पापा की शर्त
शालिनी पीहर आई हुई थी,शाम को माँ-बेटी बैठे थे अपने कमरे में तो माँ ने अपनी अलमारी से सोने की चूड़ियां निकाल कर दिखाते हुए कहा-शालू, देख ये चूड़ियां जाह्नवी लेकर आई थी मेरे लिए।
शालिनी ने चूड़ियां हाथ में लेकर देखते हुए कहा-हाँ, भई!लेकर तो आएगी ही महारानी जो ठहरी..पति कमा रहा है और वो उड़ा रही है।कभी हमें भी पूछ लिया करो कुछ करने से पहले... माँ कुछ बोलने लगी तो शालिनी ने कहा-आप तो रहने ही दो,आप तो मोम की गुड़िया हो उसके सामने....
अभी वह बोल ही रही थी कि जाह्नवी ने कमरे में आते हुए कहा-मम्मी मैं शिवांश के साथ पापा से मिलकर आती हूँ।
माँ ने कहा-हाँ!बेटा आराम से जाना,मेरी ओर से भी समधी जी को कुशल क्षेम पूछना।
जाह्नवी अपनी सास को प्रणाम कर बाहर निकल गयी तो अब तक चुप रही शालिनी का बम फिर फट पड़ा.... देखा,कैसे सूट पहनकर जा रही है कोई लिहाज़ भी नहीं है...अभी लिपट कर बैठेगी बाइक पर....कार से भी जा सकती है पर जाएगी बाइक पर....बेशर्मी की भी हद है...वो बोलते जा रही थी और मां सुन रही थी....
पता ही नहीं चला कब शालू के पापा कमरे में आ गए।
बोले-क्या हुआ शालू,यह क्या है....पति पत्नी कैसे रहे,यह भी क्या अब हम तय करेंगे..?गलत क्या है बेटा जो जाह्नवी सूट पहनती है....तेरी मां कह रही थी तुझे लगता है आजकल तुझे नहीं पूछा जाता तो चल आज से एक काम करते है। सब कुछ तुझसे पूछकर करते है,तेरी भाभी,भाई कैसे रहेंगे यह भी तू ही तय कर दे।
शालिनी की डर, निराशा से निकल कर अधिकार आने की खुशी से चमक उठी।
पापा बोले पर एक शर्त है...तुझे भी अपने घर में वही करना होगा,सब कुछ अपनी ननद से पूछकर...वो ही तय करेगी कि तुम औऱ कँवरसाहब कैसे रहोगे...।
तुम परसो आई थी तब खुद को देखा था तुमने...कैपरी औऱ टी शर्ट में....
शालिनी को पहली बार अपनी भूल का अहसास हो रहा था,आंखें भीग रही थी,माँ का हाथ कंधे पर उसे थपथपा रहा था तो पापा ने दुलार से माथे पर हाथ रख दिया।
।।शिव।।
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