रमताजोगी
घर के सामने वाले पीपल के चारों ओर लोगों को हुजूम लगा देख,मन में कई सवाल उठे,क्या हुआ होगा वहां...? रोड़ से कोई दस फीट बाद अकेले खड़े इस पीपल को साथ मिला था तो ऐसे शख़्स का जो पता नहीं कहां से आया था,सारे दिन डायरी के पन्नों में कुछ न कुछ लिखना,खाली पड़ी जमीन पर पौधे लगाना और दूर लगे सार्वजनिक नल से पानी की खाली बोतलों में पानी भरकर लाना और उन पौधों में डाल देना।
पर आज अचानक लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा,भीड़ देखकर मन को रोक नहीं पाई और चल दी भीड़ की तरफ़।
भीड़ को पार कर जब वहां पहुंची तो देखा वो शख़्स निष्प्राण पड़ा था.... पर पास पड़ी डायरी के पन्ने फड़फड़ा रहे थे।
तभी पुलिस की गाड़ी आई और भीड़ को हटाकर अपनी कानूनी कार्यवाही कर उस निष्प्राण देह और उसके आस पास के बिखरे सामान को लेकर चली गई।
रह गया था तो सवाल शेष..आखिर कौन था वो शख़्स जिसने कभी किसी से बात नहीं की,कुछ मांग नहीं की।
बस अपनी ही मस्ती में लिखना और पौधे लगाना। बार बार आज नजरें उधर ही जा रही थी,जब यहां मकान बनवा रहे थे तो सामने केवल यही पीपल का पेड़ था जो लैंडमार्क था हमारे घर का। पर पिछले पांच साल में जबसे यह शख़्स आया था अकेला नहीं रहा था पीपल... बहुत से पेड़ पौधे और पक्षियों का कलरव बरबस ही सबका ध्यान खींचते थे,देखते ही देखते कुछ लोग वहां पक्षियों को चुग्गा डालने लगे तो कुछ चींटियों को आटा।
उस शख्स ने कभी किसी से कोई बात नहीं की,कोई राम राम बोलता तो ओचारिकता का केवल निर्वहन करता था वो शख़्स राम राम बोलकर और निकल जाता था वहां से,ताकि कोई बात नहीं करनी पड़े किसी से।
पर आज सांझ ढल गई थी पर पक्षियों का कलरव नदारद है,पक्षी सभी बैठे है पर कोई नहीं बोल रहा....लगता है सभी किसी अपने के शोक में डूबे है।
जैसे तैसे रात गुजरी पर सवाल अब भी वहीं मन को कचोट रहा था कि वो आखिर था कौन?
जिसे पक्षियों से लगाव था, पौधों से प्रेम था पर किसी इंसान से अबोला आखिर क्यों?
सुबह टहलते हुए कदम उधर ही बढ़ गए,लोग चर्चा कर रहे थे कि पुलिस ने उसे लावारिश घोषित कर दिया है और पहचान के लिए विज्ञापन दिया है।
मेरे कदम जैसे उस पीपल की ओर खिंचे जा रहे थे।पीपल के नीचे अब भी दाने,पानी की खाली बोतलें बिखरी पड़ी थी।
मै आगे बढ़ ही रही थी कि मेरी नज़र सहसा थोड़ी दूर पड़ी एक छोटी सी डायरी पर पड़ी तो न चाहते हुए भी उठा ली।
हाथ में ली तो पहले ही पन्ने पर लिखी दो लाइन देख मन में उस रहस्यमयी शख्स को जानने की जिज्ञासा बढ़ने लगी।
लिखा था -
बहुत हुई चकाचौंध,अब गुमनामी ही स्वीकार है।
अपनेपन का पाखंड अब कहां किसी को प्यार है।।
नीचे लिखा था रमताजोगी।
उस डायरी को लेकर कुछ दूर पड़े एक बड़े से पत्थर पर बैठ गई।
पन्ने पलटते गई और किसी चोट खाए भले मानुष की छवि उभरती गई.... पर नाम दिख रहा था तो बस रमता जोगी।
बस एक जगह एक मोबाइल नंबर दिखा जो किसी चेतन के नाम के साथ लिखा दिखा।
मन किया की फोन कर लूं,पर कुछ अनिष्ठ न हो जाए इस आशंका के चलते चुप हो गई। डायरी को वहीं छोड़, उन नंबरों को अपने मोबाइल में लिखकर घर आ गई।
