रिश्तों की बारहखड़ी

 निखिल स्कूल से घर पहुंचा तो फ्लेट के गेट पर ही बहुत सारी आवाज़ें सुन चोंक गया। दरवाजे पर चार जोड़ी अजनबी जूते चप्पल देखकर एक बार फिर फ्लेट नम्बर पर नजर डाली...202 सही ही तो है,नम्बर भी औऱ नेमप्लेट भी "गीत गोविन्दम" डोरबेल बजाई तो माँ जाह्नवी ने दरवाजा खोला।

वो कुछ बोलता उससे पहले एक बुजुर्ग महिला जो हॉल में बैठी थी चहकती हुई बोली आ गया मेरा पोता,आ लाला आ जा मेरे पास.... पास बैठी एक सुंदर सी माँ से थोड़ी बड़ी उम्र की महिला ने कहा-मेरा तो नाणदा है,ये तो अपनी मामी के पास ही आएगा.....उनकी बात को काटते हुए एक व्यक्ति ने कहा छोटा-सा तब देखा था,ये तो क्या जानता होगा कि मैं भी इसका फूफाजी हूँ?

मेरी नजरें आश्चर्य से फैल रही थी तभी पापा के पास बैठे एक बुजुर्ग व्यक्ति ने पापा को देखते हुए कहा-अरे शिव! ये तो बड़ा भी हो गया और सुंदर भी लग रहा है।

पापा ने कहा हां चाचाजी!इस बरस 10वीं में हो गया है निखिल।

माँ  हाथ थामे निखिल को आगे ले जा रही थी और वे सब उसे स्नेह से देखते हुए आगे बढ़ रहे थे।


निखिल के समझ में कुछ नहीं आ रहा था, कि वे कौन है..? उसकी सोच को भंग किया बुजुर्ग महिला के स्नेह से भरे पर खुरदरे हाथों के गालों पर हुए स्पर्श से....सब उतावले थे अपना दुलार बरसाने को.... देखते ही देखते निखिल का हाथ उसके मिलने वाली मंथली पॉकेट मनी के बराबर रुपयों से भर गया। इसी बीच पता नहीं कब निखिल ने सबको प्रणाम किया और कब उसकी आंखें भर आईं,पर उसने अपने आपको संयत किया।

मां ने उसे अपने कमरे में भेजते हुए कहा तू फ्रेश हो तब तक खाना तैयार करती हूं।

वो अपने कमरे में गया पर उसके मन में सवाल था ये सब कौन..? वह अपने आपको रोक नहीं पाया कि यह कौनसे रिश्तेदार है? वह मां के पास रसोई में ही चला गया और पूछा माँ ये सब कौन है,पहले तो कभी देखा नहीं...?

माँ ने कहा-जो अपने आपको फूफाजी कह रहे है उनकी बहन की शादी है कल, अपने यहीं मयूर गार्डन में तो कहने के लिए आये है। जो बुजुर्ग महिला है वो तुम्हारे पापा की भुआ है,इस मायने में तेरी दादी जी हुई,जो बुजुर्ग है वे तुम्हारे दादा जी के मामा के बेटे भाई है इसलिए ये भी तुम्हारे दादा हुए।

जो अपने आपको फूफाजी कह रहे थे ये इन भुआजी के दामाद है,औऱ वो महिला फूफाजी की साली है पर मेरे भुआ के बेटे से शादी हुई है तो वे तेरी मामी हो गयी....इसलिए उसने तुम्हे नाणदा कहा....

निखिल इस रिश्तों की बारहखड़ी से पहली बार रूबरू हो रहा था....अब तक अंकल-आंटी वाले रिश्तों से अलग कोई फुंफ़ा बनकर गर्व से मुस्कुरा रहा था,तो कोई उसे नाणदा कहकर सुख पा रही थी......माँ ने उसे झकझोरते हुए कहा जा फ्रेश हो जा,खाना लगा दूँ......वो कमरे की तरफ जा तो रहा था पर मानो कहना चाहता हो...माँ फ्रेश तो आज इनके आने से हुआ हूँ.....मन की खिड़की पर रिश्तों की ठंडी फुहार अंदर आ रही थी......वह अंतर्मन में मुस्कुराते हुए कमरे की नहीं उन सबके बीच बैठने के लिए आगे बढ़ रहा था...….

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आइये,रिश्तों की मिटती इस बारहखड़ी को फिर से लिखें,भावी पीढ़ी को बताएं....इस मिठास के अहसास को एक बार उन्हें भी जीने दें,यह बोझ नहीं आपके सुख दुःख के साथी है....

।।शिव।।

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