कुर्बानी

मजारों,फकीरों की चौखटों पर की गई मन्नतों और डॉक्टरों के पुरज़ोर इलाज ने अपना रंग दिखाया और सलीम की बेटी ने एक बार फिर से जीवन के रंगो को जीना शुरू कर किया।

मन्नते,दुआएं कबूल हुई तो उनकी चौखट पर जो बोला था उसे पूरा करने की जद्दोजहद में लग गया सलीम। केवल सलीम ही नहीं फरजाना भी और सलीम के वालिद जनाब अरशद अली भी।

जनाब अरशद अली की गिनती दीनी तालीम के बड़े उस्ताद के रूप में होती थी,बड़े बड़े जलसों में वे तकरीरें पेश करते थे।

कभी अनाज को उसका सदक़ा उतार कर ग़रीबों में बाँटा जाता ।मस्जिद-मजार पर फिर चौखट चूमी जाती,वे सब वो करते जो उन्होंने दुआओं में अपनी बच्ची के लिये कहा था।

नन्हीं सी जमीला उसे देख कर फख्र से अपने वालिद और अम्मा को चूम लेती।

पर आज वह दुःखी थी। उसके जीवन को बचाने के लिये उसके अब्बू ने बकरे की क़ुर्बानी की दुआ माँगी थी। ट्रक में लद कर आये बकरे की मासूमियत को देख उसने अपने अब्बू से कहा।


“अब्बू!क्या ये ज़रूरी है?”

“हाँ, बेटी! आपकी सलामती के लिये ऊपर वाले से किया ये वादा निभाना ज़रूरी है।”

पर अब्बू! स्कूल में तो सर कहते है कि पेड़ पौधों में भी हमारी तरह प्राण होते है....यह तो फिर एक प्राणी है।क्या आप अपने बच्चे की जान की सलामती के लिये किसी और के बच्चे की जान लेंगे?”

नन्हीं सी जमीला के मासूम से सवाल को सुन निररूत्तर हुए सलीम ने  उसे गले लगाते हुए कहा।

“न,मेरी बच्ची न ।

अपने बच्चे को खोने का एहसास ही कितना भयावह होता है। ये सहा है मैंने । मैं ये दर्द किसी को नहीं दे सकता।”

सलीम ने आसमान की ओर देखते हुए दोनों हाथ ऊपर उठा लिए मानों कह रहा हो...तेरी बनाई इस दुनियां में ये कैसे रस्म ओ रिवाज है मौला! अपनी औलाद की सलामती के लिए किसी दूसरे की औलाद को छीनना ना इंसाफ है और ना ही तेरी इसमें रजा होगी।

उसने अपनी जमीला को अपनी बाँहों में भर लिया।

।।शिव।।

Comments

Popular posts from this blog

अब भारत नहीं बनेगा घुसपैठियों की धर्मशाला

फिर बेनकाब हुआ छद्म धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा

भारत को इंडिया कहने की विवशता क्यों ?