गुनगुनाइये...गाइये....राम का गुणगान.... क्योंकि राम है सत्य,सनातन.....नहीं है कोई चपटी धरती सा झूठ...
राम सिर्फ एक नाम नहीं हैं....श्रीराम हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत हैं.... राम हिन्दुओं की एकता और अखंडता के प्रतीक हैं....श्री राम सनातन धर्म की पहचान है........
लेकिन आज कुछ विधर्मी उनके बारे में सवाल उठाते है.....कल राम नवमी पर बहुत सारे ऐसे नराधम लोग थे जो ऐसे सवाल उठा रहे थे...सवाल उठाने वाले वो लोग है जो धरती चपटी है कहने वालों पर मौन रहते है....ना ही इस पर कुछ बोलेंगे कि एक नाव पर दुनिया की सारी एक एक चीज रख ली, जब तबाही हुई......जो है वो सारा उसी नाव की देन है.....कहने वालों से कुछ पूछने पर उनके मुंह में दही जम जाता है..... अपनी ही सांस्कृतिक विरासत पर सवाल उठाते मूर्ख केवल भारत में ही मिलते है.....क्योंकि देश के पहले शिक्षा मंत्री का इस देश की जड़ों से ना लेना देना नहीं था।
वे जो राम के अस्तित्व का प्रमाण मांगते हैं ...वे क्या जाने राम सिर्फ दो अक्षर का नाम नहीं, राम तो प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है, राम चेतना और सजीवता का प्रमाण है। अगर राम नहीं तो जीवन मरा है। इस नाम में वो ताकत है कि मरा-मरा करने वाला राम-राम करने लगता है। इस नाम में वो शक्ति है जो हजारों-लाखों मंत्रों के जाप में भी नहीं है। आइए इस राम नाम की शक्ति को जानिए-
हिन्दू धर्म भगवान विष्णु के दशावतार (दस अवतारों) का उल्लेख है। राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि।
श्रीराम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है| बाद में तुलसीदासजी ने भी भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस की रचना कर श्रीराम के व्यक्तित्व को आदर्श पुरुष के रूप में समाज के सामने सरल भाषा में रखा।
भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने राम के आदर्शों को खूब समझा-परखा है राम का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है। राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे। भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श, विनय, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम का नाम राम है। जो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है, निःस्वार्थ भाव से उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित हो सकती है। राम के आदर्श लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन।
राम जाति वर्ग से परे हैं। नर हों या वानर, मानव हों या दानव सभी से उनका करीबी रिश्ता है। अगड़े पिछड़े सब उनके करीब हैं। निषादराज हों या सुग्रीव, शबरी हों या जटायु सभी को साथ ले चलने वाले वे देव हैं। भरत के लिए आदर्श भाई। हनुमान के लिए स्वामी। प्रजा के लिए नीतिकुशल न्यायप्रिय राजा हैं। परिवार नाम की संस्था में उन्होंने नए संस्कार जोड़े। पति पत्नी के प्रेम की नई परिभाषा दी।
वर्तमान संदर्भों में भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों का जनमानस पर गहरा प्रभाव है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं, उनसे उत्तम कोई व्रत नहीं, कोई श्रेष्ठ योग नहीं, कोई उत्कृष्ट अनुष्ठान नहीं। उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियाँ जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं। संपूर्ण भारतीय समाज के जरिए एक समान आदर्श के रूप में भगवान श्रीराम को उत्तर से लेकर दक्षिण तक संपूर्ण जनमानस ने स्वीकार किया है। उनका तेजस्वी एवं पराक्रमी स्वरूप भारत की एकता का प्रत्यक्ष चित्र उपस्थित करता है।
असीम ताकत अहंकार को जन्म देती है। लेकिन अपार शक्ति के बावजूद राम संयमित हैं...वे सामाजिक हैं, ....वे लोकतांत्रिक हैं।
वे मानवीय करुणा जानते हैं, वे मानते हैं,इसलिए कहा परहित सरिस धर्म नहीं भाई.....
