनों पर मौन है....
क्या हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती कि हम उन लोगों से पूछे तुम्हारी ऐसी कौन सी मांग है?
तुम्हारे कौन से अधिकार छीन ले जा रहे हैं ?
महीनों महीनों तक धरने पर बैठे हो ...सड़क पर बैठने का कोई तरीका नहीं होता.... कोई पटरियों पर बैठ जाता है, कोई सड़क के बीच में बैठ जाता है..... अपने आप से सवाल करिये क्या हम नागरिक हैं ?
जब हम राष्ट्रीय विचार से भी विमुख होते जा रहे हैं ....जब जब राष्ट्रीयता का लोप होता है तब तब देश विखंडन की ओर बढ़ता है ।
आज कुछ राजनीतिक दल कहते हैं कि देश का विभाजन हो सकता है,यह वही लोग हैं जो विभाजन के जिम्मेदार है.... 1947 में जब देश का विभाजन हुआ तब जनता ने नहीं कहा था पर जनता मौन थी इसलिए सत्ता के लालची लोगों ने बंटवारा कर दिया ।
एक और विभाजन के लिए सत्ता के अंधे लोगों ने उन लोगों से बिना पूछे जिन लोगों ने देश विभाजन का दर्द झेला था यह घोषणा कर दी कि वे लोग भी यहां रह सकते हैं जिन्होंने विभाजन मांगा था...यहां का गण सहर्ष स्वीकार कर गया क्योंकि उसने वसुधैव कुटुंबकम का भाव सीखा था, वसुधैव कुटुंबकम विचार देने वाली संस्कृति में ही जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरियसी कहा गया है अर्थात जन्मभूमि और माँ स्वर्ग से भी बढ़कर है पर हमने अपने आप को एक्सीडेंटली हिंदू मानने वाले पर भरोसा कर लिया और न केवल एक देश का विभाजन करवाया बल्कि विभाजन कारी तत्वों को अपने देश में रहने का हक दे दिया ।
हमें उठना होगा....एक विचार के साथ कि मेरा देश मेरी पहचान है, मेरा सम्मान है,मेरा स्वाभिमान है ....गण उठेगा तो यह गणतंत्र बचेगा नहीं तो तांत्रिकों ने यह सब तय कर लिया है तंत्र के सहारे इस देश की जड़ों में मट्ठा डालने का काम शुरू कर चुके हैं देश में एक बार फिर 1947 जैसे हालात बनाने की कोशिश हो रही है ....युद्ध पड़ोसी देश के इशारे पर सीमा पर नहीं अंदरूनी इलाकों में लड़ा जाने की कोशिश हो रही है...हर चौराहे पर देश विभाजन की कोशिश हो रही है और हम मौन हैं, हम उसी तरह है जिस तरह कश्मीर में कश्मीरी पंडित थे 30 साल पहले....भरोसे पर,पड़ोसी से प्यार से रहना चाहिए,कश्मीरियत हमारी सांझी है,आज हमें हिंदुस्तानियत,इंसानियत की कहानी कही जाएगी,यदि उनकी कहानी सही होती तो कश्मीर से पंडितों को मारे जाने के दिन को शाहीन बाग में उत्सव नहीं मनाया जाता.... जब हिंदुस्तान को गाली दी जाती है तो आपका साथी मौन रहता है तो समझ जाइए उसके मन में कुछ काला है, वह यदि हिंदुस्तान को दी जा रही गाली में दाएं बाएं करके गली निकालकर बचने कोशिश करता है, उसको सही ठहराने की कोशिश करता है तो समझ जाइए वह भी गाली देने वाले लोगों के साथ है। वह किस राजनीतिक पार्टी ,विचार को मानता है से कोई फर्क नहीं पड़ता....
बस इतना जान लीजिए हिंदुस्तान है तो आप हैं और हिंदुस्तान नहीं तो आप भी नहीं....
