अ धर्म
सर,आपका हुकुम मिलते ही पंडित को उठा लाये,औऱ टीवी वालों को बता भी दिया कि आपने धार्मिक उन्माद फैलाने वाले को पकड़ लिया है,वे आते ही होंगे आपका इंटरव्यू लेने।
हेड कॉन्स्टेबल ने सर्किल इंचार्ज को बड़े ही अदब से कहा तो साहब के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई।
हेड कॉन्स्टेबल ने इधर उधर देखकर साहब से कहा- सर गुस्ताखी माफ़ हो पर ये पंडित क्या उन्माद फैलायेगा..? जिसको दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती। कोई दया कर दे देता है तो खा लेता है...कहते कहते वो अपनी चौकस निगाहों से इधर उधर भी देख रहा था और शब्दों को भी तौल रहा था,कहीं साहब की शान में गुस्ताखीं ना हो जाये।
साहब ने अपने सिर को झटका देते हुए कहा-जानता हूँ रामद्दीन! चींटी को आटा और पक्षियों को दाना देने की सीख देने वाला क्या खून खराबे के लिए उकसायेगा..... पर हुकुम है,हुकुम।
राजनीति का खेल है,जिसमें खिलाड़ी खेलता है,तुम हो,चाहें मैं, औऱ चाहें पंडित...दांव पर लगा है तो ...कहते कहते साहब ने बात बदली।
मैंने तुझे दिया तो तूने मेरा हुकुम माना,बिना किसी सवाल के वैसे ही मुझे भी हुकुम है तो मानना पड़ता है बिना किसी सवाल के.....
अपना भी तो होता है,क्या बोलते है उसे अ धर्म है....
।।शिव।।
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