गुरु पूर्णिमा - वर्ण व्यवस्था को जाति से जोड़ने वालों को मुंह तोड़ जवाब देते महर्षि वेद व्यास

 जिनकी संतानें थी कौरव और पांडव: जानिए कौन हैं कृष्ण द्वैपायन, जिनका जन्मदिन बन गया ‘गुरु पूर्णिमा’

आज  गुरु पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जा रहा है। लेकिन क्यों? हमें यह भी जानना चाहिए कि इसके पीछे के कारण क्या हैं? दरअसल, ये महर्षि वेद-व्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। वही महर्षि वेद-व्यास, जिन्होंने वेदों का विभाजन किया और महाभारत जैसे महान ग्रन्थ की रचना की। वो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं लेकिन अब तक आपने उनके बारे में जनश्रुतियों में ही सुना होगा।

लेकिन, हमारी अति-प्राचीन पुस्तकें क्या कहती हैं? दरअसल, अच्छे से समझाने के लिए हमें कहानी तब से शुरू करनी पड़ेगी, जब महाराज शांतनु के दोनों बेटे विचित्रवीर्य और चित्रांगद की मृत्यु हो गई थी। चूँकि, हमेशा राज्य के प्रति वफादार रहने और आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा कर के देवव्रत भीष्म ने अपने पिता का सत्यवती से रिश्ता कराया था, ऐसे में उन्होंने राजा बनने से इनकार कर दिया। कुछ समय पहले भीष्म ने जो सब त्यागा वो उनके सामने फिर से खड़ा हो गया।

माँ सत्यवती की बातों को भी भीष्म ने प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण मानने से इनकार कर दिया, जिससे समस्या आ गई कि अब कुरुवंश का राजा कौन होगा? विचित्रवीर्य और चित्रांगद की पत्नियाँ अम्बिका और अम्बालिका विधवा हो चुकी थीं। मनुस्मृति ने ऐसे समय में ‘नियोग विधि’ का प्रावधान समझाया था, जो कलियुग में इसीलिए लागू नहीं होता क्योंकि लोग अधिक भ्रष्ट और कामातुर हो चुके हैं।

नियोग विधि से उन दोनों से संतान उत्पन्न करने के लिए किसी ज्ञानी व्यक्ति की आवश्यकता थी। ठीक इसी समय सत्यवती ने अपने सौतेले बेटे भीष्म को बताया कि उनका एक और बेटा है, जो विवाह के पूर्व ही उत्पन्न हुआ था। ज्ञान, तपस्या, वेद-वेदांग और नीति-नियमों, सब में निपुण। जिन्होंने जन्म के साथ ही अपने पिता से सारी शिक्षाएँ प्राप्त कर ली थीं। सत्यवती ने कहा कि उन्हें बुला कर संतान उत्पन्न करने की प्रक्रिया अपनाई जाए।

इस कहानी को और अच्छे से जाने के लिए थोड़ा और पीछे चलते हैं। सत्यवती चूँकि मछली के पेट से निकली थीं, उनमें वैसी ही दुर्गन्ध थी लेकिन सुंदरता बेमिसाल थी। निषादराज की पुत्री थीं और वो नाव भी चलाया करती थीं। इसी दौरान एक बार महर्षि पराशर उनकी नौका पर बैठे थे,नक्षत्र विद्या के प्रकांड विद्वान महर्षि ने उस समय की नक्षत्र देख आश्चर्य चकित हो गए। क्योंकि वो समय था बहुत ही दुर्लभ,नक्षत्र के हिसाब से।

सत्यवती के रूप पर मोहित महर्षि ने सत्यवती को इसकी जानकारी दी।

 सत्यवती ने लोक-लाज के डर से पूछा कि यमुना नदी के बीच में स्थित नौका में प्रेम-विहार करने से चारों तरफ से लोग देखेंगे, उनका क्या?