हमारे ऋषियों ने हमें कहा है कि हम अमृत पुत्र हैं इसका अर्थ यह नहीं कि हम अमृत लेकर पैदा हुए हैं हम नीलकंठ को मानने वाले हैं गरल पीते हैं,सर्वनाश भी कर सकते हैं...जगती की, सृष्टि की रक्षा का भार हमारे ऊपर आता है तो हम नीलकंठ बनकर गरल पी जाते हैं पर कोई संकट हो तो प्रलयंकारी शिव शंकर भी बन जाते हैं ।
आइए, वक्त आ गया है कृष्ण की बांसुरी के स्थान पर श्री कृष्ण के सुदर्शन का आह्वान हो उसकी पूजा-अर्चना का विधान हो, नवरात्रा में डांडिया छोड़कर शस्त्र पूजन शुरू किया जाए... मां दुर्गा को मानने वाले घरों में मातृशक्ति को सशक्त बनाया जाए, समर्थ बनाया जाए .....हनुमंत लाल जी को मानने वाले घरों में हुंकार हो, जयकार हो भारत माता की ....बल,बुद्धि और विवेक का उजास हो एक बार फिर समर्थ गुरु रामदास जैसे व्यक्तित्व का इस धरा पर आह्वान हो ।
हम में से कोई जागे हर गांव गली मोहल्ले में वैसे ही व्यायामशाला हो....राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाएं चलती हैं उन शाखाओं में जाइये,डॉ हेडगेवारजी समर्थ गुरु रामदास की तरह ही आये थे जो 1925 में शाखाएं शुरू कर दी....1947 के विभाजन के समय लाखों हिंदुओं की प्राण रक्षक बनी थी,अब भी ऐसे ही संगठनों में प्राण वायु फुंकिये...अब मौन नहीं मुखर आवाज हो, हम सब एक हैं, एक भारत के लिए, श्रेष्ठ भारत के लिए, भारत माता की जय के भाव के साथ उठ खड़े हो ...आज गणतंत्र दिवस है, केवल सरकारी उत्सव नहीं बने.... हमारे मन का उत्सव बने, हमारे मन का आनंद बने,मन में विचारों के मंथन का दिन बने... इन्हीं शुभकामनाओं के साथ कि हम सब समर्थ और सशक्त भारत का हीरक महोत्सव अर्थात 75वां उत्सव अखंड भारत के रूप में मना पाए।
।।शिव।।
9829495900
मुझे कल आश्चर्य हुआ जब मैं एक मेरे मित्र के घर गया, बच्चे बैठे थे तो मैंने उन्हें पूछा बेटा कल तो रिपब्लिक डे है ?
तो बच्चे ने कहा अंकल! हमारे यहां तो आज मना लिया गया, कल की तो छुट्टी है वह बच्चा एक प्रतिष्ठित निजी विद्यालय में पढ़ता था। राष्ट्रीय उत्सव 1 दिन पहले ही मना लिया गया ऐसा ही 15 अगस्त के दिन होता है उसे 14 अगस्त को बनाकर 15 अगस्त की छुट्टी कर दी जाती है.... बच्चे में देशभक्ति के संस्कार आएंगे कहां से? उसमें कर्तव्य बोध होगा कब?
औपचारिकता निभानी है तो 1 दिन पहले 1 दिन बाद में निभाते क्या फर्क पड़ता है ....पर क्या राष्ट्रीय उत्सव भी एक औपचारिकता है ?एक कार्यक्रम है ?
यही कारण है कि देश के खिलाफ कोई बोलता है तो आज की पीढ़ी में गुस्सा नहीं आता.... हम अभिभावक भी बच्चे के कैरियर को लेकर इतने व्यग्र है,उतावले है उसे आज ही डॉ, कलक्टर बना देना चाहते है.... उसे देश, समाज से जुड़ने का प्रयत्न भी नहीं करते... राष्ट्रीय कार्यक्रमों को तो छोड़िए हम हमारे बच्चों को पारिवारिक कार्यक्रमों में भी ले जाना इसलिए पसंद नहीं करते क्योंकि उन्हें ट्यूशन जाना होता है, उन्हें होमवर्क करना होता है, हम बच्चों को व्यक्तिगत उपलब्धियों की ओर उन्मुख कर रहे हैं और कसूरवार ठहराते हैं इस बात के लिए कि आज के बच्चे हमारा ध्यान नहीं रखते या नहीं रखेंगे.... जब उन्हें समाज से जोड़ा ही नहीं जा रहा तो वे समाज की अवधारणा को स्वीकार कैसे करेंगे ?
एक विद्यालय के स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में जाना हुआ बहुत पहले, तो मंच पर सरकाय लो खटिया.... गाने के साथ प्रस्तुति होने लगी मैंने जब विद्यालय के संचालक को कहा- यह क्या है? तो बोले बच्चों को आजकल यही पसंद है, जो अभिभावक आए हैं वे भी खुश होते हैं..... हम क्या शिक्षा दे रहे हैं? हम बच्चों को क्या बनाना चाहते हैं ?हम देश की सरकार को कोस सकते हैं.... पर क्या हम जिम्मेदार खुद नहीं हैं ?
हमने क्या कभी सवाल किया है कि हमारे बच्चों का करिकुलम क्या है? उन्हें क्या पढ़ाया जाता है ?
