घर की लक्ष्मी

 दीपा के दिन  सास के ताने से शुरू होकर,ससुर के उलाहनों से होता हुआ पति के थप्पड़-मुक्कों पर समाप्त होता था।

उसके सास-ससुर,पति बात-बात पर ताने मारते। उसका पति तो उसे अधिक दहेज न लाने के कारण रोज तानों के साथ-साथ थप्पड़-मुक्के भी मारने लगा।  ये सब अब रोजाना होना दीपा की नियति बन गया था। हर दिन होती दरिंदगी को सहते-सहते दीपा के आंसू सूख चुके थे...रोना तो दूर अब उसने सिसकना भी छोड़ दिया था। 

एक दिन दीपा का पति उसे पीट रहा था,क्योंकि वो चाहता था कि दीपा अपने मायके से एक लाख रुपये लेकर आये । 

उसकी सास ने उसके गुस्से को भड़काते हुए कहा-तुझे ही कुछ नहीं समझती हमें क्या समझेगी...थोड़ी मर्दानगी दिखा तो यह तेरे बस में रहे। देख कितनी ढीठ हो रही है मार खाकर भी हां नहीं कह रही। तू मार रहा है या ड्रामा कर रहा है।

वहीं ससुर  कह रहा था, 'इस  करमजली को तब तक पीटते रहो, जब तक ये रुपये लाने के लिये हां न कह दे।' 

तभी दीपा की ननद  नीतू वहां आ गयी और ये दरिंदगी देखकर बोली, ' भैया, भाभी ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम इसे जानवरों की तरह पीट रहे हो?'  

मुकेश दीपा को पीटते हुए बोला, 'इसकी जुबान चलने लगी है, इसे अपने मायके से एक लाख रुपए लाने के लिए कहा तो ये कहने लगी " मेरे बाप के घर मे  रुपयों के पेड़ नहीं लगे हैं जो वो जब आप मांगोगे मुझे नोट तोड़-तोड़ कर दे देंगे।' मुकेश ने दीपा को छोड़ अपनी बहन की ओर अचरज से देखते हुए बोला, 'अरे तू इसे छोड़ और ये बता तू अचानक कैसे चली आयी?' यह सुनकर नीतू ने एक पल के लिये सोचा और फिर बोली, 'भाई, तेरे जीजाजी ने मुझे भी मार-पीटकर रुपये लाने के लिए घर से निकाल दिया।'

इतना सुनते ही दीपक  का गुस्सा सातवें आसमान पर था,दांत पीसते हुए बोला, 'मेरी बहन पर हाथ उठाने वाले हिम्मत उसमें कहाँ से आई,मैं उसे कच्चा चबा जाऊंगा। चल, तू मेरे साथ, अभी वापस चल मैं बताता हूँ उसे।' यह सुनते ही नीतू बोली, 'भाई, अपनी बहन की बारी आई तो तुम्हें कितना दर्द हो रहा है, कभी सोचा कि भाभी भी किसी की बहन-बेटी है, इसकी ये दशा देखकर क्या उनका खून नही खौलेगा।'

इतना सुनते ही दीपक के अंदर का राक्षस मानो मर गया और वह रोते हुए बोला, 'बहन, आज तुमने मेरी आंखें खोल दी, मैं आज तक अपने घर की लक्ष्मी को ही पीट पीटकर अपमानित कर रहा था।' 

नीतू ने आगे बढ़कर जब प्यार से अपनी भाभी को गले से लगाया तो दीपा का बरसों से रुका सैलाब आंखों से बह चला।  तभी वहां दीपक के जीजाजी ने प्रवेश करते हुए कहा, 'घर की लक्ष्मी रोती हुई अच्छी नहीं लगती।' नीतू को छोड़ सब उसके पति को विस्मय से देख रहे थे, जो दरवाजे पर खड़ा मुस्कुरा रहा था।

नीतू जैसी बेटियां जहां हो वहां कोई भाभी दुःखी नहीं हो सकती... नारी ही नारी का दर्द समझ सकती है,नारी दर्द समझने लगे आपस में तो घर स्वर्ग बन जाता है।

।।शिव।।

9829495900

Comments

Veena bhojak said…
बहुत सुन्दर.....

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