महर्षि पराशर ने तत्क्षण कोहरा उत्पन्न किया और उसी नौका पर उन दोनों का समागम हुआ। इसके बाद जो पुत्र उत्पन्न हुआ, उसका नाम था कृष्ण द्वैपायन। चूँकि वह साँवले थे, इसीलिए कृष्ण। और उनका जन्म यमुना के एक द्वीप पर हुआ था, इसीलिए द्वैपायन। यही श्री कृष्ण द्वैपायन बाद में वेद-व्यास की पदवी को प्राप्त हुए और वेदों का विभाजन किया। ध्यान दीजिए, रचना नहीं की क्योंकि वेद आदिकाल से हैं, ऐसा माना जाता है।

दरअसल, वेद-व्यास  "मनु" की तरह एक पदवी ही है और हर मन्वन्तर के एक व्यास होते हैं जो वेदों का विभाजन के साथ-साथ धर्म का पाठ पढ़ाते हैं। पहले मन्वन्तर में ख़ुद ब्रह्मा ही वेद-व्यास हुए थे। इसी तरह वर्तमान मन्वन्तर में कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास हैं। क्या आपको पता है कि अगले मन्वन्तर में कौन वेद-व्यास होंगे? अश्वस्थामा। प्रायश्चित और तपस्या से दग्ध होकर अपने पापों को धो कर वो इस पदवी को प्राप्त होंगे।

अब वापस लौटते हैं वहाँ, जहाँ सत्यवती ने भीष्म को अपने बेटे के बारे में बताया। निर्णय हुआ और वेद-व्यास को बुलाने का।

 माँ ने वंश पर संकट में देख नियोग विधि से संतान उत्पन्न करने की बात कही और साथ ही कुरुकुल का अंश होने से बचाया। चूँकि वो भयंकर रूप लेकर समागम हेतु पहुँचे थे, अम्बिका ने आँखें बंद कर लीं और उनके पुत्र धृतराष्ट्र अंधे ही पैदा हुआ। अब अँधा व्यक्ति राज कैसे चलाएगा, इसीलिए उन्होंने अम्बालिका के साथ ‘नियोग विधि’ का पालन किया।

अम्बालिका का डर के मारे शरीर ही पीला पड़ गया और इसीलिए उनके पुत्र पाण्डु पीलिया ग्रसित ही पैदा हुए। उनका शरीर पीला ही था। हालाँकि, पाण्डु बाद में आगे चल कर चक्रवर्ती राजा हुए और भरतखण्ड का विस्तार किया। माँ सत्यवती ने फिर से संतान उत्पन्न करने को कहा। इस बार अम्बालिका ने अपनी जगह किसी दासी को भेज दिया, जिन्होंने वेद-व्यास की खूब सेवा की और डरी भी नहीं।

इस बार महात्मा विदुर पैदा हुए। उनका मन धर्म में हमेशा लगा रहता था और आज भी विदुर-नीति वैसे ही विख्यात है, जैसे चाणक्य नीति। इसी तरह धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर वेद-व्यास के ही संतान हुए। उनसे ही कौरव और पांडवों का जन्म हुआ, जिनका युद्ध महभारत नाम से प्रसिद्ध हुआ। वेद-व्यास अमर हैं। उस समय भी उन्होंने सब कुछ देखा-सुना था, इसीलिए महाभारत को उन्होंने इतिहास बताया है।

जाते-जाते एक बात बता दें कि शांतनु की पहली पत्नी गंगा से उनके पुत्र भीष्म हुए थे। बाद में उन्होंने सत्यवती से शादी की। सत्यवती से उनके पुत्र विचित्रवीर्य और चित्रांगद हुए। शादी से पहले सत्यवती और महर्षि पराशर के संगम से वेद-व्यास का जन्म हुआ था। जिनका जन्मदिवस गुरु पूर्णिमा बना। इस तरह भीष्म और वेद व्यास भाई हुए क्योंकि वेद-व्यास की माँ भीष्म की सौतेली माँ थीं।

।।शिव।।

Comments

Sangeeta tak said…
गुरु पूर्णिमा पर हार्दिक शुभकामनाएं।
गुरु पूर्णिमा पर आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं साथ ही उक्त ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए धन्यवाद
Anonymous said…
बहुत अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद।
बहुत अच्छी जानकारी दे रहे हैं धन्यवाद जी 🙏🌹🙏

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