हम सवाल इसलिए भी नहीं कर सकते क्योंकि हमने वही पढ़ा है.... हम हमारे मान बिंदुओं से इतना कट गए कि कोई भी आकर हमारे मान बिंदुओं पर चोट कर दे हमें पता ही नहीं चलता... वह हमें आहत कर रहा है हम आहत केवल तब होते हैं जब हमारे व्यक्तिगत लाभ कम होते हैं, हमारे हित टकराते है.... सरकारों की ओर से दिए जाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों में क्या होता है इस पर भी हमने कभी गौर नहीं किया .... राजस्थान सरकार का शिक्षा विभाग भारत सरकार की राष्ट्रव्यापी शिक्षक प्रशिक्षण योजना निष्ठा में इस बार हजारों शिक्षकों के प्रशिक्षण का कार्यक्रम चला रखा है... प्रशिक्षक आते हैं,क्या बोलते हैं ...इसकी क्या मॉनिटरिंग होती है?
सरकारी आदेश से शिक्षक प्रशिक्षण ले रहे हैं ....प्रशिक्षक हमारे मान बिंदुओं पर सवाल उठाते हैं ...क्या उन प्रशिक्षकों पर सवाल उठाने का हक शिक्षक को है?
सेल्फ डिफेंस के कोर्स में हमारे सनातनी विचारों पर अनर्गल प्रलाप करते हुए प्रहार किया जाता है ....क्योंकि सरकारी आदेश से कार्यक्रम है इसलिए शिक्षक बोलता नहीं है और जो बोलता है वह सरकार के आदेश की अवहेलना करेगा,ऐसा मानते हुए सरकार की भृकुटी तन जाती है क्योंकि प्रशिक्षक सरकार की विचारों की अनुकूलता के आधार पर बोलता है फिर उसे डर नहीं ....डर उसे हैं जो उसका विरोध करता है .....एक बार मन में विचार करिए कि क्या आज हम किसी राष्ट्रीय उत्सव के किसी कार्यक्रम में भागीदार हुए ?
किसी झंडारोहण में शामिल हुए ?
किसी ध्वज वंदना कार्यक्रम में शामिल हुए?
हम जब खुद ही ऐसे कार्यक्रमों को अवकाश का अवसर मान लेंगे तो फिर हमारी संतति कैसे राष्ट्रीयता के भाव से जुड़ पाएगी...
देश में राजनीतिक दलों ने अपनी सत्ता की कुर्सी को स्थाई बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने जिस तरह देश के मन का विभाजन किया था उस विभाजन की खाई को और चौड़ा करने का काम किया ताकि वे अंग्रेजों से अधिक समय तक शासन कर सके... इसके लिए ऐसे तमाम उदाहरण गढ़े गए... देश की बहुसंख्यक समाज को खंड खंड किया गया ....जिसने सत्तारूढ़ लोगों की मंशा पर सवाल उठाया उन्हें सांप्रदायिक कहकर कटघरे में खड़ा किया गया....उन्हें देश विभाजन का जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की गई जबकि हुआ उल्टा कि जो लोग सत्ता में थे उन्होंने देश विभाजन किया....
बिना किसी निर्वाचन के 1947 से 50 तक निर्णय करते रहे जबकि निर्णय को संविधान के साथ जोड़ा जाना चाहिए था क्योंकि जब निर्वाचन ही नहीं हुआ तो उनके फैसलों को क्यों देश के जनमानस का निर्णय माना जाए.... उन्हें यह अनुमति किसने दी कि देश का विभाजन कर दिया जाए? ना देश के जनमानस ने उनमें से किसी को राष्ट्रीय नेता चुना...ना देश के जनमानस ने उन्हें यह छूट दी कि वह देश के विभाजन के बाद विभाजनकारी तत्वों को यहां रहने की अनुमति दें ....
हम सवाल नहीं करते? हम अपने आप से भी नहीं पूछते?
हम जिम्मेदारियों से दूर भागते हैं क्योंकि हमने 1947 में जब देश आजाद हुआ और प्रथम प्रधानमंत्री ने कहा कि अब सबकुछ सरकार करेगी तो हम सरकार केंद्रित हो गए सब कुछ करने का काम सरकार का है,समाज का नहीं है ।इसलिए समाज मौन ही नहीं मूकदर्शक भी होता गया और गणतंत्र की हालत देखिए इस गणतंत्र में गण लोप होता जा रहा है तंत्र निरंकुश होता जा रहा है तंत्र के लोग वातानुकूलित कक्ष में बैठकर गण की चिंता करते हैं और योजना बनाते हैं और गण खून पसीना बहाने को मजबूर है और तंत्र की कुछ तांत्रिक किस्म के नेताओं से सांठ गांठ है कि वे उनके अनुकूलता में ही सब कुछ करते हैं ...
