शिक्षक को शिक्षक ही समझिए साहब.....

पूरी दुनिया एक महामारी का मुकाबला कर रही है भारत भी इस महामारी से इन दिनों दो-दो हाथ कर रहा है।
 प्रकृति प्रदत नहीं बल्कि मानव प्रदत इस विभीषिका से संपूर्ण मानवता का नाश होने की आशंका है यदि ऐसा नहीं होता तो जो सरकारें बड़ी से बड़ी समस्या पर हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाती हैं,वे मुस्तेद हुई है तो तय मानिए खतरा बहुत बड़ा है।  जिस तेजी के साथ काम कर रही है जिस तेजी के साथ निर्णय प्रक्रिया की पालना कर रही है आश्चर्यचकित करने वाला है या यूं कहें कि खतरा बडा है ।
देश के प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से बयान देने के लिए आते हैं,आग्रह करते हैं कि 1 दिन के लिए जनता कर्फ्यू लगाए ताकि सामाजिक संपर्क से कोरोना वायरस की तीसरे चरण की शुरुआत रोकी जा सके।
 देश उनके साथ खड़ा होता है और 22 मार्च को पूरा देश सुबह से लगाकर शाम तक स्व प्रेरित अनुशासित और संयमित जनता कर्फ्यू का पालन करता है ।
ठीक 5:00 बजे प्रधानमंत्री के आह्वान पर अपने घरों की बालकनी और छत पर खड़ा होकर ताली शंख घंटी आदि बजाकर इस महामारी के वक्त सीना तान कर खड़े हुए चिकित्सा कर्मियों, चिकित्सकों,आपातकालीन सेवा के स्टाफ, स्वच्छता कर्मियों, सैन्य कर्मियों का ऋणी भाव से अभिवादन करता है।
 समझने की आवश्यकता है कि यह खतरा सरहद पर खड़ा होकर हमें नहीं ललकार रहा हमारे घर के दरवाजे पर आकर हमें ललकार रहा है हमारी छोटी सी चूक पूरी मानवता के लिए परेशानी का कारण बन सकती है ।
इस बात का एक छोटा सा अंदाजा आप लगा सकते हैं भीलवाड़ा के एक चिकित्सक की गलती के कारण राजस्थान में आज भीलवाड़ा कोरोना वायरस की सर्वाधिक चपेट में आया हुआ है ।
 सरकार निर्णय लेती हैं पर उसकी निर्णय प्रक्रिया में आज भी वही लटकाऊ पन है राजस्थान सरकार ने सभी विद्यालयों को एक आदेश के माध्यम से बंद कर दिया 31 मार्च तक के लिए, परंतु प्रदेश के साढे चार लाख शिक्षकों की उपस्थिति अनिवार्य जारी रखी।
 एक अंदाजा लगाइए कि 4:50 लाख लोग प्रतिदिन अपने घरों से सार्वजनिक परिवहन के माध्यम से विद्यालय तक जाते हैं एक विद्यालय में कार्यरत कार्मिक एक क्षेत्र के नहीं होते बल्कि विभिन्न क्षेत्रों के होते हैं किसी भी एक शिक्षक का संपर्क किसी कोरोना संक्रमित से हो जाता है तो अंदाजा लगाइए स्थिति कितनी भयावह होती है क्योंकि एक विद्यालय में आने वाला स्टाफ अनेक स्थानों से आता है और वह संक्रमण कई स्थानों पर फैल सकता है।
 सीमित संसाधनों में काम करने वाला शिक्षक उच्च पदों पर बैठे लोगों की इस मानसिकता का शिकार हो जाता है कि शिक्षक काम करना नहीं चाहता इसलिए छुट्टी नहीं मिलनी चाहिए चाहे बच्चे नहीं आए,स्कूल खुलने  चाहिए और शिक्षक की उसमें उपस्थिति होनी चाहिए ।
अटपटी स्थिति है कि राजस्थान शिक्षा विभाग का ही एक अंग समग्र माध्यमिक शिक्षा अभियान समसा एक आदेश जारी करके अपने मुख्यालय में 50 फीसदी उपस्थिति कर देता है जिसमें से 50 फीसदी लोग अपने घर पर रहेंगे 50 फीसदी लोग ऑफिस में आएंगे और अगले दिन वह जो 50 फ़ीसदी लोग ऑफिस में आ रहे हैं वह घर पर रहेंगे और जो घर पर रहे वह अगले दिन ऑफिस में आएंगे पर यह आदेश स्कूलों में लागू नहीं होता।
