सुनो!मुझे आपकी बहुत जरूरत है..

.एक पाती अपनों के नाम...
कोरोना के डर से घर के एक कोने में दुबका बैठा हूं मैं,और मुझे याद आ रही है आप सब की ।
संबोधन देना चाहता था, सबसे पहले पर...क्या संबोधन दूँ... मित्र कहूं, बंधु कहूं, बहन कहूं, .... इसलिए बिना संबोधन अपना यह पत्र लिखना शुरू किया है..... कभी आपकी गोद में खेला होऊंगा मैं.... कभी आंचल की ओट में छुपा होऊंगा मैं..... कभी अंगुली पकड़कर चला होऊंगा मैं.... कभी रास्ते जाते आपको आवाज लगाई होगी मैंने तुतलाकर.... कभी भटक गया होगा तो आपसे रास्ता पूछा होगा मैंने.... कभी पहला अक्षर,पहला अंक से आज खड़ा होने लायक बनाया होगा आपने....कभी आपने मुझे लिफ्ट दी होगी या मेरी वाहन के चालक बन मेरा सफर आसान किया होगा।
 कभी सहयात्री बनकर मुझसे बातें मीठी की होगी.... कभी क्लास की बेंच पर साथ बैठकर हंसी ठिठोली की होगी...... कभी पढ़े होंगे हम साथ बैठकर..... कभी खेले होंगे खेल के मैदान में.... कभी साइकिल की पंचर निकाली होगी... कभी भूल गया मैं पेन तो आपने दिया होगा..... कभी रास्ते में साइड देकर मेरा सफर आसान किया होगा..... कभी जिम्मेदारी से चला कर गाड़ी आपने मुझे गंतव्य तक पहुंचाया होगा.... कभी दर्द से तड़पते हुए मुझे बीमारी से निजात दिलाई होगी... कभी आपके खेत से आए अनाज को खाकर मैंने भूख मिटाई होगी.... कभी आपकी मेहनत से उगी सब्जी खाकर मन ने  तृप्ति पाई होगी।
पानी की पाइप लाइन को घर तक लाने तक जो आपने गड्ढे खोदे होंगे जिससे मेरी प्यास बुझी होगी... जब चाय की चुस्की ली होगी तो मुंह से वाह निकली होगी ....कहीं रास्ते में चलते हुए तुमने पीठ थपथपाई होगी.... कभी सुबह अखबार देकर मुझको सूचना से तुमने जोड़ा होगा..... कभी टीवी पर बन रिपोर्टर मुझे दुनिया से जोड़ा होगा....
 तुम कौन हो? क्या नाम दूं ? पहली आंख खुलने से लगाकर अब तक आप मेरे जीवन में हर वक्त रहे हैं उन सब को याद कर रहा हूं मैं..... हो सकता है कभी मैंने राह चलते अपनी मस्ती में आपकी राह रोकी होगी.... कभी हंसी ठिठोली में कोई भारी गलती कर दी होगी.... कभी नहीं मान कर आपकी बात दिल दुखाया होगा, कभी मेरे कारण आपकी आंखों में आंसू आया होगा... मेरी खुशी के खातिर कभी खुद को आपने सताया होगा.... क्या-क्या याद करूँ?
 इस रिश्ते को क्या नाम दूं ?मैंने चप्पल जो पहनी आप की मेहनत से बनी थी, मेरे कपड़े को बुना था, तुमने मेरी ड्रेस को सिला था तुमने, तुम्हारे कारण मुझे छत मिली, तुम्हारे हाथों ने खिड़की, दरवाजे और चौखट रची, कभी घड़ी पहन कर आता हूं मैं, पर वह तुमने बनाई होगी.... आज हर चीज याद है मुझे मेरी जन्म घुटी से लगाकर आज जो मेरे कमरे की लगी कुंडी तक... सब में आपका योगदान रहा है, कभी ना कभी ......मैं कृतज्ञ हूं आप सबका, ऋणी हूं आपकी कला का, आपके सद्भाव का, आपके योगदान का मेरे जीवन में ।
इसलिए चाहता हूं कि आप स्वस्थ रहें,.... मैं मिलना चाहता हूं फिर से वैसे ही जैसे पहले कभी मिला होगा.... पर इस बार आपकी आंखों का आंसू बनकर नहीं, आपकी खुशियां बढ़ाकर...साथ बैठकर चाय पीनी है मुझे, वह कहकहे, वह हंसी ठिठोली फिर से करनी है।
 मुझे बातें करनी है अतीत की, मुझे फिर जो सपने अधूरे है उन्हें पूरा करना है, हमें फिर एक बार हाथ पकड़कर चलना है सड़क के किनारे.... पार्क में घूमेंगे हम फिर से खुली हवा में..... जब रास्ते में हम मिलेंगे तो फिर मुस्कुराना है मुझे...... मंदिर की चौखट पर जब मैं शीश झुकाऊं तुम्हें पास रहना है मेरे..... मेरा सर झुके तो ईश्वर के दर पर यहां आपको अपने मां, पिता, बड़े भाई, बहन तुल्य समझकर .....जीवन के रंग जो सूख चुके हैं फिर से रंगोली भरने को जी करता है मेरा आपके संग.... फिर हंसी ठिठोली करने को मन करता है.... ऑफिस की कुर्सी पर जब साथ बैठेंगे फिर से हम, नए सपने बुनेंगे.... हां,मुझे चाहिए आपका साथ... फिर से वैसे ही.... जैसे पहले मिला करता था..... पर इसके लिए कुछ करना होगा।
