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राखी - कच्चा धागा या पक्का बंधन

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 महज कच्चे धागों का बंधन है राखी या लुटेरी बहन के लिए नौटंकीबाज भाई का फंक्शन है राखी...? किसी चॉकलेटी मिठास की मोहताज है राखी या रिश्तों की औपचारिकता है राखी...? आज के दिन यह सवाल उठना,खुद के मन को सालता है क्योंकि बचपन में मां को एक महीने पहले ही अपने भाइयों,भतीजों,भाभी के लिए अपने हाथों से राखी बनाते देखा है। मुझे आज भी याद है जब मैने उनसे पूछा था,किसी से सुनकर की कच्चे धागों का त्योहार है राखी.... उनका जवाब आज भी मन के अंत:करण को भाव विभोर कर देता है,जब मौली के एक धागे को मेरे सामने करके कहा इसे खींचना,मैंने खींचा और वो टूट गया। मैंने कहा बस ऐसा ही होता है कच्चे धागे का रिश्ता...? फिर इतनी सारी राखियां क्यों? उन्होंने कहा चुप कर पागल, ये अकेला था, इसलिए टूट गया,अब तोड़ के बता,कहकर मौली आगे कर दी वो कोई बीस पच्चीस धागों का जोड़ था तो टूटा नहीं। फिर बोली देखा,जब अकेला था तो तोड़ दिया,सब एक जगह हुए तो तोड़ पाए क्या..? आज उसको सोचता हूं तो हर धागा अपने आप में अहम होता है,पर जब वह अपना स्वत्त्व मिटाकर सामूहिक हो जाता है तो मजबूत हो जाता है,यही तो हमारी सामाजिक परम्पराओं का मूल ध्येय...

रमताजोगी

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 घर के सामने वाले पीपल के चारों ओर लोगों को हुजूम लगा देख,मन में कई सवाल उठे,क्या हुआ होगा वहां...? रोड़ से कोई दस फीट बाद अकेले खड़े इस पीपल को साथ मिला था तो ऐसे शख़्स का जो पता नहीं कहां से आया था,सारे दिन डायरी के पन्नों में कुछ न कुछ लिखना,खाली पड़ी जमीन पर पौधे लगाना और दूर लगे सार्वजनिक नल से पानी की खाली बोतलों में पानी भरकर लाना और उन पौधों में डाल देना। पर आज अचानक लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा,भीड़ देखकर मन को रोक नहीं पाई और चल दी भीड़ की तरफ़। भीड़ को पार कर जब वहां पहुंची तो देखा वो शख़्स निष्प्राण पड़ा था.... पर पास पड़ी डायरी के पन्ने फड़फड़ा रहे थे। तभी पुलिस की गाड़ी आई और भीड़ को हटाकर अपनी कानूनी कार्यवाही कर उस निष्प्राण देह और उसके आस पास के बिखरे सामान को लेकर चली गई। रह गया था तो सवाल शेष..आखिर कौन था वो शख़्स जिसने कभी किसी से बात नहीं की,कुछ मांग नहीं की। बस अपनी ही मस्ती में लिखना और पौधे लगाना। बार बार आज नजरें उधर ही जा रही थी,जब यहां मकान बनवा रहे थे तो सामने केवल यही पीपल का पेड़ था जो लैंडमार्क था हमारे घर का। पर पिछले पांच साल में जबसे यह शख़्स आया था अक...