जीवन की पूंजी

 निखिल आज अपनी शादी के बाद होने वाले प्रीतिभोज के कार्ड बांटने निकला हुआ था,साथ में उसके कोमल भी थी....वही कोमल जो अब उसकी जीवन संगिनी बन चुकी है।

अपने मित्र सौरभ के घर कार्ड देकर आते हुए उसे अचानक स्कूली दिनों वाले नरेंद्र सर का ध्यान आया,जो उस पर बहुत ही स्नेह रखते थे।उनका घर सौरभ के आगे वाली गली में था। वह उधर ही मुड़ गया,घर ढूंढने में कोई परेशानी नहीं थी,क्योंकि बचपन में सैकड़ों बार आया हुआ था।

घर के बाहर पहुंचा तो कोमल भी साथ जाने लगी तो निखिल ने यह सोचकर मना कर दिया,क्या पता सर भूल गए हो और उनकी क्या प्रतिक्रिया हो। निखिल ने घर पर जाकर डोरबेल बजाई तो किसी बच्चे ने दरवाजा खोला।

अंदर कमरे में नरेंद्र सर आरामकुर्सी पर बैठे थे,सर को देखते ही निखिल ने प्रणाम किया। निखिल ने बताया सर मैं निखिल....सुनते ही आंखों में चमक आ गयी,अरे तू तो पूरा बदल गया, कहा नन्हा सा निक्की और कहा आज निखिल....पास पड़ी कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा।

निखिल ने निमंत्रण पत्र दिया तो बोले-यह क्या है बेटे? 

सर, मेरी शादी हो गयी है,कल प्रीतिभोज रखा है एक से दो होने की खुशी में...हंसते हुए निखिल ने कहा।

"क्या शादी हो गई और तुम एक से दो हो गए तुमने तो शादी के मायने ही बदल दिए बेटा, विवाह हमारे यहां संस्कार है निखिल, और यहां एक से दो नहीं होते दो से एक होते हैं" कहते कहते नरेंद्र सर रुक गए। खुशनुमा माहौल थोड़ा गंभीर हो गया था पर उन्हें लगा कि बात यहीं खत्म कर दी तो बात शुरू करने का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा ।इसलिए उन्होंने निखिल से मुखातिब होते हुए कहा-निखिल प्रेम में एक और एक दो नहीं होते वह गणित है जिसमें एक और एक मिलने पर दो होते हैं पर रिश्तो की गणित में एक और एक मिलकर एक ही होते हैं, कभी बढते है तो ग्यारह बनते है,यही हमारे संस्कार हैं ।

शादी से पहले तुम दोनों का अलग अस्तित्व था,अलग व्यक्तित्व था पर अब तुम एक दूसरे के पूरक हो । क्या कभी एक सिक्के के अलग-अलग पहलुओं को अलग करने पर उनका मूल्य रह सकता है ?

बेटा! मैं आ तो नहीं पाऊंगा क्योंकि अब चला फिरा नहीं जाता और बहू को मेरी ओर से खूब सारा आशीर्वाद देना और एक से दो मत होना दो से एक होने की कोशिश करना ....यह समझ लो कि यही मेरे जीवन की पूंजी है जो मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ..कहते-कहते नरेंद्र सर भावुक हो गए थे ।

निखिल ने झुक कर उन्हें प्रणाम किया उसकी आंखों से छलके आंसू नरेंद्र सर के चरणों को मानों धो रहे थे।निखिल बाहर आ रहा था तो बदला हुआ निखिल था।रिश्तो की नई गणित का जो सदियों से हमारे यहां सप्तपदी के सात फेरों में बताई जाती रही है।

।।शिव।।

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Comments

Sangeeta tak said…
बहुत ही सुंदर कहानी👌
भावपूर्ण और सार्थक सीख देती है आपकी कहानियाँ भाई जी।
Veena bhojak said…
बहुत सही व सुन्दर तथा गुणों की विशालता से पूर्ण कहानी ....
रिश्तों को बाँधती औऱ उचित अर्थ समझाती, लघु किन्तु सारगर्भित कहानी 🙏🏻

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