भरोसे की सिसकी...
सड़क के एक छोर से दूसरी ओर दौड़ कर आ रही थी चार बच्चियां । कंधे पर बस्ता औऱ हाथ में लटकती पानी की बोतल लिए दौड़ रही थी।
मैं जहां खड़ा था उससे चंद कदम की दूरी पर जेब्रा लाइन थी वे उसी जेब्रा लाइन को क्रॉस करती हुई मेरी तरफ बढ़ रही थी।
मैं एक दोस्त से मिलकर निकलने वाला था पर उन बच्चियों को दौड़ते हुए देख कर रुक गया अनायास ही।
आंखों में उम्मीदें थी तो चेहरे पर कुछ उलझन सी भी दिखाई दे रही थी..... आगे चल रही बच्ची ने पीछे चल रही बच्ची को कहा "चलती चल लेट हो जाएंगे"....तो सबसे पीछे वाली ने तेज आवाज में कहा "अब नहीं दौड़ सकती चाह कर भी हम समय पर नहीं पहुंचेंगे तो फिर आराम से चल लो ना...." पर आगे वाली जैसे अपने ही जुनून में थी।
बीच वाली ने हौसला बढ़ाया कि "हम पहुंच जाएंगे समय पर, थोड़े कदम तेज चला लो ....
उनकी ड्रेस देखकर समझ आया कि यह तो मेरे घर के पास वाली स्कूल की बच्चियां है,जिस स्कूल को मैं आज से जॉइन करने वाला हूं बतौर शिक्षक।
अचानक मुझे उन बच्चियों में अपनी गुड्डा नजर आने लगी और जब मेरे पास आई तो मैंने कहा गुड्डा मैं भी उधर जा रहा हूं गाड़ी में बैठ जाओ छोड़ देता हूं । मैं भी आज से तुम्हारे स्कूल को ज्वाइन करूंगा।
सबसे आगे चल रही लड़की ने पीछे मुड़कर देखा जैसे वह सबका मत जानना चाहती थी या अपने मत को बहुमत में बदलना चाहती हो। उन चारों बच्चियों की आंखें चलते-चलते आपस में मिली और मानो निर्णय हो गया।
आगे वाली लड़की ने कहा नो थैंक्स सर्।
बच्चियां मेरे से आगे निकल गई थी पर मन में एक बड़ा सवाल छोड़ गई थी। क्या हमने इतना भरोसा तोड़ दिया इन बच्चियों का...? गांव में जब हम पढ़ते थे तो ऐसे ही एक दूसरे के घर... एक दूसरे की बहन-बेटी को अपनी बहन-बेटी मान कर पता नहीं कब तक रिश्ते निभाते रहते थे । एक दूसरे के सुख दुख में साथी होते थे... भात मायरे में एक दूसरे के ऐसे शरीक होते थे जैसे हमारे घर में कोई भात मायरा हो ।
मेरी आंखें गीली हो आईं थी...हमने बच्चियों का कितना भरोसा खो दिया। हमवतन, हमराही, हमसाया, हमपेशा किसी का भरोसा न रहा। कार से दूर होती गई ये छोरियां, सामने सड़क पर देख रहा था उन्हें दौड़ते हुए फिर से....आंसुओं के बीच सामने की तस्वीर धुंधला गयी थी।
वे दौड़ गयी थी अपनी मंजिल पाने को,पर हम कहीं छोड़ आये पीछे अपना भरोसा,अपना विश्वास.....
कार के साइड मिरर से देख रहा हूँ सड़क पर किये गए एक विज्ञापन में एक कार्टून मुस्कुरा रहा था...उसकी मुस्कुराहट ऐसे लग रही थी जैसे पूछ रही हो,मेरे से,हम सबसे एक सवाल....कहाँ गया भरोसा...? एक दिन में तो नहीं टूटा होगा,टूटने से पहले वो भी सिसका होगा....काश!तुम सुन पाते भरोसे की सिसकी.......
अब भी वक्त है भरोसे को बिखरने से पहले संभाल लें,सिसकियों को सुन लें.....।।शिव।।
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अब तो भरोसा अपनों पर भी नहीं रह है
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