 मेरे लिए करोगे ना?
 चलो,एक कहानी सुनाता हूँ....याद होगा महाभारत में पांडवों को वनवास हो गया था ....दुर्योधन षड्यंत्र रच रहा था.... विदुर को इसका  पता चल गया तो वे पांडवों से मिले और पूछा कि वन में सुरक्षित कौन रहता है जब आग लग जाती है ...? पांडवों का जवाब था कि आग लगने पर इधर-उधर भागने वाले जानवर, पक्षी जलकर मर जाते हैं पर जो बिल में घुसे रहते हैं वे चूहे, सांप सरीखे बच जाते हैं ।
आज भी यह मान लीजिए कि मैं विदुर बनकर आपसे कुछ पूछ रहा हूं.... चारों तरफ कोरोना की आग लगी है आप इधर-उधर भागने वाले पशु पक्षी बनना चाहेंगे ? या भूमिगत रहकर जिस तरह चूहे या कहूं कि पांडवों ने अपना जीवन बचाया था लाक्षागृह से..... वैसे ही जीवन बचाना चाहते हैं ?
मैं चाहता हूं इस दुर्योधन रूपी कोरोना का षड्यंत्र विफल हो, इस लाक्षागृह से हम बच कर बाहर निकले हैं ....इसलिए 14 दिन कम से कम अपने घरों में बंद रह जाइए..... मेरे लिए इतना तो कीजिए...... कुछ समझ में आया होगा...?
 हां हो सकता है मैंने सताया होगा, पर मैं माफी मांग लेता हूं ....बदले में एक चीज तो दे दो..... थोड़े दिन घर के अंदर अपने आप को बंद कर लो..... है गुस्सा तो फिर निकाल लेना, मैं कहीं नहीं जाऊंगा.... आपसे मिलने आऊंगा, चाय पी लूंगा, बातें करूंगा और गले लग कर फिर से नहीं शुरुआत करूंगा..... अब तो मुझे भरोसा है कि मेरी बात मानेंगे आप..... क्या अब भी मेरी बात टालेंगे आप...?
 मुझे उस दिन का इंतजार है जब हम सब साथ बैठ कर चाय पियेंगे, बातें करेंगे, खाना खाएंगे, मस्ती करेंगे और किसी की शादी की  शहनाई पर साथ मिलकर डांस करेंगे ।
कुछ दिन तो घर के दरवाजे बंद कर लो, कुछ दिन खिड़कियों से झांक लो।
 पक्षी बारिश के दिनों में कहां जाता है ?
अपने घर पेड़ की कोटर में रहकर पूरी बारिश के दिन बिता देता है ,यह समझ लो कि कुछ बारिश के दिन है कोटर में रहकर बिताने है, आप समझदार हैं आपने मुझे कई बार समझा है, कई बार समझाया है, आज मेरी बात समझ जाइए फिर कभी नहीं कहूंगा कि आप मेरी बात मानिये, आज मान जाइये....घर पर रहिए सुरक्षित रहिए... इस खुली हवा में सांस लेनी है तो कुछ दिन बंद घरों में रह लीजिए।
 उस छोटे से बच्चे के लिए जिसकी किलकारी आपको सबसे प्यारी है ...उन माता-पिताजी के लिए जिनकी एक आवाज आपको एहसास कराती है कि आप अभी छोटे है....उस दोस्त के लिए जो आपको सबसे ज्यादा प्यारा है और उस दुश्मन के लिए भी जिसे आप अपने हाथों से पीटना चाहते हैं ......पर पिटेंगे  तब ना जब आप स्वस्थ रहेंगे...?
 मुझे दोस्त नहीं मानकर यदि दुश्मन भी माना है तो मैं पिटने के लिए तैयार हूँ पर अभी  घर में रहिए।
 बस इतना सा करिए ,फिर कभी नहीं कहूंगा कि आप मेरी बात मानो.....
उम्मीद है,आप मेरे मन के भावों को समझेंगे और घर पर ही...खुश रहेंगे,घर पर ही रहेंगे....एक नई शुरुआत हमें करनी है,फिर से....हम ऐसे ही अमृतपुत्र नहीं कहलाते...रोम,यूनान मिट गए जहां से.....हर संकट में हमने वही किया जो देशहित में था,आज भी अपने मन को संयमित कीजिये,सरकार और नेतृत्व के कदमों पर भरोसा कीजिये,साथ दीजिये,डॉक्टर्स,नर्सेज,पैरा मेडिकल स्टॉफ, पुलिस,स्वच्छताकर्मी,सुरक्षाकर्मियों के प्रति मन से प्रार्थना कीजिये.....भारत ही लिख सकता है काल के कपाल पर,और भारत यह लिखे तब हम सब साक्षी हो,मैं चाहता हूं आप अपने दोनों हाथों की मुट्ठी बन्द कर उस वक्त सबसे पहले बोले,भारत माता की जय।
।।शिव।।

Comments

Sangeeta tak said…
निः शब्द 🙏🏻
Unknown said…
अभिनंदन... सरस्वती पुत्र..💐💐
Vipin Kumar said…
सामयिक परिप्रेक्ष्य में बेहतरीन पोस्ट
नि:शब्द
आप सभी का हृदय के अंत करण से आभार...अगले 21 दिन घर पर ही रहें,ताकि 21वीं सदी को आप भारत की सदी होते खुद अपनी आंखों से देख सके।
Vijaylaxmi Vijay said…
बेहतरीन पोस्ट 🙏🇮🇳🇮🇳
Unknown said…
Very nice, well said

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