कुछ सरकारें सही कदम उठाती हैं तो कुछ तांत्रिक किस्म के नेता तंत्र का सहारा लेकर एक ऐसा आडंबर रचते हैं कि वह गण जो मौन रहता है वह अनजाने ही मुखर होने लगता है, अभी हाल ही में भारत सरकार ने महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू के दिए हुए आश्वासन की परिणिति के रूप में एक कानून लेकर आई...इस कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में बसे वहां के अल्पसंख्यकों का धार्मिक आधार पर उत्पीड़न हो तो 2014 से पहले भारत आये नागरिकों को कानूनन नागरिकता दिए जाने का प्रावधान किया गया तो उसे इस प्रकार प्रसारित किया गया कि मानो जो नागरिक हैं उनकी नागरिकता छीनी जा रही है .....
जब मैं गण का लोप लिखता हूं तब मेरे मन में कई सवाल उठते हैं क्या शाहीन बाग में बैठे लोग गण नहीं है? क्या जामिया मिलिया इस्लामिया में संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले लोग गण नहीं है ? क्या जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह इंशाल्लाह कहने वाले लोग गण नहीं है?
हां ऐसे लोग इस गणतंत्र का आनंद लेने वाले लोग हैं जो पिछले 70 सालों से आनंद ही ले रहे हैं क्योंकि उनके लिए विशेष सुविधाएं की गई सत्ता ने सत्ता बनाए रखने के लिए।
2014 के बाद जब यहां का समाज जागृत होने लगा तो कुछ लोगों के पेट में कीड़े कुलबुलाने लगे तो वह पाखंड पर उतर आए ।
2019 में उनके पाखंड को जब दरकिनार कर दिया गया तो पाखंडियों ने रंग बदला, लाल झंडे, हरे झंडे में बदलने लगे हाथ हंसिये और हथौड़े से जा मिला,झाड़ू ने झंडा पकड़ लिया और देश की मुखालफत होने लगी.... किस बात का विरोध कर रहे हैं उन्हें पता नहीं पर उन्हें पता है कि विरोध यहां के विचार का करना है इसलिए हिंदू प्रतीक चिन्हों का अपमान करते हैं.... जिन्ना वाली आजादी मांगते हैं.... खिलाफत-2 की हुंकार भरते हैं और सरकार मूकदर्शक बनती है क्योंकि यदि वह कुछ करती है तो राजनीतिक प्रोपेगंडा क्या होगा....देश को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कैसे प्रस्तुत किया जाएगा... सही तरीके से समझती है....जनता दुःखी है,पीड़ित है कदमों के फासले पर पूरा होने वाला सफर कई किलोमीटर में पूरा हो रहा है.....पर नोटबंदी की कतार दिखाने वाला मीडिया,विपक्ष अब लंबी लाइनों पर मौन है....
क्या हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती कि हम उन लोगों से पूछे तुम्हारी ऐसी कौन सी मांग है?
तुम्हारे कौन से अधिकार छीन ले जा रहे हैं ?
महीनों महीनों तक धरने पर बैठे हो ...सड़क पर बैठने का कोई तरीका नहीं होता.... कोई पटरियों पर बैठ जाता है, कोई सड़क के बीच में बैठ जाता है..... अपने आप से सवाल करिये क्या हम नागरिक हैं ?