 भीलवाड़ा में कोरोना का विस्फोट होने के बाद राज्य सरकार की नींद खुलती है और वह 31 मार्च तक सभी विद्यालय को बंद करने का आदेश दे देती है, 31 मार्च तक पूर्ण रूप से राजस्थान को लॉक डाउन करने का आदेश दे देती है तब जाकर एक राहत भरी सांस मिलती है उस शिक्षक को जो प्राण प्राण से आने वाली पीढ़ी को तैयार करता है।
 पर कहते हैं ना कई लोग होते हैं जिसको किसी की आंख का काजल भी अच्छा नहीं लगता यही बात शिक्षकों पर लागू होती है प्रदेश के अनेक स्थानों के उपखंड अधिकारी आदेश जारी करते हैं कि शिक्षकों को घर-घर जाकर और कोरोना वायरस का सर्वे करना है कोई संक्रमित तो नहीं है ।आश्चर्यजनक है कि राजस्थान सरकार एक आदेश जारी करके विद्यालयों को बंद करती है जिसमें शिक्षकों को भी घर में  रहने का आदेश जारी होता है ।प्रदेश के शिक्षा मंत्री ट्वीट करके जानकारी देते हैं इस संबंध में परंतु उपखंड अधिकारी अपनी ही धुन में आदेश जारी करके शिक्षकों को घर-घर सर्वे का आदेश थमा देते हैं
अजमेर जिले के नसीराबाद भीलवाड़ा के आसींद के उपखंड अधिकारियों के आदेश राज्य सरकार के आदेश को ठेंगा दिखाते है ।बड़ी विडंबना है उस शिक्षक की तो कहने के लिए तो राष्ट्र निर्माता है पर उसे विद्यालय में पढ़ाने के अलावा भी सारे काम संभालने पढ़ते हैं कभी उसे जनगणना करनी होती है तो कभी उसे पशुगणना के काम में लगाया जाता है कभी उसे मतदाता सूचियों के प्रकाशन का काम सौंप दिया जाता है तो कभी बाल विवाह नहीं हो इसके लिए भी मुस्तैद कर दिया जाता है ।
क्या यह संभव है कि एक शिक्षक घर घर जाकर कोरोना के बारे में जानकारी जुटाये और लोग उसे सच्ची जानकारी दे देंगे जिस तरह भय का माहौल है उसमें लोग जानकारी देने से बच रहे हैं और तो और प्रदेश के एक चिकित्सक ने भी यह जानकारी छुपाई और जिसका खामियाजा भीलवाड़ा की जनता भुगत रही ।
आज पूरा भीलवाड़ा स्तब्ध है सीमाएं सील कर दी गई हैं ।परिवहन विभाग ने पहले एक सर्कुलर जारी कर के आदेश दिया कि भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़,प्रतापगढ़,सीकर, झुंझुनू में रोडवेज बसों को नहीं रोका जाए वहां की सवारी नहीं ली जाए।
शिक्षकों के प्रति नकारात्मक विचार कब खत्म होंगे कि वह काम करना नहीं चाहते आश्चर्य तो तब होता है जब एक शिक्षक से किसी भी मायने में, कैडर में,उसकी प्रतिष्ठा में, उसके पदनाम में नीचे होने वाला व्यक्ति भी उस शिक्षक को निर्देशित करने लग जाता है विभिन्न अभियानों के नाम पर।
ग्रामसेवक एक विद्यालय के प्रधानाचार्य को निर्देशित करने पहुंच जाता है ...क्या कभी यह हुआ है कि शिक्षकों को अभियान चलाकर यह कहा जाए कि वे पटवारी ग्राम सेवक के बारे में सर्वे करें कि वह काम सही से कर रहे हैं या नहीं कर रहा है पर ऐसा नहीं किया जाता क्योंकि ऐसा किए जाने पर एक मशीनरी नाराज हो जाएगी तो क्या शिक्षकों की नाराजगी का कोई फर्क नहीं पड़ता ?
