अच्छा पड़ोसी
कोई तो है यार वर्माजी जो रोजाना मुझे छेड़ता है,मैं रोज यह गिलोय की बेल चौधरी साहब के मनी प्लांट के लिए बंधी रस्सी के सहारे चढ़ाता हूँ और कोई उतार जाता है....यह कहते कहते भी चंद्रभान सिंह दीवार की रेलिंग को लांघ कर इधर उधर देख रहे थे,जैसा उसको पकड़ने के लिए जतन कर रहे हो।
उधर चौधरी साहब भी अपने बगीचे में ही थे। बोले यार सिंह बड़े मुश्किल से लगा है मनी प्लांट...किसी ने कहा था कि इसे लगाने से पैसा आता है इसलिए इसे रस्सी के सहारे चढ़ाने की कोशिश कर रहा हूँ और ये तुम्हारी गिलोय की तरफ लटक जाती है...
सिंह साहब ने भी कहा सही कह रहे हो तुम भी चौधरी...गिलोय भी उधर ही जा रही थी इसलिए उसी रस्सी के सहारे मैंने अटकाने की कोशिश की थी।
पास खड़े शर्मा जो वर्माजी से बात करते हुए सुन रहे थे बोले- किसे अच्छे पड़ोसी का साथ नहीं भाता..गिलोय और मनी प्लांट को साथ बढ़ने दो....यह भी तो सोचो...स्वास्थ्य भी तो सम्पति है......चौधरी जी ने सिंह साहब से कहा-ला भाई पकड़ा तेरी गिलोय,अब रस्सी के सहारे दोनों साथ बढ़ेगी....
शर्माजी,वर्माजी,सिंह साहब औऱ चौधरी जी की मुस्कान अब संयुक्त हंसी में बदल गयी थी... मानों गिलोय को मनी प्लांट के रूप में मन चाहा अच्छा पड़ोसी मिल गया।
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