स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर समाजवादी और सम्मानित राजनीतिज्ञ डॉ. राममनोहर लोहिया कहते हैं- जब भी महात्मा गांधी ने किसी का नाम लिया तो राम का ही क्यों? कृष्ण और शिव क्यों नहीं। दरअसल राम देश की एकता के प्रतीक हैं। महात्मा गांधी ने राम के जरिए हिन्दुस्तान के सामने एक मर्यादित तस्वीर रखी। गांधी उस राम राज्य के हिमायती थे। जहां लोकहित सर्वोपरि हो। इसीलिए लोहिया भारत मां से मांगते हैं- हे भारत माता हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो, राम का कर्म और वचन दो।
श्रीराम का जीवन आम आदमी का जीवन है.... आम आदमी की मुश्किल उनकी मुश्किल है...वे हर उस समस्या का शिकार हुए जिन समस्याओं से आज का इंसान जूझ रहा है। बाकि देवता हर क्षण चमत्कार करते हैं। लेकिन जब राम की पत्नी का अपहरण हुआ तो उसे वापस पाने के लिए उन्होंने कोई चमत्कार नहीं किया अपितु रणनीति बनाई। लंका जाने के लिए उनकी सेना ने कोई चमत्कार नहीं किया बल्कि एक-एक पत्थर जोड़कर पुल बनाया। यह उनकी कुशल प्रबन्धक क्षमता को दिखाती है। जब राम अयोध्या से चले तो साथ में सीता और लक्ष्मण थे। जब लौटे तो पूरी सेना के साथ। एक साम्राज्य को नष्ट कर और एक साम्राज्य का निर्माण करके।
राम अगम हैं संसार के कण-कण में विराजते हैं। सगुण भी हैं निर्गुण भी। तभी कबीर कहते हैं “निर्गुण राम जपहुं रे भाई।”
आदिकवि बाल्मीकि जी ने उनके संबंध में लिखा है कि वे गाम्भीर्य में उदधि (सागर) के समान और धैर्य में हिमालय के समान हैं। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसीलिए तो भगवान राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा।
आइये,आज जानते है,क्या हम रामनवमी मनाते आ रहे है सदियों से,क्या वह सही है....क्या महर्षि वाल्मीकि जी ने जो लिखा वो सही था...?
सदियों से भगवान राम की कथा भारतीय संस्कृति में रची बसी है, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जीवन चरित्र लोगों को सही राह पर चलने की शिक्षा देता आ रहा है,।
लेकिन क्या भगवान राम से जुड़ी कहानी सिर्फ कथा है....
क्या भगवान राम कल्पना हैं,.....?
आखिर हमारे पास भगवान राम के सच होने का क्या प्रमाण है?