आज के इस दौर में मैं  नहीं लिखना चाहता पर मजबूर हूं क्योंकि मुझे दिखता है यदि शिक्षक अपने घरों से बाहर निकला तो जो राज्य सरकार की,जो केंद्र सरकार की मंशा है कि सामाजिक संपर्क कम से कम हो वह मनसा दम तोड़ देगी ....जो उपाय सरकार कर रही है उन उपायों को ठेंगा दिख जाएगा, क्योंकि शिक्षक का सामाजिक दायरा बड़ा होता है.... शिक्षक घर से बाहर निकलेगा तो स्वाभाविक रूप से उससे मिलने वाले लोगों की संख्या ज्यादा होती है ...अपने संपर्कों के आधार पर उनका सम्पर्कित वर्ग बड़ा होता है और जब वे घर-घर दस्तक देंगे न केवल उनके खुद के संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा बल्कि इसके बाद संक्रमण के मामले बढ़ने की संभावनाएं ज्यादा हो जाएगी जिसकी सोच कर भी मन में सिहरन दौड़ जाती है।
 प्रदेश के शिक्षा मंत्री स्वयं एक शिक्षक परिवार से आते हैं पिछली सरकार के 15 मिनट का समय बढ़ाने पर सबसे ज्यादा शिक्षक हितों की बात के नाम पर विपक्ष के विधायक के रूप में विधानसभा में मुखरित रहे हैं ,पर वही आज जब शिक्षा मंत्री बने हैं तो उन शिक्षकों को किन हालातों में काम करने के लिए बिना सरकारी विभागीय दिशानिर्देश के उपखंड अधिकारी निर्देशित कर रहे हैं और वह मौन है।
 क्या शिक्षा मंत्री को यह पता नहीं है कि विद्यालय में छुट्टी है बच्चे नहीं आ रहे तो वहां शिक्षक क्यों जा रहे हैं .?अब जब आदेश जारी हो गए कि विद्यालय पूर्ण रूप से बंद रहेंगे अर्थात शिक्षक अपने घर रह सकते हैं तब उपखंड अधिकारी आदेश जारी करते हैं कि उनको सर्वे के काम में जाना है, उनकी जानकारी में नहीं है यदि जानकारी में नहीं है तो यह स्थिति बहुत गंभीर है और जानकारी में होने के बावजूद वे सकारात्मक कदम नहीं उठा पा रहे हैं तो यह उससे भी ज्यादा गंभीर बात है।
 कहते हैं हर गलती बड़ी कीमत मांगती कहीं यह गलती हमारे समाज को महंगी ना पड़ जाए केंद्र और राज्य सरकार का जनता के सहयोग से बना सुरक्षा चक्र कहीं टूट ना जाए.... खतरा बहुत बड़ा है उसे हम दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ही लड़ सकते हैं ...भारतीय जनता पार्टी अपने स्तर पर अभियान चला रही है उसके प्रदेश कार्यालय में जाने पर आपको भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के होर्डिंग्स कटआउट गायब मिलेंगे कोरोना वायरस से बचाव के संदेश वाले होर्डिंग दिखाई देंगे ।
पार्टी के प्रदेश मुखिया डॉ सतीश पूनिया एक राजनीतिक दल के मुखिया के बजाय सामाजिक संगठन के कार्यकर्ता के भाव से उत्तरदायित्व का निर्वहन कर रहे हैं, पूरी भारतीय जनता पार्टी को निर्देशित किया गया है कि वह राज्य सरकार के, केंद्र सरकार के कदमों का समर्थन करें जहां भी संभव हो सहयोग करें ।
कोरोना वायरस से बचाव के लिए जनजागृति फैलाएं ऐसी ही उम्मीद राजस्थान के शिक्षा मंत्री से हैं कि वह विभाग के मुखिया के नाते अपने विभाग के कार्मिकों का हित सुरक्षित करें ।450000 परिवार सीधे-सीधे और लगभग 40 लाख परिवारों को प्रभावित करने वाले ऐसे किसी भी कदम से बचें जो संक्रमण को बढ़ावा देता हो।
।।शिव।।

Comments

Popular posts from this blog

अब भारत नहीं बनेगा घुसपैठियों की धर्मशाला

फिर बेनकाब हुआ छद्म धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा

भारत को इंडिया कहने की विवशता क्यों ?