कहना माँ का....
सरोज गांव से अपने भाई के पास जयपुर आई हुई थी। उसकी ओर भतीजी शिवानी की खूब बनती थी। बाजार जाना हो या कही घूमने दोनों भुआ- भतीजी साथ होती थी।
आज मॉल में शॉपिंग करते हुए शिवानी को घूरते एक छोरे को देख सरोज ने तैश में दो चार थप्पड़ रसीद कर दिए तो मॉल में आधे से ज्यादा लोगों ने छोरे की पिटाई पर अफ़सोस जताया,कुछ चुप रहे तो कुछ ने बीच बचाव किया,बाकी एक आध ने छोरे का पीटना सही ठहरा कर बात को रफा दफा किया।
सरोज ने सबको लताड़ते हुए कहा-कैसे लोग हो जो सोशल मीडिया पर तो बहुत सारी बातें करते हो,औऱ तुम्हारे सामने किसी महिला की ओर कोई देखे तो दुबक जाते हो,या फिर खुद ही वीडियो बनाने लगते हो।तुम शहरियों से हम गांव वाले ठीक है जो गरिमा समझते है।
जैसे तैसे शिवानी भुआ को लेकर मॉल से बाहर आई। आज शिवानी भुआ पर नाराज़ थी-भुआ सब लड़के ऐसे ही होते है,तुम भी बात का बतंगड़ बना देती हो।
सरोज सोच रही थी,गलती कहाँ हुई मुझसे.....?
घर जाने के लिए ई रिक्शा किया और उसमें बैठते ही सरोज ने अपनी आदत के अनुसार रिक्शे वाले को पूछा- कहाँ के हो भैया?उसने कहा- हरिपुर से हूँ।
हरिपुर खास या आसपास... कहते हुए दूसरा सवाल दागा तो उसने कहा पास में ही गांव है रामसर।
अरे रामसर...रामसर में किसके बेटे हो..रामसर नाम सुनते ही आंखों में चमक और आवाज़ में खनक देखते ही बनती थी।
रिक्शेवाले ने जबाब दिया- हम रामनारायण जी के पोते है,बृज लाल जी के बेटे। अरे,बिरजू भैया के बेटे हो..?तुम हमें जानते हो...?तुम हमें कैसे जानोगे,जब हम ब्याहकर आये तब तक तो तुम पैदा ही नहीं हुए थे,कैसे जानोगे...फिर कभी जाना ही नहीं हुआ...तुम्हारे परिवार के सब लोग तो जानते ही है हमें,तुम्हारी माँ पार्वती,हाँ पार्वती ही नाम है ना..?
उसने कहा-हाँ,दीदी!आप तो सब पहचानते हो..
बातें चल ही रही थी कि घर आ गया।
रिक्शे से उतरने पर सरोज ने पचास रुपये निकाल कर किराए के लिए आगे बढ़ाएं तो रिक्शे वाले ने कहा- माँ ने कहा था-गांव की बहन बेटी मिले तो कभी किराया मत लेना।
आप तो हमारी भुआ हो गयी...चलते है भुआ...कहकर रिक्शा मोड़ कर वो चला गया।
सरोज की आंखें डबडबा गयी थी,शहर में आकर भी इस माटी के लाल ने संस्कार नहीं भूले.....तो शिवानी भी भुआ के गले लगकर अपनी नाराज़गी औऱ शहर के काले पक्ष को याद कर माफ़ी मांग रही थी।
।।शिव।।
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