घर आकर पति को पूरी घटना बताई तो पहले तो वे गुस्सा हुए कि बन रही हो ब्योमकेश बख्शी,पर बाद में उन्होंने थाने पर फोन कर बताया कि कल जहां लाश मिली थी उसके पास ही एक डायरी पड़ी दिखाई दी है।
कुछ देर में पुलिस आई और वो डायरी लेकर चली गई।
मै मेरे काम में लग गई,घर के काम से फुर्सत मिली तो फिर बालकनी से बाहर की तरफ झांका तो फिर भीड़ उमड़ी हुई थी,टीवी चैनल वालों की ओवी वैन खड़ी थी,लग रहा था जैसे लाइव चल रहा हो।
मैने भी टीवी ऑन की तो वो ही ख़बर आ रही थी। देश के ख्यातनाम उद्योगपति रहे रोकड़िया ने रोड पर ली आखरी सांस।
मन में अब केवल एक सवाल नहीं रह गया,बार बार सवालों का तूफानी बवंडर उठ रहा था।
मै चेतन हूं,चैतन्य नाम से तो मुझे केवल मालिक ही जानते है। वो कुछ और पूछता उससे पहले ही मेरे दिमाग में एक सवाल और उठा तो क्या पुलिस को उस डायरी से नहीं किसी और मध्यम से पता चला है कि वे उद्योगपति रोकड़िया है।
टीवी स्क्रीन पर खबर चल रही थी कि परिवार के धोखे से नाराज रोकड़िया पिछले सात सालों से लापता थे,परिवार ने गुमशुदगी की रपट लिखवाई थी पर वे नहीं मिले।
आखरी बार पत्नी और बेटों से हुई तकरार के बाद वे घर से निकल गए थे।उसके बाद किसी से उनका कोई संबंध नहीं था।
रमता जोगी नाम से लिखी गई कई उपन्यास,कहानियां और कविता संग्रह लोकप्रिय रहे है।
बार बार स्क्रीन पर उनकी दो फोटो आ रही थी, एक वो जब वे रोकड़िया थे और दूसरी वो जब उन्होंने रोड़ किनारे अपनी देह को अलविदा कहा।
सवाल अब भी है, कि मौत के बाद भी रोकड़िया के नाम की चकाचौंध पीछा छोड़ पाई।
मै सोच ही रही थी कि टीवी स्क्रीन पर कोई चेतन एक टूटे फूटे घर के सामने से दिखाई दे रहा था।देखकर लग रहा था कि वो खूब रोया है और अब भी अपने आंसुओं को रोकने की असफल कोशिश कर रहा है।
यह वहीं शख़्स था जिसे रोकड़िया ने अपनी वसीयत की है,जिसमें चेतन से एक ट्रस्ट बनाने की बात की है।
चेतन वही जिसका नाम में डायरी में पढ़ चुकी थी,उसने बताया कि सात साल पहले उनको हुए पक्षाघात के समय सबसे पहले हॉस्पिटल लेकर भागा था और हॉस्पिटल में रहकर उनकी दस दिन तक सेवा की।
इस दौरान पत्नी और बेटों ने केवल फोन पर ही पूछताछ की।
तभी स्क्रीन पर खबर फ्लैश हुई,जिस जगह अंतिम सांस ली ,उस जगह से था उनके परिवार का गहरा नाता।
तंगहाल जब पहली बार वे शहर आए थे तब उनकी दादी ने इसी जगह ली थी अंतिम सांस।
रोकड़िया के मिले सामान में रखी डायरी में हुआ है खुलासा।
दूसरा चैनल बदला तो आ रहा था,गुमनामी में बिताए जहां अंतिम दिन, वहां बनें निःशुल्क स्कूल, ट्रस्ट से जताई आखरी ख्वाहिश।
मै सोचती ही रह गई,वो अबोला इंसान,कैसे पूरी सोसाइटी की सबसे बड़ी जरूरत को समझ गया और एक हम थे जो उस शख्स को केवल भिखारी ही समझते रहे। अपनों के सताए इंसान ने अपनी जड़े तलाशी और रमता जोगी उन जड़ों में आकर ऐसा रमा की खुद को यहीं का कर लिया।क्या कमी थी उसके पास जो वो यूं रमता जोगी बन रहा,गुमनाम रहा।
बरबस ही उस डायरी की वो लाइन याद आ गई बहुत हुई चकाचौंध अब गुमनामी ही स्वीकार है,अपनेपन का पाखंड अब कहां किसी को प्यार है....
।।शिव।।

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जय श्री राम