डायरी ख्वाहिशों की
कार जैसे-जैसे उदयपुर की ओर बढ़ रही थी,मन में उल्लास के साथ साथ कुछ चिन्ताएं भी घर करती जा रही थी। कैसा होगा माहौल मामा के घर का..? यही सोचकर मन परेशान हो उठता था,पर मन में खुशी थी लंबे समय बाद मामा के घर जा रही हूं।
बड़े भइया की बेटी पैदा होने के बाद? पिछली बार छोटे भइया के बेटा हुआ था, तो मामा के घर गयी थी।
मामी को उस वक्त देखा था, कभी हलवाई को डपटती थीं, कभी भाभी को जाकर ममता भरी निगाहों से देख आती थीं ।अपनी बड़ी पोती को लाड़ करते हुए अनगिनत बार बोल चुकी थी “छोटा भाई आ गया हमारी सिम्मी का…”
ऐसी ही खुशी सिम्मी के जन्म पर भी दिखाई थी, लेकिन मेरे मन में तो वो उनकी ‘डायरी’ अटक गई थी,जो मैंने देख ली थी चुपके से पिछली बार जब पोता होने पर गयी थी।उनकी अनगिनत मनौतियां,उन मनोतियों को पूरा होने पर संकल्प औऱ पूरी होने पर सामने सही का निशान।
मैं मन ही मन मुस्कुराने लगी थी कि तभी आगे लिखे शब्दों ने मुस्कुराहट रोक दी थी।
‘रामजी, अबकि पोता हो जाए, तो इस मंदिर में इतना प्रसाद, उस मंदिर की इतनी परिक्रमा… वहां पर इतने नारियल…’ मेरा मन खिन्न हो गया था।
मामी जी से मुझे ये उम्मीद नहीं थी।उनको मैंने हमेशा अपना आदर्श ही माना था और उनकी इतनी छोटी सोच?
इस बार भैया की बेटी का जन्म और मामी जी के सड़क पर गिरने की ख़बर एक साथ आई।कुछ भी हो, हैं तो मामी ही, ये सब सुनकर मुझसे रुका ना गया।
इन्हीं ख्यालों में गोते लगाते लगाते कब मैं घर के सामने थी। कार जैसे ही रुकी तो भैया भाग कर गेट पर आए और प्यार से मेरी अगवानी की।
घर का माहौल उत्साह से भरा हुआ था।सजावट, हलवाई, सब कुछ बढ़िया… लेकिन मेरी कल्पना को निराश करता हुआ।
‘उंह! ये सब तो भइया लोग करवा रहे होंगे. उदासी तो वहां पसरी होगी,मामी तो बिटिया होने के बाद मुंह फुलाये बैठी होंगी भाभी से भी, अपने रामजी से भी…।’
भाभी और बच्ची से मिलकर मैं दनदनाती हुई सीढियां चढ़कर सीधे मामी जी के कमरे में पहुंची।सच में उदासी पसरी हुई थी.
“क्या,मामी अभी भी सो रही हो ? बधाई हो पोती हुई है…” मैंने जान-बूझकर ‘पोती’ शब्द पर ज़ोर डाला। मामी ने अनमने भाव से दरवाज़े की ओर देखा और मुझे देखते ही उनकी आंखें भर आईं।
“मुझसे बात मत कर… कितने सालों बाद आई है, याद भी हूँ क्या ?.. शिवांग को छुट्टी नहीं मिली ना?..” वो साड़ी के पल्लू से आंखे पोंछते हुए उठने लगीं, मैं आत्मग्लानि से भर गई.
सच में, ऐसा भी क्या दूरी बना लेना।
“ये आएंगे, लेकिन सीधे फंक्शन में.. एक ही दिन की छुट्टी मिलेगी।उनके चेहरे पर कुछ निशान थे, मैंने चेहरा सहलाते हुए कहा, “और ये सब क्या है? कहां गिर गईं, इतनी चोट लगवा आईं?”
बुआ दरवाज़े की ओर देखते हुए फुसफुसाईं, “बताना नहीं किसी को.. मंदिर के बाहर एक कार वाली से टक्कर हो गई थी. मैंने तो सबको बताया कि पांव फिसल गया था यहीं बाहर सड़क पर… ।
उस दिन एक ओर बहु हॉस्पिटल में थी तो दूसरी ओर मैं भी...सब परेशान हो गए। अच्छा, छोड़ पहले मेरा एक काम कर दरवाज़ा बन्द कर सामने आलमारी खोल, कपड़ों के नीचे एक लाल डायरी रखी होगी.. ला जल्दी।”
मैं आधी-अधूरी बात समझते हुए उठी और यंत्रवत वही ‘डायरी’ लाकर मैंने उनके सामने रख दी।
“देख जाह्नवी, मुझे तो क़ैद कर दिया है डाॅक्टर ने, तू ये सब पूरी कर दे… बोलना मत किसी से, सब हंसते हैं…।” मामी ने थोड़ा झेंपते हुए एक पन्ना मेरे आगे खोल दिया. पढ़ते हुए मेरी आंखें फैली जा रही थीं.. आंसू आए जा रहे थे.. मन धुला जा रहा था…।
‘रामजी, जैसे आपने बेटे बेटे के बच्चों में एक भाई, एक बहन की जोड़ी बनाए रखी.. इस बार मेरी बड़ी बहू को बिटिया दे दो, यहां भी परिवार पूरा कर दो।अगर इस बार पोती हो गई, तो इस मंदिर में दो किलो बूंदी… वहां पर इक्कीस नारियल… पांच गरीबों को कंबल… और ख़बर आते ही सबसे पहले हनुमान मंदिर में सवा किलो के पेड़े…”
ऐसे ही हमने एक धारणा बना ली....बड़े बुजुर्गों के बारे में टीवी सीरियल्स, फिल्में और तथाकथित बुद्धिजीवियों के कुतर्कों,तथ्यों के आधार पर.....
आइये,मन को समझे,बनाये गए माहौल से इत्तर है उनका मन....
।।शिव।।
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