जब हम राष्ट्रीय विचार से भी विमुख होते जा रहे हैं ....जब जब राष्ट्रीयता का लोप होता है तब तब देश विखंडन की ओर बढ़ता है ।
आज कुछ राजनीतिक दल कहते हैं कि देश का विभाजन हो सकता है,यह वही लोग हैं जो विभाजन के जिम्मेदार है.... 1947 में जब देश का विभाजन हुआ तब जनता ने नहीं कहा था पर जनता मौन थी इसलिए सत्ता के लालची लोगों ने बंटवारा कर दिया ।
एक और विभाजन के लिए सत्ता के अंधे लोगों ने उन लोगों से बिना पूछे जिन लोगों ने देश विभाजन का दर्द झेला था यह घोषणा कर दी कि वे लोग भी यहां रह सकते हैं जिन्होंने विभाजन मांगा था...यहां का गण सहर्ष स्वीकार कर गया क्योंकि उसने वसुधैव कुटुंबकम का भाव सीखा था, वसुधैव कुटुंबकम विचार देने वाली संस्कृति में ही जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरियसी कहा गया है अर्थात जन्मभूमि और माँ स्वर्ग से भी बढ़कर है पर हमने अपने आप को एक्सीडेंटली हिंदू मानने वाले पर भरोसा कर लिया और न केवल एक देश का विभाजन करवाया बल्कि विभाजन कारी तत्वों को अपने देश में रहने का हक दे दिया ।
हमें उठना होगा....एक विचार के साथ कि मेरा देश मेरी पहचान है, मेरा सम्मान है,मेरा स्वाभिमान है ....गण उठेगा तो यह गणतंत्र बचेगा नहीं तो तांत्रिकों ने यह सब तय कर लिया है तंत्र के सहारे इस देश की जड़ों में मट्ठा डालने का काम शुरू कर चुके हैं देश में एक बार फिर 1947 जैसे हालात बनाने की कोशिश हो रही है ....युद्ध पड़ोसी देश के इशारे पर सीमा पर नहीं अंदरूनी इलाकों में लड़ा जाने की कोशिश हो रही है...हर चौराहे पर देश विभाजन की कोशिश हो रही है और हम मौन हैं, हम उसी तरह है जिस तरह कश्मीर में कश्मीरी पंडित थे 30 साल पहले....भरोसे पर,पड़ोसी से प्यार से रहना चाहिए,कश्मीरियत हमारी सांझी है,आज हमें हिंदुस्तानियत,इंसानियत की कहानी कही जाएगी,यदि उनकी कहानी सही होती तो कश्मीर से पंडितों को मारे जाने के दिन को शाहीन बाग में उत्सव नहीं मनाया जाता.... जब हिंदुस्तान को गाली दी जाती है तो आपका साथी मौन रहता है तो समझ जाइए उसके मन में कुछ काला है, वह यदि हिंदुस्तान को दी जा रही गाली में दाएं बाएं करके गली निकालकर बचने कोशिश करता है, उसको सही ठहराने की कोशिश करता है तो समझ जाइए वह भी गाली देने वाले लोगों के साथ है। वह किस राजनीतिक पार्टी ,विचार को मानता है से कोई फर्क नहीं पड़ता....
बस इतना जान लीजिए हिंदुस्तान है तो आप हैं और हिंदुस्तान नहीं तो आप भी नहीं....
हमारे ऋषियों ने हमें कहा है कि हम अमृत पुत्र हैं इसका अर्थ यह नहीं कि हम अमृत लेकर पैदा हुए हैं हम नीलकंठ को मानने वाले हैं गरल पीते हैं,सर्वनाश भी कर सकते हैं...जगती की, सृष्टि की रक्षा का भार हमारे ऊपर आता है तो हम नीलकंठ बनकर गरल पी जाते हैं पर कोई संकट हो तो प्रलयंकारी शिव शंकर भी बन जाते हैं ।
आइए, वक्त आ गया है कृष्ण की बांसुरी के स्थान पर श्री कृष्ण के सुदर्शन का आह्वान हो उसकी पूजा-अर्चना का विधान हो, नवरात्रा में डांडिया छोड़कर शस्त्र पूजन शुरू किया जाए... मां दुर्गा को मानने वाले घरों में मातृशक्ति को सशक्त बनाया जाए, समर्थ बनाया जाए .....हनुमंत लाल जी को मानने वाले घरों में हुंकार हो, जयकार हो भारत माता की ....बल,बुद्धि और विवेक का उजास हो एक बार फिर समर्थ गुरु रामदास जैसे व्यक्तित्व का इस धरा पर आह्वान हो ।
हम में से कोई जागे हर गांव गली मोहल्ले में वैसे ही व्यायामशाला हो....राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाएं चलती हैं उन शाखाओं में जाइये,डॉ हेडगेवारजी समर्थ गुरु रामदास की तरह ही आये थे जो 1925 में शाखाएं शुरू कर दी....1947 के विभाजन के समय लाखों हिंदुओं की प्राण रक्षक बनी थी,अब भी ऐसे ही संगठनों में प्राण वायु फुंकिये...अब मौन नहीं मुखर आवाज हो, हम सब एक हैं, एक भारत के लिए, श्रेष्ठ भारत के लिए, भारत माता की जय के भाव के साथ उठ खड़े हो ...आज गणतंत्र दिवस है, केवल सरकारी उत्सव नहीं बने.... हमारे मन का उत्सव बने, हमारे मन का आनंद बने,मन में विचारों के मंथन का दिन बने... इन्हीं शुभकामनाओं के साथ कि हम सब समर्थ और सशक्त भारत का हीरक महोत्सव अर्थात 75वां उत्सव अखंड भारत के रूप में मना पाए।
।।शिव।।
9829495900
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