कहा जाता है कि पांचवी से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व जिस काल को ऋग्दवेद का काल कहा जाता है, तभी महर्षि वाल्मिकी ने रामायण की रचना की। लेकिन अब तक इस बात इतिहासकारों की राय बंटी हुई थी, लेकिन अब इस बात के सच होने का वैज्ञानिक प्रमाण मिल गया है।
दिल्ली में स्थित एक संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदा यानी आई सर्व ने लंबे वैज्ञानिक शोध के बाद चौंकाने वाला दावा किया है। आई सर्व ने आधुनिक विज्ञान से जुड़ी 9 विधाओं, अंतरिक्ष विज्ञान, जेनेटिक्स, जियोलॉजी, एर्कियोलॉजी और स्पेस इमेजरी पर आधारित रिसर्च के आधार पर दावा किया है।
भारत में पिछले 10 हजार साल से सभ्यता लगातार विकसित हो रही है। वेद और रामायण में विभिन्न आकाशीय और खगोलीय स्थितियों का जिक्र मिलता है, जिसे आधुनिक विज्ञान की मदद से 9 हजार साल ईसा पूर्व से लेकर 7 हजार साल ईसा पूर्व तक प्रमाणिक तरीके से क्रमानुसार सिद्ध किया जा सकता है।
महर्षि वाल्मीकि जी ने जो लिखा रामायण में भगवान राम के जन्म के बारे में वर्णन करते हुए —
ततो य्रूो समाप्ते तु ऋतुना षट् समत्युय: ।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ॥
नक्षत्रेsदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु ।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥
प्रोद्यमाने जनन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् ।
कौसल्याजयद् रामं दिव्यलक्षसंयुतम् ॥
भावार्थ- चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में कौशल्यादेवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवन्दित श्री राम को जन्म दिया।
यानी जिस दिन भगवान राम का जन्म हुआ उस दिन अयोध्या के ऊपर तारों की सारी स्थिति का साफ-साफ जिक्र है… अब अगर रामायण में जिक्र नक्षत्रों की इस स्थिति को नासा द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सॉफ्टवेयर प्लैनेटेरियम गोल्ड में उस वक्त की सितारों की स्थिती से मिलान और तुलना करें तो आईए जानते हैं कि क्या नतीजा मिलता है?
सूर्य मेष राशि (उच्च स्थान) में।
शुक्र मीन राशि (उच्च स्थान) में।
मंगल मकर राशि (उच्च स्थान) में।
शनि तुला राशि (उच्च स्थान) में।
बृहस्पति कर्क राशि (उच्च स्थान) में।
लगन कर्क के रूप में।
पुनर्वसु के पास चन्द्रमा मिथुन से कर्क राशि की ओर बढता हुआ।
शोध संस्था आई सर्व के मुताबिक वाल्मीकि रामायण में जो उल्लेख श्री राम के जन्म के वक्त ग्रह-नक्षत्रों का किया गया है उस स्थिति का सॉफ्टवेयर से मिलान करने पर जो दिन मिला, वो दिन है 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व। उस दिन दोपहर 12 बजे अयोध्या के आकाश पर सितारों की स्थिति वाल्मीकि रामायण और सॉफ्टवेयर दोनों में एक जैसी है। लिहाजा, रिसर्चर इस नतीजे पर पहुंचे कि रामलाला का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को हुआ।
आई सर्व के रिसर्चरों नेजब धार्मिक तिथियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चंद्र कैलेंडर की इस तिथि को आधुनिक कैलेंडर की तारीख में बदला तो वो ये जान कर हैरान रह गए कि सदियों से भारतवर्ष में रामलला का जन्मदिन बिल्कुल सही तिथि पर मनाया जाता आया है।
आई-सर्व की दिल्ली शाखा की निदेशक सरोज बाला के मुताबिक… जो जन्मतिथि आती है वो है 10 जनवरी 5114 बीसी अब इसे लूनर कैलेंडर में कन्वर्ट किया तो वो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी निकली। अब हम सब जानते हैं कि चैत्र शुक्ल की नवमी को राम नवमी मनाते हैं, तो वही दोपहर को 12 से 2 बजे के बीच समान तिथि निकली है।
सॉफ्टवेयर की मदद से रिसर्चरों ने भी ये भी पता लगाया की रामलला के भाईयों का जन्म कब होता है।
इस मॉडल के मुताबिक भरत का जन्म पुष्प नक्षत्र तथा मीन लग्न में 11 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को सुबह चार बजे लक्ष्मण और शत्रुध्न का जन्म अश्लेषा नक्षत्र एंव कर्क लग्न में 11 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को 11 : 30 बजे हुआ।
हालांकि कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि भगवान राम का जन्म 7323 ईसा पूर्व हुआ था। उस समय भी चैत्र मास की नवमी को रामनवमी ही थी।
दूसरे दल के वैज्ञानिक शोधकर्ताओं अनुसार राम की जन्म दिनांक वाल्मीकि द्वारा बताए गए ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर अनुसार 4 दिसंबर 7323 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9343 वर्ष पूर्व हुआ था।
मतलब साफ है बाल्मीकि के राम कोई कपोल कल्पना नहीं,सत्य है और तथ्य भी....
