बाबा महाकालेश्वर का इतिहास और परंपराएं
मुगलों से बचाने 500 वर्षों तक कुएं में रखा था ज्योतिर्लिंग, जानिए कहानी पुनर्निर्माण की।
मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग देश का इकलौता दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग हैं। यहां भगवान शिव भक्तों को कालों के काल महाकाल के रूप में दर्शन देते हैं। महाकाल मंदिर से जुड़ी कई प्राचीन परंपराएं और रहस्य हैं। कहा जाता है कि अवंतिकापुरी के राजा विक्रमादित्य बाबा महाकाल के भक्त थे और भगवान शिव के ही आशीष से उन्होंने यहां करीब 132 सालों तक शासन किया। महाकालेश्वर मंदिर कितना प्राचीन है इसकी सटीक जानकारी मिलना बेहद मुश्किल है। लेकिन सदियों से यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र है।
मंदिर का इतिहास बेहद रोचक है। मुगलों और ब्रिटिश हुकूमत के अधीन रहने के बाद भी देश के इस पावन स्थल ने अपनी पुरातन पहचान को नहीं खोया। सनातन धर्म की पताका को ऊंचा रखने के लिए धर्म की रक्षा से जुड़े लोगों ने ज्योतिर्लिंग को तरह-तरह के जतन कर आक्रांताओं से सुरक्षित रखा। कई दशक बीत जाने के बाद वर्तमान दौर में मंदिर का एक अलग ही स्वरूप दर्शनार्थियों को देखने को मिलता है, वहीं अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा महाकाल लोक के लोकार्पण के बाद लोग उज्जैन का एक अलग वैभव देख रहे है। आइए आज होते है महाकालेश्वर के इतिहास से रूबरू।
राणोजी शिंदे ने कराया था मंदिर का पुनर्निर्माण -
कहा जाता है कि 1235 में महाकालेश्वर मंदिर को दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। आक्रमण के दौर में महाकाल मंदिर के गर्भगृह में स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को आक्रांताओं से सुरक्षित बचाने के लिए करीब 550 वर्षों तक पास में ही बने एक कुएं में रखा गया था। औरंगजेब ने मंदिर के अवशेषों से एक मस्जिद का निर्माण करा दिया था। मंदिर टूटने के बाद करीब 500 वर्षों से अधिक समय तक महाकाल का मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में रहा और ध्वस्त मंदिर में ही महादेव की पूजा आराधना की जाती थी, लेकिन जब कई वर्षों बाद 22 नवंबर 1728 में मराठा शूरवीर राणोजी राव सिंधिया ने मुगलों को परास्त किया तो उन्होंने मंदिर तोड़कर बनाई गई उस मस्जिद को गिराया और 1732 में उज्जैन में फिर से मंदिर का निर्माण करा ज्योतिर्लिंग की स्थापना की। राणोजी ने ही बाबा महाकाल ज्योतिर्लिंग को कोटि तीर्थ कुंड से बाहर निकालवाया था और महाकाल मंदिर का पुनः निर्माण करवाया था। इसके बाद राणो जी ने ही 500 बरस से बंद सिंहस्थ आयोजन को भी दोबारा शुरू कराया।
इन राजाओं ने कराया मंदिर का पुनर्निर्माण
महाकवि कालिदास के ग्रंथ मेघदूत में महाकाल मंदिर की संध्या आरती का जिक्र मिलता है। साथ ही इस ग्रंथ में महाकाल वन की भी चर्चा की गई है। कहा जाता है कि उज्जैन के तत्कालीन राजा विक्रमादित्य ने महाकाल मंदिर का विस्तार कराया था। उन्होंने मंदिर परिसर में धर्म सभा बनवाई, जहां से वह न्याय किया करते थे। राजा विक्रमादित्य ने कई प्रकार की प्रतिमाओं का निर्माण भी करवाया था। वहीं, 7वीं शताब्दी के बाण भट्ट के कादंबिनी में महाकाल मंदिर का विस्तार से वर्णन किया गया है। 11वीं शताब्दी में राजा भोज ने देश के कई मंदिरों का निर्माण करवाया था, जिनमें महाकाल मंदिर भी शामिल रहा। उन्होंने महाकाल मंदिर के शिखर को पहले से ऊंचा करवाया था।
राजस्थान के राजाओं का भी रहा योगदान
राजस्थान के राजा जयसिंह द्वितीय ने 1280 में महाकाल के शिखर पर सोने की परत चढ़वाई थी। साथ ही उन्होंने कोटि तीर्थ का निर्माण भी कराया था। वहीं, 1300 ईस्वी में रणथम्भौर के राजा हमीर शिप्रा नदी में स्नान के बाद बाबा महाकाल के दर्शन करने पहुंचे थे। उन्होंने महाकाल मंदिर की जीर्ण शीर्ण अवस्था देखकर इसका विस्तार कराया। 17 वीं शताब्दी में मेवाड़ के राजा जगत सिंह ने उज्जैन की तीर्थ यात्रा की और यहां कई निर्माण कार्य करवाए।
बहुत खास है बाबा महाकाल का धाम और यहां की मान्यताएं।
भस्म आरती : कालों के काल महाकाल के यहां प्रतिदिन भौर में भस्म आरती होती है। इस आरती की खासियत यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। इस आरती में शामिल होने के लिए पहले से बुकिंग की जाती है।
