माँ की पसन्द

 शालिनी की तबियत थोड़ी नासाज थी। माँ से फोन पर बात कर रही थी तो वो कह रही थी,कुछ भी करने की हिम्मत नहीं, खिचड़ी बनाऊंगी। वैसे भी बहुत दिन हो गए और तुम्हे तो पता है मुझे पसन्द भी है।

वो किचन की तरफ गई थी कि बडी बेटी मनस्विनी ने पूछा  ‘‘मां,मेरी पसंद का आज क्या बनेगा ?’’

शालिनी जी ने उल्टा उसे ही पूछ लिया तुम ही बता दो।

‘‘मेरी पसंद का तो वेज सैंडविच बना दो।’’ मनस्विनी ने कहा।

मनस्विनी की पसन्द का सैंडविच बना ही था कि नवोन्मेष ने कहा, ‘‘मां, मेरे लिए तो आलू के पराठे बना देना ।"

अब वे जूट गई थी परांठा बनाने कि पति सोमेश बोले यार!बहुत दिन हो गए चाउमीन खाये....क्यों ना वही हो जाये।

शालिनी जी  फिर किचन में जुट गई और वेज सैंडविच,आलू के परांठे के बाद चाउमीन बनाने के लिए। 

तीनों एक साथ मिलकर डायनिंग टेबल पर अपनी-अपनी पसंद की चीजें खाने लगे।

 बेटे नवोन्मेष ने मां से पूछा, ‘‘मां, तुमने अपनी पसंद का क्या बनाया ?’’

मां ने भी अपनी थाली तैयार की तो तीनों ने देखा उसमें  थोड़े थोड़े तीनों ही आइटम रखे हुए थे।

अब मनस्विनी बोली , ‘‘मां, ये तो हमारी पसंद की चीजें हैं।’’

मां ने कहा, ‘‘ जो मेरे बच्चों को,अपनों को पसन्द है वही तो मेरी पसन्द है ।"

क्या हमने अपनी फरमाइश बताते हुए सोचा है कि जिसे हमने गृहस्वामिनी कहा है वो अपनी पसन्द का कब बनाती है..? वो रसोई में एक मौन तपस्वी सी साधना करती रहती है और हम ख्वाहिशों के रूप में आहुति लेते रहते है।

कभी उसकी पसन्द का रसोई में बने और वो घर के लोग मिलकर बनाये तो बात बनें।

।।शिव।।

Comments

Veena bhojak said…
बहुत सुन्दर.....

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