तारणहार राम का नाम : श्रीराम-श्रीराम जपते हुए असंख्य साधु-संत मुक्ति को प्राप्त हो गए हैं। प्रभु श्रीराम नाम के उच्चारण से जीवन में सकारात्क ऊर्जा का संचार होता है। जो लोग ध्वनि विज्ञान से परिचित हैं वे जानते हैं कि ‘राम’ शब्द की महिमा अपरम्पार है।
जब हम ‘राम’ कहते हैं तो हवा या रेत पर एक विशेष आकृति का निर्माण होता है। उसी तरह चित्त में भी विशेष लय आने लगती है। जब व्यक्ति लगातार ‘राम’ जप करता रहता है तो रोम-रोम में प्रभु श्रीराम बस जाते हैं। उसके आसपास सुरक्षा का एक मंडल बनना तय समझो। प्रभु श्रीराम के नाम का असर जबरदस्त होता है। आपके सारे दुःख हरने वाला सिर्फ एकमात्र नाम है- ‘हे राम।’
व्यर्थ की चिंता छोड़ो :
होइहै वही जो राम रचि राखा।
को करे तरफ बढ़ाए साखा।।
‘राम’ सिर्फ एक नाम नहीं हैं और न ही सिर्फ एक मानव। राम परम शक्ति हैं। प्रभु श्रीराम के द्रोहियों को शायद ही यह मालूम है कि वे अपने आसपास नर्क का निर्माण कर रहे हैं। इसीलिए यह चिंता छोड़ दो कि कौन प्रभु श्रीराम का अपमान करता है और कौन सुनता है।
बस मन में गुनगुनाये....परिवार संग गुनगुनाये....जानकीनाथ सहाय करे तो कौन नर बिगाड़ करे....
शेष अगली बार
।।शिव।।
राम सिर्फ एक नाम नहीं हैं....श्रीराम हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत हैं.... राम हिन्दुओं की एकता और अखंडता के प्रतीक हैं....श्री राम सनातन धर्म की पहचान है........
लेकिन आज कुछ विधर्मी उनके बारे में सवाल उठाते है.....कल राम नवमी पर बहुत सारे ऐसे नराधम लोग थे जो ऐसे सवाल उठा रहे थे...सवाल उठाने वाले वो लोग है जो धरती चपटी है कहने वालों पर मौन रहते है....ना ही इस पर कुछ बोलेंगे कि एक नाव पर दुनिया की सारी एक एक चीज रख ली, जब तबाही हुई......जो है वो सारा उसी नाव की देन है.....कहने वालों से कुछ पूछने पर उनके मुंह में दही जम जाता है..... अपनी ही सांस्कृतिक विरासत पर सवाल उठाते मूर्ख केवल भारत में ही मिलते है.....क्योंकि देश के पहले शिक्षा मंत्री का इस देश की जड़ों से ना लेना देना नहीं था।
वे जो राम के अस्तित्व का प्रमाण मांगते हैं ...वे क्या जाने राम सिर्फ दो अक्षर का नाम नहीं, राम तो प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है, राम चेतना और सजीवता का प्रमाण है। अगर राम नहीं तो जीवन मरा है। इस नाम में वो ताकत है कि मरा-मरा करने वाला राम-राम करने लगता है। इस नाम में वो शक्ति है जो हजारों-लाखों मंत्रों के जाप में भी नहीं है। आइए इस राम नाम की शक्ति को जानिए-
हिन्दू धर्म भगवान विष्णु के दशावतार (दस अवतारों) का उल्लेख है। राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि।
श्रीराम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है| बाद में तुलसीदासजी ने भी भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस की रचना कर श्रीराम के व्यक्तित्व को आदर्श पुरुष के रूप में समाज के सामने सरल भाषा में रखा।
भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने राम के आदर्शों को खूब समझा-परखा है राम का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है। राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे। भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श, विनय, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम का नाम राम है। जो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है, निःस्वार्थ भाव से उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित हो सकती है। राम के आदर्श लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन।
