भाई
रानी आज खुशी खुशी बड़े जेठ के घर गई थी, मिलते रहना चाहिए यही सोचकर। मगर खोखले रिश्तों का अनर्गल प्रलाप सुन बेवजह की कड़वाहट से उसका मन दुःखी हो गया। वह रुआंसी हो उठकर चली आई। हालांकि सामान्य रहना चाहती थी मगर जिन रिश्तों को बरसों अपने त्याग और संयम से सींचती रही उन्हें दरकते देख ऐसा होना आसान नहीं था।
सोचा था जेठ-जेठानी और परिवार के साथ दो-तीन घण्टे बिताएंगी, पर आधा घंटा ही नहीं रुक पाई। इसलिए समय था उसके पास।
मां का घर पास ही था तो मिलने पहुंच गई। घर पहुंची तो मां बाऊजी ने उसे खुशी से गले लगाया। उसके बच्चों की उम्र का छोटा भाई तपन दौड़ कर पानी लाया। उनके बीच आकर वह कुछ पल के लिए मन का दर्द भूल गई। फिर भी शायद उसके स्वर में थोड़ी बहुत वेदना शेष थी। मैं चाय बनाकर लाता हूं, कहता हुआ वरुण रसोई में घुस गया। चाय बनने के लिए रखने वाली आवश्यक खटपट की आवाजें रसोई से आनी बंद हुईं तो वरुण ने उसे पुकारा दीदी चीनी कितनी डालूं?
तुम्हें पता तो है एक चम्मच। नहीं, नहीं, यहां आकर बताओ। वह अनमनी सी उठकर चली गई, क्या बात है? पहले आप बताओ क्या बात हुई है, जो आप इतनी उदास हैं?वह चुप रही तो वरुण पुन: बोला जरूर आप उधर गई होंगी? दी! क्यों और किसलिए? जिन्हें रिश्तों की गहराई का अहसास नहीं वे लोग कभी दिल से नहीं जुड़ सकते।
आप व्यथित न हों हम सब हैं न आपके पास। कहते हुए छोटे भाई ने बड़ा बनकर उसे बच्चों की तरह अपने से ऐसे सटा लिया जैसे वह नन्हीं सी बच्ची हो। बहन भाई का रिश्ता भी कितना अनूठा होता है जो बात मां बाऊजी भी नहीं समझ सके उसे इस बुद्धू समझने वालेभाई ने भांप लिया। यह सोचते ही उसके मन का सारा अवसाद धुल चुका था।
टूटते रिश्तों का कारण है अनावश्यक कड़वाहट तो थोड़ी सी समझ रिश्तों में मिठास घोल देती है...आइये, स्मित की बदली बरस जाने दे...कड़वाहट को जगह ना दें...फिर देखें अन्तस् का आनंद।
।।शिव।।
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एक कदम सकारात्मकता की ओर..