सीख माँ की
ऑफिस से आये अपने पति संदीप का लंच बॉक्स खोला, तो आभा ने देखा करेले की सब्ज़ी जस की तस रखी थी,यह अलग बात थी कि उसने रोटी खा ली थी।
सब्जी पड़ी है तो रोटी कैसे खाई होगी संदीप ने। ज़रूर उस छमिया के साथ सब्ज़ी शेयर की होगी… बड़ी सज धज कर आती है.... जब से आई है ऑफिस को अपनी अंगुलियों पर नचाती है....संदीप भी जब देखो उसी की रट लगाए रखता है....आभा का पारा हाई था- आने दो संदीप को फिर पूछती हूं आख़िर कब तक चलेगा यह सब?
कितने मन से मैंने उसकी पसंदीदा करेले की सब्जी बनाई...उसे पता भी है कि कितनी मेहनत लगती है....सासु माँ की बनाई सब्जी की तारीफ़ करता रहता है तो उनसे पूछ पूछ कर बनाई....उनके ही कहने पर आंवले का पाउडर डाला था।
उस छमिया के चक्कर में उसे भी नहीं खाया।
फ्रेश होकर उसने आवाज़ लगाई, “आभा....ओ री मेरी आभा... आज चाय मिलेगी या नहीं या सुबह की तरह मुझे ही चाय बनानी है मैडम के लिए…” संदीप की शुरू से आदत थी कि बेड टी वही बना कर देता है। जब से गौरव और अनुकृति पढ़ाई के लिए जयपुर गए हैं, तो आभा को भी सुबह जल्दी जागने की जल्दी नहीं होती।
कोई दूसरा दिन होता तो संदीप की यही आवाज़ उसके कानों में मिश्री घोल रही होती पर आज उस छमिया के कारण उसका ग़ुस्सा बढ़ता ही जा रहा था, पर वह धैर्य रखने की… मां की सीख पर अमल करते हुए शांत ही रही।
“सब्ज़ी में तुमने आंवला डाला था ना ! मुझे आज ही डॉक्टर ने खट्टा खाने से मना किया है, तो मैंने रोटी यूं ही सब्ज़ी छुआकर खा ली।”
आभा का ग़ुस्सा खौलते दूध में पानी के छींटे की तरह शांत हो गया।
अच्छा हुआ मैंने मम्मी की सीख ध्यान में रख कर कुछ नहीं कहा संदीप से… आभा मन ही मन सोच रही थी।
मां के जीवन अनुभव की सीख ना केवल गृह कलह से बचा गयी बल्कि रिश्तों की डोर को मजबूत बना गयी....गुस्सा, शक और विवेकहीन निर्णय परिवार को बिखेर देते है।
।।शिव।।
9829495900
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