राम जाति वर्ग से परे हैं। नर हों या वानर, मानव हों या दानव सभी से उनका करीबी रिश्ता है। अगड़े पिछड़े सब उनके करीब हैं। निषादराज हों या सुग्रीव, शबरी हों या जटायु सभी को साथ ले चलने वाले वे देव हैं। भरत के लिए आदर्श भाई। हनुमान के लिए स्वामी। प्रजा के लिए नीतिकुशल न्यायप्रिय राजा हैं। परिवार नाम की संस्था में उन्होंने नए संस्कार जोड़े। पति पत्नी के प्रेम की नई परिभाषा दी।
वर्तमान संदर्भों में भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों का जनमानस पर गहरा प्रभाव है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं, उनसे उत्तम कोई व्रत नहीं, कोई श्रेष्ठ योग नहीं, कोई उत्कृष्ट अनुष्ठान नहीं। उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियाँ जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं। संपूर्ण भारतीय समाज के जरिए एक समान आदर्श के रूप में भगवान श्रीराम को उत्तर से लेकर दक्षिण तक संपूर्ण जनमानस ने स्वीकार किया है। उनका तेजस्वी एवं पराक्रमी स्वरूप भारत की एकता का प्रत्यक्ष चित्र उपस्थित करता है।
असीम ताकत अहंकार को जन्म देती है। लेकिन अपार शक्ति के बावजूद राम संयमित हैं...वे सामाजिक हैं, ....वे लोकतांत्रिक हैं।
वे मानवीय करुणा जानते हैं, वे मानते हैं,इसलिए कहा परहित सरिस धर्म नहीं भाई.....
स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर समाजवादी और सम्मानित राजनीतिज्ञ डॉ. राममनोहर लोहिया कहते हैं- जब भी महात्मा गांधी ने किसी का नाम लिया तो राम का ही क्यों? कृष्ण और शिव क्यों नहीं। दरअसल राम देश की एकता के प्रतीक हैं। महात्मा गांधी ने राम के जरिए हिन्दुस्तान के सामने एक मर्यादित तस्वीर रखी। गांधी उस राम राज्य के हिमायती थे। जहां लोकहित सर्वोपरि हो। इसीलिए लोहिया भारत मां से मांगते हैं- हे भारत माता हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो, राम का कर्म और वचन दो।
श्रीराम का जीवन आम आदमी का जीवन है.... आम आदमी की मुश्किल उनकी मुश्किल है...वे हर उस समस्या का शिकार हुए जिन समस्याओं से आज का इंसान जूझ रहा है। बाकि देवता हर क्षण चमत्कार करते हैं। लेकिन जब राम की पत्नी का अपहरण हुआ तो उसे वापस पाने के लिए उन्होंने कोई चमत्कार नहीं किया अपितु रणनीति बनाई। लंका जाने के लिए उनकी सेना ने कोई चमत्कार नहीं किया बल्कि एक-एक पत्थर जोड़कर पुल बनाया। यह उनकी कुशल प्रबन्धक क्षमता को दिखाती है। जब राम अयोध्या से चले तो साथ में सीता और लक्ष्मण थे। जब लौटे तो पूरी सेना के साथ। एक साम्राज्य को नष्ट कर और एक साम्राज्य का निर्माण करके।
राम अगम हैं संसार के कण-कण में विराजते हैं। सगुण भी हैं निर्गुण भी। तभी कबीर कहते हैं “निर्गुण राम जपहुं रे भाई।”
आदिकवि बाल्मीकि जी ने उनके संबंध में लिखा है कि वे गाम्भीर्य में उदधि (सागर) के समान और धैर्य में हिमालय के समान हैं। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसीलिए तो भगवान राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा।
आइये,आज जानते है,क्या हम रामनवमी मनाते आ रहे है सदियों से,क्या वह सही है....क्या महर्षि वाल्मीकि जी ने जो लिखा वो सही था...?
