राखी - कच्चा धागा या पक्का बंधन

महज कच्चे धागों का बंधन है राखी या लुटेरी बहन के लिए नौटंकीबाज भाई का फंक्शन है राखी...? किसी चॉकलेटी मिठास की मोहताज है राखी या रिश्तों की औपचारिकता है राखी...? आज के दिन यह सवाल उठना,खुद के मन को सालता है क्योंकि बचपन में मां को एक महीने पहले ही अपने भाइयों,भतीजों,भाभी के लिए अपने हाथों से राखी बनाते देखा है। मुझे आज भी याद है जब मैने उनसे पूछा था,किसी से सुनकर की कच्चे धागों का त्योहार है राखी.... उनका जवाब आज भी मन के अंत:करण को भाव विभोर कर देता है,जब मौली के एक धागे को मेरे सामने करके कहा इसे खींचना,मैंने खींचा और वो टूट गया। मैंने कहा बस ऐसा ही होता है कच्चे धागे का रिश्ता...? फिर इतनी सारी राखियां क्यों? उन्होंने कहा चुप कर पागल, ये अकेला था, इसलिए टूट गया,अब तोड़ के बता,कहकर मौली आगे कर दी वो कोई बीस पच्चीस धागों का जोड़ था तो टूटा नहीं। फिर बोली देखा,जब अकेला था तो तोड़ दिया,सब एक जगह हुए तो तोड़ पाए क्या..? आज उसको सोचता हूं तो हर धागा अपने आप में अहम होता है,पर जब वह अपना स्वत्त्व मिटाकर सामूहिक हो जाता है तो मजबूत हो जाता है,यही तो हमारी सामाजिक परम्पराओं का मूल ध्येय...