सासु माँ
दोपहर में गपशप के इरादे से जमीला बेगम जब अपनी पडौसन निर्मला के घर आई, तो देखा वह रसोई के काम में व्यस्त थी।
अपनी आदत से लाचार जमीला बेगम ने धीरे से इधर-उधर ताक झांक की तो अपने कमरे में बहू चादर तानकर आराम से सोई थी।
“ज़माना खराब आ गया है,बुढ़ापे में सास को आराम करना चाहिए वो बेचारी काम में लगी है और बहू चादर तानकर आराम से सो रही है।”
जमीला ने आंगन में बंधी तनी पर सूखते कपड़ों, सूखे कपड़ों के ढेर और धुले बर्तनों की तरफ़ देखते हुए मुंह बिचकाकर कहा।
“ऐसा नहीं है बहन,बहू की तबीयत ठीक नहीं है, वरना तो वह मुझे कोई काम नहीं करने देती.” निर्मला जी ने उत्तर दिया।
“तुम तो ठहरी निरी भोली....तुम जानती नहीं हो आजकल की बहुओं को वे होती ही कामचोर है। फैशन चाहे जितनी करवा लो और मोबाइल पर सारे दिन बतिया लो... वह काम से बचने के लिए जब-तब बीमारी का बहाना बना लेती हैं। मेरे जमील की बहू भी ऐसी ही है.” कहकर बेगम निर्मलाजी की बहू के साथ साथ ख़ुद की बहु की भी बुराई करने लगी।
जमीला बेगम से मुखातिब होते हुए निर्मलाजी ने कहा “ऐसा नहीं है बेगम,जब हमारी बेटी की तबीयत ख़राब होती है, तब क्या हम उसे खाना बनाकर नहीं खिलाते? तो फिर बहू को बनाकर खिलाने में क्यों तकलीफ़?”
तेरे तो बहु के नाम की बस पट्टी बंधी हुई है निर्मला, अभी नहीं समझेगी.......
“मैं तो बस एक बात समझती हूं कि बहू भी किसी की बेटी होती हैं. बहू को बेटी बनाने के लिए सास को भी तो मां बनना पड़ेगा. उसकी भावनाएं समझनी होंगी. हम चाहते हैं हमारी बेटी को उसके ससुरालवाले बेटी जैसा प्यार दे, तो अपनी बहू को बेटी समझने में दिक़्क़त क्यों?”कहते हुए निर्मलाजी दूध का गिलास लेकर बहू के कमरे की ओर बढ़ गई।
जमीला बेगम अपना-सा मुंह लेकर बाहर की ओर तशरीफ़ ले जाने को मजबूर हो गयी।उधर बुखार में तपी होने पर भी बहू की आंखों में ख़ुशी के आंसू आ गए।
बहु पर सवाल उठाने से पहले क्या सास उसे अपनी बेटी की जगह देने के लिए तैयार है...? क्या बहु सास की कही सुनी को माँ का कहा सुना समझने के लिए तैयार है? जहां यह समझ है वहां रिश्तों की महक है उसे कोई जमीला नाम का जहर लील नहीं सकता।
आपका दिन शुभ हो और परिवार में समझ का पुष्प फले फुले.....
।।शिव।।
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