सदियों से भगवान राम की कथा भारतीय संस्कृति में रची बसी है, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जीवन चरित्र लोगों को सही राह पर चलने की शिक्षा देता आ रहा है,।
लेकिन क्या भगवान राम से जुड़ी कहानी सिर्फ कथा है....
क्या भगवान राम कल्पना हैं,.....?
आखिर हमारे पास भगवान राम के सच होने का क्या प्रमाण है?
कहा जाता है कि पांचवी से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व जिस काल को ऋग्दवेद का काल कहा जाता है, तभी महर्षि वाल्मिकी ने रामायण की रचना की। लेकिन अब तक इस बात इतिहासकारों की राय बंटी हुई थी, लेकिन अब इस बात के सच होने का वैज्ञानिक प्रमाण मिल गया है।
दिल्ली में स्थित एक संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदा यानी आई सर्व ने लंबे वैज्ञानिक शोध के बाद चौंकाने वाला दावा किया है। आई सर्व ने आधुनिक विज्ञान से जुड़ी 9 विधाओं, अंतरिक्ष विज्ञान, जेनेटिक्स, जियोलॉजी, एर्कियोलॉजी और स्पेस इमेजरी पर आधारित रिसर्च के आधार पर दावा किया है।
भारत में पिछले 10 हजार साल से सभ्यता लगातार विकसित हो रही है। वेद और रामायण में विभिन्न आकाशीय और खगोलीय स्थितियों का जिक्र मिलता है, जिसे आधुनिक विज्ञान की मदद से 9 हजार साल ईसा पूर्व से लेकर 7 हजार साल ईसा पूर्व तक प्रमाणिक तरीके से क्रमानुसार सिद्ध किया जा सकता है।
महर्षि वाल्मीकि जी ने जो लिखा रामायण में भगवान राम के जन्म के बारे में वर्णन करते हुए —
ततो य्रूो समाप्ते तु ऋतुना षट् समत्युय: ।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ॥
नक्षत्रेsदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु ।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥
प्रोद्यमाने जनन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् ।
कौसल्याजयद् रामं दिव्यलक्षसंयुतम् ॥
भावार्थ- चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में कौशल्यादेवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवन्दित श्री राम को जन्म दिया।
यानी जिस दिन भगवान राम का जन्म हुआ उस दिन अयोध्या के ऊपर तारों की सारी स्थिति का साफ-साफ जिक्र है… अब अगर रामायण में जिक्र नक्षत्रों की इस स्थिति को नासा द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सॉफ्टवेयर प्लैनेटेरियम गोल्ड में उस वक्त की सितारों की स्थिती से मिलान और तुलना करें तो आईए जानते हैं कि क्या नतीजा मिलता है?