जूना महाकाल : महाकाल के दर्शन करने के बाद जूना महाकाल के दर्शन जरूर करना चाहिए। यह महाकाल प्रांगण में ही स्थित है।
साढ़े तीन काल विराजमान हैं उज्जैन में :
उज्जैन में साढ़े तीन काल विराजमान है- महाकाल, कालभैरव, गढ़कालिका और अर्ध काल भैरव। यदि महाकाल बाबा और जूना महाकाल बाबा के दर्शन कर लिए हैं तो यहां के दर्शन भी जरूर करें।
12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे खास : 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकाल ही एकमात्र सर्वोत्तम शिवलिंग है। कहते हैं कि 'आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्। भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते।।' अर्थात आकाश में तारक शिवलिंग, पाताल में हाटकेश्वर शिवलिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के तीन भाग माने जाते हैं : वर्तमान में जो महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है, वह 3 खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर जो कि मंदिर परिसर में ही स्थित है। नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन ही करने दिए जाते हैं।
गर्भगृह का दृश्य : गर्भगृह में विराजित भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है। इसी के साथ ही गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की मोहक प्रतिमाएं हैं। गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्वलित होता रहता है। गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विराजित है।
उज्जैन के राजा : उज्जैन का एक ही राजा है और वह है महाकाल बाबा। विक्रमादित्य के शासन के बाद से यहां कोई भी राजा रात में नहीं रुक सकता। जिसने भी यह दुस्साहस किया है, वह संकटों से घिरकर मारा गया। यदि आप मंत्री या राजा हैं तो यहां रात ना रुकें। वर्तमान में भी कोई भी राजा, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री आदि यहां रात नहीं रुक सकता।
महाकाल की सवारी : उज्जैन के राजा महाकाल बाबा श्रावण मास में प्रति सोमवार नगर भ्रमण करते हैं और अपनी प्रजा को देखते हैं। महाकाल की सवारी में किसी भी प्रकार का नशा करके शामिल नहीं होते हैं।
महाशिवरात्रि के दिन समूचा शहर शिवमय हो जाता है। चारों ओर बस शिव जी का ही गुंजन सुनाई देता है। सारा शहर बाराती बन शिवविवाह में शामिल होता है।
क्यों कहते हैं महाकाल : काल के दो अर्थ होते हैं- एक समय और दूसरा मृत्यु। महाकाल को 'महाकाल' इसलिए कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहीं से संपूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था इसीलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम 'महाकालेश्वर' रखा गया है। हालांकि महाकाल कहने का संबंध पौराणिक मान्यता से भी जुड़ा हुआ है।
बाबा महाकाल की आरती समय
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की सुबह 4 बजे होने वाली आरती से लेकर रात की शयन आरती तक छह आरती की जाती है। भस्म आरती के बाद सुबह 7 बजे दत्योदक आरती, सुबह 10 बजे भोग आरती, शाम 5 बजे पूजन आरती, शाम 7 बजे संध्या आरती और रात 10.30 बजे आखिरी शयन आरती की जाती है।
शरद ऋतु में शरद पूर्णिमा के बाद सुबह 7 बजे होने वाली बाल भोग आरती 7.30 से 8.15 बजे तक होती है। इसके बाद नैवेद्य आरती सुबह 10 बजे की बजाय 10.30 से 11.15 बजे तक होती है। वहीं, संध्या आरती शाम को 7 बजे की बजाय 6.30 से 7.15 बजे तक होती है।
सावन महीने में भगवान महाकाल की भस्म आरती हर सोमवार को 2:30 बजे और बाकी दिनों में 3 बजे से शुरू की जाती है।
भस्म आरती के नियम
मन्दिर की बेवसाइट www.mahakaleshwar.nic.in पर जाकर आप लाइव दर्शन और भस्म आरती के लिए बुकिंग कर सकते है।
भस्मारती के समय पूजा-अर्चना के लिए सिला वस्त्र धारण कर गर्भगृह में जाने की अनुमति नहीं है। पुरुषों को रेशमी धोती और महिलाओं को साड़ी पहनने के बाद ही गर्भगृह में जाने दिया जाता है। गर्भगृह के बाहर दर्शनार्थी इस भस्म आरती में शामिल हो सकते हैं।
भस्मारती के दौरान महाकाल शिव रूप से शंकर रूप में आते हैं, यानी निराकार से साकार रूप में प्रवेश करते हैं। इसलिए महिलाओं को घूंघट के लिए कहा जाता है।
बाबा महाकाल आपके जीवन को स्वस्थ,सुरक्षित और संयमित बनाएं रखें।
।।शिव।।
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