तुम बिन शून्य
तुम बिन शून्य
तुम भी वही हो और मैं भी वही.... पर राह अब बेगानी सी लगती है,कुछ टूटा टूटा सा,कुछ पीछे छूटा छूटा सा।
गलती क्या है मेरी या तुम्हारी या हम दोनों की, ये खामोशी बोझिल सी होती जा रही है, दम सा घुटने लगा है।
मुझे पता है तुम इस बोझिल सी राह से निजात पा लोगे पर मैं.....
कभी सोचा है इस रपटीली राह में हाथ छोड़ने का अर्थ....तुम बदल गए हो कहूं तो तुम मानोगे ही नहीं,पर लगता है आसमानी सितारों की चाल बदल गई है।
मन में घबराहट सी होती है और एक कदम भी नहीं उठता अकेले,तुम यह जानते हो पर पता नहीं किस बात पर गुस्सा हो।
बताते भी तो नहीं,कभी दर्द सुनते भी तो नहीं,कभी आंखों की भीगी कोर को महसूस भी कर लिया करो।
तुम्हें कसूरवार ठहराऊं भी तो कैसे....? जिंदगी जब तुम्हारे नाम कर दी तो शिकायत कैसी? तुम्हारी नाराजगी तो नहीं समझ पाई पर पता है मुझे मेरी सांसे उलझ गई है... राह पर उम्मीदें बिखर रही है....तुम जानते हो तुम बिन मैं शून्य हूं।
तुम बिन मुझे इस जीवन की डगर पर डर लगता है,जानते हुए भी ठिठक गए हो,मेरी तो सांसे ही अटक गई है जैसे।
बता भी दो नाराज क्यों हो.....उम्मीदों की रोशनी में बस इतना सा ही ख्वाब है तुम लौट आओगे पहले की तरह..... इस सफर के मेरे हमसफ़र।
।।शिव।।
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