मित्र धर्म

 निरंजन घर पहुंचा तो पत्नी ने कहा आज तुम्हारे मित्र शेखऱ घर आये थे उन्हें दस हजार रुपये की जरूरत थी,मैंने आपकी अलमारी से दस हजार रुपये उन्हें दे दिए है। तुम्हें कहीं लिखना हो तो लिख लेना।

निरंजन सोच में डूब गया...उसे इस प्रकार देखकर पत्नी ने कहा-क्या कोई गलती हो गयी..? तुम ही तो कहते हो शेखर भरोसे वाले इंसान है.…..इसलिए उनके सामने तुम्हें नहीं पूछा, उन्हें बुरा ना लगे इसलिए।

मैंने तुमसे बिना पूछे रुपये दे दिये,सॉरी यार मैनें तो तुम्हारी पहले कही बातों को ही ध्यान में रखकर दे दिए।

मुझे नहीं पता था कि वो अब बदल गए.....

निरंजन ने कहा-नहीं यार तुमने कोई गलती नहीं की, तुमने बहुत अच्छा किया.....मुझे अच्छा लगा कि तुमने उसके आने पर उसकी मदद की....मुझे भी नहीं पूछकर उसे रुपये दे दिए यह भी अच्छी बात है।


मैं तो दुःखी इस बात से हूं कि उसे पैसे की जरूरत थी औऱ मुझे पता ही नहीं चला.... उसे आज मांगने पड़े,इसका मतलब यह कि हमारी बात आजकल होती ही नहीं.....हम दोस्त की जरूरत खुद नहीं समझ सके तो फिर दोस्त कैसे...?

दोस्ती तो साइलेंट बेल है जिसे बिना बजे समझना होता है,उसे मांगने की जरूरत हुई यह तो बड़ी बात हो गयी.....…वक्त की आपाधापी ने फासले बढ़ा दिये.... समझ नहीं आ रहा तरक्की की है हमने या तन्हा होते जा रहे है....कहते कहते उसने लैपटॉप  खोला और शेखऱ के खाते में बैंक से घनराशि ट्रांसफर कर रहा था।

पति  से बात करते करते वो उसके पास आ गयी थी...उसने देखा कि निरंजन खाते से  औऱ रुपये ट्रांसफर कर रहे है तो वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी....

।।शिव।।

Comments

Veena bhojak said…
सुन्दर व सार्थक....
Vimal said…
हृदयस्पर्शी

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