सूर्य मेष राशि (उच्च स्थान) में।
शुक्र मीन राशि (उच्च स्थान) में।
मंगल मकर राशि (उच्च स्थान) में।
शनि तुला राशि (उच्च स्थान) में।
बृहस्पति कर्क राशि (उच्च स्थान) में।
लगन कर्क के रूप में।
पुनर्वसु के पास चन्द्रमा मिथुन से कर्क राशि की ओर बढता हुआ।
शोध संस्था आई सर्व के मुताबिक वाल्मीकि रामायण में जो उल्लेख श्री राम के जन्म के वक्त ग्रह-नक्षत्रों का किया गया है उस स्थिति का सॉफ्टवेयर से मिलान करने पर जो दिन मिला, वो दिन है 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व। उस दिन दोपहर 12 बजे अयोध्या के आकाश पर सितारों की स्थिति वाल्मीकि रामायण और सॉफ्टवेयर दोनों में एक जैसी है। लिहाजा, रिसर्चर इस नतीजे पर पहुंचे कि रामलाला का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को हुआ।
आई सर्व के रिसर्चरों नेजब धार्मिक तिथियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चंद्र कैलेंडर की इस तिथि को आधुनिक कैलेंडर की तारीख में बदला तो वो ये जान कर हैरान रह गए कि सदियों से भारतवर्ष में रामलला का जन्मदिन बिल्कुल सही तिथि पर मनाया जाता आया है।
आई-सर्व की दिल्ली शाखा की निदेशक सरोज बाला के मुताबिक… जो जन्मतिथि आती है वो है 10 जनवरी 5114 बीसी अब इसे लूनर कैलेंडर में कन्वर्ट किया तो वो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी निकली। अब हम सब जानते हैं कि चैत्र शुक्ल की नवमी को राम नवमी मनाते हैं, तो वही दोपहर को 12 से 2 बजे के बीच समान तिथि निकली है।
सॉफ्टवेयर की मदद से रिसर्चरों ने भी ये भी पता लगाया की रामलला के भाईयों का जन्म कब होता है।
इस मॉडल के मुताबिक भरत का जन्म पुष्प नक्षत्र तथा मीन लग्न में 11 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को सुबह चार बजे लक्ष्मण और शत्रुध्न का जन्म अश्लेषा नक्षत्र एंव कर्क लग्न में 11 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को 11 : 30 बजे हुआ।
हालांकि कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि भगवान राम का जन्म 7323 ईसा पूर्व हुआ था। उस समय भी चैत्र मास की नवमी को रामनवमी ही थी।
दूसरे दल के वैज्ञानिक शोधकर्ताओं अनुसार राम की जन्म दिनांक वाल्मीकि द्वारा बताए गए ग्रह-नक्षत्रों के आधार पर प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर अनुसार 4 दिसंबर 7323 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9343 वर्ष पूर्व हुआ था।
मतलब साफ है बाल्मीकि के राम कोई कपोल कल्पना नहीं,सत्य है और तथ्य भी....
तारणहार राम का नाम : श्रीराम-श्रीराम जपते हुए असंख्य साधु-संत मुक्ति को प्राप्त हो गए हैं। प्रभु श्रीराम नाम के उच्चारण से जीवन में सकारात्क ऊर्जा का संचार होता है। जो लोग ध्वनि विज्ञान से परिचित हैं वे जानते हैं कि ‘राम’ शब्द की महिमा अपरम्पार है।
जब हम ‘राम’ कहते हैं तो हवा या रेत पर एक विशेष आकृति का निर्माण होता है। उसी तरह चित्त में भी विशेष लय आने लगती है। जब व्यक्ति लगातार ‘राम’ जप करता रहता है तो रोम-रोम में प्रभु श्रीराम बस जाते हैं। उसके आसपास सुरक्षा का एक मंडल बनना तय समझो। प्रभु श्रीराम के नाम का असर जबरदस्त होता है। आपके सारे दुःख हरने वाला सिर्फ एकमात्र नाम है- ‘हे राम।’
व्यर्थ की चिंता छोड़ो :
होइहै वही जो राम रचि राखा।
को करे तरफ बढ़ाए साखा।।
‘राम’ सिर्फ एक नाम नहीं हैं और न ही सिर्फ एक मानव। राम परम शक्ति हैं। प्रभु श्रीराम के द्रोहियों को शायद ही यह मालूम है कि वे अपने आसपास नर्क का निर्माण कर रहे हैं। इसीलिए यह चिंता छोड़ दो कि कौन प्रभु श्रीराम का अपमान करता है और कौन सुनता है।
बस मन में गुनगुनाये....परिवार संग गुनगुनाये....जानकीनाथ सहाय करे तो कौन नर बिगाड़ करे....
शेष अगली बार
।।शिव।।
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