मोक्ष
बबिता अपनी दोनो बेटियों के साथ खेल रही थी। तभी पड़ोस वाली आंटी आई और कुटिल मुस्कान के साथ बोली-
“क्या बात है बबिता खूब मस्ती हो रही है बेटियों के साथ?”
बबिता ने कुर्सी देकर उन्हें बैठने को कहा औऱ उनके चरण स्पर्श किये।
“अब फटाफट एक बेटा भी हो जाये ताकि परिवार पूरा हो जाए।” आंटी आशीर्वाद देते हुए बोली।
“हमारे लिए तो ये दो बेटियां ही काफी हैं आंटी, हमारा तो परिवार पूरा हो गया । आप क्या लेंगी चाय या कुछ ठंडा?”
बबिता ने बात का रुख बदला।
“तुम भी कैसी नासमझी वाली बात करती हो! धरम शास्त्रों में लिखा है, बेटे के हाथ पिंडदान न हो तो मोक्ष नही मिलता। बेटा आग देगा तभी मुक्ति मिलेगी।”
“अच्छा तो आंटी एक बात बताओ जिनके औलाद नहीं होती उनको तो फिर मरना भी नहीं चाहिए।
आपने चिता जलने के बाद की दुनिया देख ली है आंटीजी?
बबिता के चेहरे पर अब भी सहज मुस्कान थी पर आंटी का चेहरा सफ़ेद पड़ रहा था।
“अरे तुझे मालूम नहीं, पूर्वजों का कर्ज रहता है पुत्र पर उसे दुनिया में लाने का। जब तक पुत्र किरिया करम नही करता ,तब तक मोक्ष नही मिलता....”
आंटी की आवाज कुछ तेज़ हो गयी थी।
“तो क्या पुत्री पर ऋण नही होता? वो भी तो पूर्वजों द्वारा ही संसार में आई है?
औऱ हाँ,आंटी जी फिर तो सीताजी के पिताजी का तो मोक्ष ही नहीं हुआ...?
आंटी मैंने तो पढ़ा है कि शास्त्र कहते है जहां स्त्री की पूजा,सम्मान होता है वहां देवता भी प्रसन्न होकर निवास करते है.."
बबिता ने तुरंत पूछा।
आंटी की जुबान तो कहीं अटक गई थी.... गले में थूक जम सा गया, कुछ बोल नहीं पाई।
।।शिव।।
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